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(172) जब अल्लाह ने तुम्हें धन-दौलत दी है तो तुम पर उसकी नेमत और कृपा का असर (भी) दिखना चाहिए।

357 2020/10/04
(172) जब अल्लाह ने तुम्हें धन-दौलत दी है तो तुम पर उसकी नेमत और कृपा का असर (भी) दिखना चाहिए।

عَنْ أَبِي الْأَحْوَصِ عَنْ أَبِيهِ قَالَ: أَتَيْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي ثَوْبٍ دُونٍ، فَقَالَ: "أَلَكَ مَالٌ؟" قُلت: نَعَمْ، قَالَ: "مِنْ أَيِّ الْمَالِ؟" قُلت: قَدْ آتَانِي اللَّهُ مِنْ الْإِبِلِ وَالْغَنَمِ وَالْخَيْلِ وَالرَّقِيقِ."قَالَ: "فَإِذَا آتَاكَ اللَّهُ مَالًا فَلْيُرَ أَثَرُ نِعْمَةِ اللَّهِ عَلَيْكَ وَكَرَامَتِهِ".

तर्जुमा: ह़ज़रत अबू अह़वस अपने पिता से बयान करते हैं कि मैं घटिया कपड़े पहने हुए नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास आया। तो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मुझ से पूछा:"क्या तुम्हारे पास धन (माल) है?" मैंने कहा:"जी हाँ।" तो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने पूछा:"किस प्रकार का?" मैंने कहा: "अल्लाह ने मुझे ऊंट, बकरियाँ, घोड़े और गुलाम (दास) सब कुछ दिया है।" तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"जब अल्लाह ने तुम्हें धन-दौलत दी है तो तुम पर उसकी नेमत और कृपा का असर (भी) दिखना चाहिए।"

नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अपने सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम को सिखाते थे कि वे बिना फिजूलखर्ची के कैसे दुनिया से अपना हिस्सा हासिल करें। आप सल्ला वसल्लम उन्हें इस कदर दुनिया की जायज़ चीजों से आनंद लेने की तरफ बुलाते थे कि जो संतुलन की सीमा से न निकले। तथा उन्हें इसका भी आदेश देते थे कि वे बनावटी ज़ुहद (त्याग) अपनाने और शरीरिक जरूरतों को नजरअंदाज करने से बचें। अतः आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उन्हें अल्लाह की दी हुई नेमतों से फायदा उठाने का ऐसा निराला और अनोखा तरीका दिया जो अल्लाह को भी पसंद है और लोगों को भी। याद रखें कि अल्लाह सुंदर है और सुंदरता को पसंद करता है। और लोग भी ऐसे व्यक्ति को पसंद करते हैं जो ऐसे सुंदर अंदाज में रहे जिसे देखकर आंखों को भी सुकून मिले और समाज और रिवाज के भी मुनासिब हो जिसे शरीयत जायज़ समझती हो और पसंद करती हो।

इस ह़दीस़ शरीफ में नबी करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उन सह़ाबी से और हम से दुनिया की जायज़ चीजों से आनंद लेने को कह रहे हैं कि जिस पर क़ुरआन ए पाक ने भी हमें उभारा है। लिहाज़ा मुस्तह़ब व बेहतर यह कि मुसलमान बिना फिजूलखर्ची के जायज़ तरीके से इस दुनिया से आनंद ले और इस बात का यकीन रखे की बेहतरी दो बुरी विशेषताओं यानी बहुत ज़्यादा ज़्यादती और बहुत ज़्यादा कमी के बीच ही है और इस्लाम बीच का धर्म है जिसका मतलब तमाम कामों में संतुलन बरतना है।

यह ह़दीस़ शरीफ उन लोगों के खिलाफ मजबूत सबूत है जो यह दावा करते हैं कि दुनिया से ज़ुहद व तक़वा (दुनिया से त्याग या सन्यास लेना) का मतलब है: शरीर को सभी सुखों यहाँ तक की जायज़ चीजों से भी महरूम रखना। इसीलिए वे लोग सबसे घटिया कपड़े पहनते हैं और ऐसी गंदी शक्ल में लोगों के सामने आते हैं जिसे समाज बिल्कुल अच्छा नहीं समझता। और अपने मुरीदों और मानने वालों को भी इसी का आदेश देते हैं और दावा करते हैं कि यह ज़ूहद व तक़वा है जिसका धर्म आदेश देता है और जो अल्लाह को बहुत पसंद है।

याद रखें कि वास्तव में दुनिया से ज़ुहद (त्याग) इख्तियार करने का मतलब है बिना फिजूलखर्ची और घमंड के केवल जायज़ चीजों का इस्तेमाल करना। जबकि वरअ़ व तक़वा (या सन्यास लेना ) के मतलब है धर्म और सम्मान की खातिर शक वाली चीजों को छोड़ देना यहाँ तक कि जायज़ चीजों को भी छोड़ देना जबकि वे ह़राम व नाजायज़ की तरफ ले जाने का कारण हों।

तथा यह ह़दीस़ ए पाक इस्लाम की रवादारी, उसकी सादगी, उसके फैलाव और हर समय और हर जगह के लिए उसके योग्य होने का बेहतरीन सबूत है। इस्लाम यह एक ऐसा धर्म है जो हकीकत पर आधारित है और जिसके नियम उन चीजों को पूरा करने पर आधारित हैं जिनका फितरत तकाज़ा करती है और जिनको हालात चाहते हैं।

प्रिय पाठकों! याद रखें कि सच्चा व हकीकी मुसलमान अपने कहने-करने और अपनी सभी हालातों में इस्लाम की सच्ची सूरत और उदाहरण होता है।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day