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(176) कौन सा काम बेहतर है?

216 2020/10/04

عَنْ أَبِي ذَرٍّ جندب بن جنادة رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قُلْتُ: يَا رَسُولَ اللَّهِ، أَيُّ الْأَعْمَالِ أَفْضَلُ؟ قَالَ: "الْإِيمَانُ بِاللَّهِ وَالْجِهَادُ فِي سَبِيلِهِ". قَالَ: قُلْتُ: أَيُّ الرِّقَابِ أَفْضَلُ؟ قَالَ: "أَنْفَسُهَا عِنْدَ أَهْلِهَا وَأَكْثَرُهَا ثَمَنًا". قَالَ: قُلْتُ: فَإِنْ لَمْ أَفْعَلْ؟ قَالَ: "تُعِينُ صَانِعًا أَوْ تَصْنَعُ لِأَخْرَقَ". قَالَ: قُلْتُ: يَا رَسُولَ اللَّهِ، أَرَأَيْتَ إِنْ ضَعُفْتُ عَنْ بَعْضِ الْعَمَلِ؟ قَالَ: "تَكُفُّ شَرَّكَ عَنْ النَّاسِ؛ فَإِنَّهَا صَدَقَةٌ مِنْكَ عَلَى نَفْسِكَ".

तर्जुमा: ह़ज़रत अबू ज़र (जुन्दुब बिन जुनादह) रद़ियल्लाहु अ़न्हु कहते हैं कि मैंने पूछा:"ऐ अल्लाह के रसूल! कौन सा काम बेहतर है?" नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया: "अल्लाह पर ईमान लाना और उसके रास्ते में जिहाद करना।" ह़ज़रत अबू ज़र कहते हैं मैंने फिर पूछा कि: "कौन सी गर्दन (आजाद करना) बेहतर है?" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया: "जो उसके मालिक की नजर में ज्यादा बेहतर और ज्यादा कीमती हो।" वह कहते हैं कि मैंने कहा: "अगर मैं यह काम न कर सकूँ तो?" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "किसी कारिगर की मदद कर दो या किसी अनाड़ी का काम खुद कर दो।" ह़ज़रत अबू ज़र कहते हैं कि फिर मैंने कहा: "ऐ अल्लाह के रसूल! अगर मैं ऐसे काम की ताकत न रखूँ तो आप क्या फरमाते हैं?" नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "लोगों से अपनी बुराई रोक लो (उन्हें तकलीफ न पहुंचाओ) तो यह तुम्हारी तरफ से खुद तुम्हारे लिए सदका़ है।"

ह़ज़रत अबू ज़र गिफारी रद़ियल्लाहु अ़न्हु नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से ज्यादातर इस बारे में पूछा करते थे कि कौन सा काम ज्यादा बेहतर है और बराबरी की सूरत में कौन से काम को पहले किया जाए। नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम बड़ी खुशी के साथ उनके सवालों का जवाब देते। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उनसे बहुत ज्यादा प्यार करते थे, उनका खास ख्याल रखते थे और उनके अंदर इस्लाम की सच्ची सूरत देखते थे जिसे वह लोगों में लेकर घूमते थे और हर जगह उनके बेहतरीन साथी थे।

अल्लाह पर ईमान लाना ही सभी सिद्धांतों की अस्ल है। यह ऐसे ही है जैसा कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि: "ईमान की सत्तर और कुछ शाखें हैं। उनमें सबसे ऊपर ला इलाह इल्लल्लाह है और सबसी नीची रास्ते में से तकलीफ देने वाली चीज को हटाना है।"

ह़ज़रत अबू ज़र नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के जवाब को समझ गए और अच्छी तरह से जान गए कि नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम आपसे क्या चाहते हैं। और वह चीज थी: अल्लाह के लिए जिहाद करना जिसकी बुनियाद ईमान हो। क्योंकि ह़ज़रत अबू ज़र बहुत बुद्धिमान और समझदार थे और शब्द के अर्थ को जल्दी समझ जाते थे। वह पहले से ही यह जानते थे कि ईमान तमाम भलाइयों को शामिल है। लिहाज़ा नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अगर केवल इसी को जवाब में बताते तो यह पूरा जवाब नहीं होता लेकिन आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने ईमान के साथ उसकी सबसे बड़ी शाखा को बढ़ा दिया तो ह़ज़रत अबू ज़र समझ गए कि यही हकीकी जवाब है और इससे पहले ईमान का बताना इसके सहीह होने और स्वीकार होने की शर्त के तौर पर था। तो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि का उनसे कहने का मतलब था कि "ईमान की हालत में अल्लाह के लिए जिहाद करो।"और हम भी यह जानते हैं कि किसी भी काम का सही होना और उसका स्वीकार होना ईमानदारी पर आधारित है। और ईमानदारी संपूर्ण ईमान से ही पैदा होती है। एक सही़ह़ हदीस में आया है: "अपने धर्म में ईमानदार रहो थोड़ा काम भी काफी होगा।" अपने धर्म में ईमानदार होने का मतलब है कि सिर्फ अल्लाह ही के लिए झुको और उसी की रजामंदी के लिए हर काम करो। लिहाज़ा यहाँ धर्म का माना है झुकना और आज्ञा का पालन करना।

ईमानदारी का मतलब है दिल को लोगों की नजर और काम को दिखावे से अलग करके केवल अल्लाह के साथ जोड़ देना।

याद रखें कि इंसान के ईमान का अंदाजा उसकी ईमानदारी और उसके अल्लाह की आज्ञा का पालन करने से होता है।

तथा जिसका ईमान मजबूत होता है उसका हौसला मजबूत होता है। और वह अपने नफ्स पर काबू रखता है। और जो अपने नाफ्स पर काबू पा लेता है वह अपने आप से शैतान को भगा देता है और तब वह अल्लाह का सच्चा बंदा और अल्लाह की रज़ामंदी के लिए उसके रास्ते में जिहाद करने वाला सच्चा सिपाही बन जाता है कि फिर उसे किसी का डर नहीं रहता है। अतः सबसे पहले ईमान है उसके बाद अल्लाह के लिए जिहाद करना है और तीसरे नंबर पर सभी नेक काम हैं जिनका ईमान तकाज़ा करता है।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day