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(178) अल्लाह के बंदो को तकलीफ मत पहुंचाओ, उन्हें अपमानित मत करो और न ही उनके ऐब ढुंडो।
عَنْ ثَوْبَانَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: "لَا تُؤْذُوا عِبَادَ اللَّهِ، وَلَا تُعَيِّرُوهُمْ، وَلَا تَطْلُبُوا عَوْرَاتِهِمْ؛ فَإِنَّهُ مَنْ طَلَبَ عَوْرَةَ أَخِيهِ الْمُسْلِمِ طَلَبَ اللَّهُ عَوْرَتَهُ حَتَّى يَفْضَحَهُ فِي بَيْتِهِ".
तर्जुमा: ह़ज़रत सौबान रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "अल्लाह के बंदो को तकलीफ मत पहुंचाओ, उन्हें अपमानित मत करो और न उनके ऐब ढुंडो। क्योंकि जो अपने मुसलमान भाई के ऐब ढुंढता है अल्लाह उसके ऐबों की पकड़ करता है यहाँ तक कि उसे उसके घर (तक) में रुसवा कर देता है।"
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो अपने मानने वालों को बुलंद अखलाक़ और अच्छे गुणों को अपनाने की तरफ बुलाता है। यह अच्छे गुण और विशेषताएं अनगिनत हैं किसी एक शाखा में सीमित नहीं हैं बल्कि जीवन की तमाम शाखाओं को शामिल हैं। तथा यह सभी ईमान से निकलती हैं। क्योंकि ईमान एक ऐसी अस्ल है जिसकी शाखाओं से कई शाखाएं निकलती हैं और हर शाखा के तहत अनगिनत महान गुण आते हैं। और उन तमाम शाखाओं और गुणों का संतुलन सामान्य अधिकारों में लोगों के बीच पूर्ण न्याय और पूरी बराबरी करना है।
हमारे समाज में भाईचारे को खत्म करने वाली सबसे बड़ी खतरनाक आफत यह है कि एक इंसान दूसरे इंसान को हकीर और कम समझता है और उसे हंसी-मजाक की नजरों से देखता है जिसकी वजह से दिलों में नफरत और दुश्मनी फैल जाती है।
लोगों का मजाक उड़ाना सबसे ज्यादा दुखी की बात है। क्योंकि हम में से कोई नहीं चाहेगा कि लोगों में उसका मजाक उड़ाया जाए भले ही मजाक उड़ाने वाला कोई भी हो। याद रखें कि जिन लोगों का मजाक उड़ाया जाता है उससे उनकी भावनाओं को तकलीफ पहुंचती है, उनकी मानवता, लोगों में उनके स्थान और अल्लाह के यहाँ उनके दर्जे का अपमान होता है। क्योंकि एक सच्चा मुसलमान अल्लाह के यहाँ फरिश्तों से भी ज्यादा प्यारा है। इसलिए कि उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और अपने आप, अपनी ख्वाहिश, अपने शैतान और अपनी दुनिया पर काबू पाकर अपने अल्लाह की रजामंदी और खुशी को आगे रखा।
प्यारे भाइयों! मुसलमान मुसलमान का भाई है। लिहाज़ा जहाँ तक हो सके उसे किसी तरह की कोई तकलीफ न दे, किसी गलत बात से उसकी भावनाओं को ठेस न पहुंचाए, बुरी नजर से देख कर उसे कम न जाने और न ही अपने दिल में उसके लिए बुराई छुपाए।
लिहाज़ा सच्चा मुसलमान वह है जो अपने मुसलमान भाई के लिए वह चीज पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता हो और उसके लिए वह चीज नापसंद करे जो अपने लिए नापसंद करता हो। और जब उसे तकलीफ देना चाहे तो उसके अंदर का तक़वा और परहेज़गारी उसे ऐसा करने से रोक दे और उसे गुस्सा थूक देने और माफ करने पर उभारे।
याद रहे कि अल्लाह ने हमें यह किताब वालों (यहूदियों और ईसाइयों) के साथ संबंध रखने की इजाजत दी है और हमें उनके साथ भी भलाई करने का आदेश दिया है जबकि वे हमसे नेक नियति जाहिर करें, हमें किसी तरह की तकलीफ न दें और न ही हमारे पीछे दुश्मन लगाएं।