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(183) अपने भाई की मुसीबत पर खुशी मत मनाओ।
عَنْ وَاثِلَةَ بْنِ الْأَسْقَعِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ "لَا تُظْهِرْ الشَّمَاتَةَ لِأَخِيكَ، فَيَرْحَمَهُ اللَّهُ وَيَبْتَلِيكَ".
तर्जुमा: ह़ज़रत वासिला बिन असक़अ़ रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "अपने भाई की मुसीबत पर खुशी मत मनाओ। क्योंकि हो सकता है कि अल्लाह उस पर कृपा (रह़म) करे और तुम्हें मुसीबत में डाल दे।"
ईमानी भाईचारा मुसलमानों के बीच आपसी प्यार और मोहब्बत पर आधारित है। और यह मोहब्बत हसद व जलन, घमंड और स्वार्थ से पवित्र दिल से होती है।
जो अल्लाह पर पूरा ईमान रखता है वह अपने भाई के लिए वह चीज पसंद करता है जो अपने लिए पसंद करता है। जब वह खुशी में हो तो उसे बधाई देता है और अगर दुख या परेशानी में हो तो उसे तसल्ली देता है। उसकी तकलीफ और परेशानी दूर करता है और उसके दुख में उसका साझेदार होता है।
इस ह़दीस़ शरीफ में नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उन लोगों को संबोधित कर रहे हैं जिनका अभी ईमान पूरा नहीं हुआ है। उन्हें एक ऐसी खतरनाक आफत से चेतावनी दे रहे हैं जो उन्हें बड़ी मुसीबत में डाल सकती है, उनकी खुशी नष्ट कर सकती है और उन्हें जीवन के आनंदो से मेहरूम कर सकती है। वह आफत है: "अपने मुसलमान भाई से हसद और जलन की वजह से उसे मुसीबत और तकलीफ में देखकर खुश होना।" ऐसा करना दुश्मनी का सबूत होता है। क्योंकि कोई भी आदमी किसी की परेशानी पर उसी समय खुश होता है जबकि उनके बीच किसी प्रकार की दुश्मनी हो अब चाहे खुले तौर पर हो या खुफिया तौर पर। तथा यह (यानी किसी मुसीबत में खुशी मनाना) घाटे व अपमानित होने, हार जाने और मेहरूम रह जाने का भी सबूत होता है।
नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का फरमान: "अपने भाई की मुसीबत पर खुशी मत मनाओ।" का मतलब है कि ऐसा मत करो न जाहिरी तौर पर और न अपने दिल में। यानी नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: किसी की मुसीबत पर खुश मत हो। और अगर आपके दिल में इस तरह की भावना उठ भी जाए तो उसे जाहिर मत करो बल्कि हर तरह से उसे दूर करने की कोशिश करो।
एक सच्चा मुसलमान हमेशा शांति और सलामती चाहता है। अपने ऊपर कभी शैतान का बस नहीं चलने देता है। न कभी वह इस गंदी और घिनौनी आफत से अपना दिल गंदा करता है। बल्कि हमेशा वह अपने दिमाग में रखता है कि समय घूमता है आज मेरे साथ है तो कल मेरे खिलाफ भी हो सकता है।
याद रखें कि अल्लाह की तरफ से सलामती व सहतमंदी ऐसा शब्द है जो बहुत से मकसदों और मानों को शामिल है। इसका मतलब है: शरीरों की रोगों से सलामती, दिलों की हसद व जलन, घमंड, मुनाफकत (दो रुखा होना) और उन सभी बुरी आदतों से सलामती जो ईमान को गंदा कर देती हैं, और धन की हलाकत और बर्बादी या नुकसान या हराम में मिलावट या उसके गलत जगह इस्तेमाल होने से सलामती।
प्यारे इस्लामी भाइयों! किसी की मुसीबत पर खुश होना यह एक बड़ा गुनाह तथा बुरी आदत है जो जैसे कि हमने पहले बयान किया हसद और जलन और पूर्ण ईमान के खिलाफ अन्य बुरि आफतों से पैदा होती है। इसीलिए इस तरह की बुरी आदत वाला आदमी अपने बुरे व्यवहार की वजह से ज्यादातर आफत और परेशानी में रहता है। क्योंकि एक कहावत है कि “जैसी करनी वैसी भरनी”।