1. फोटो एल्बम
  2. (186) अपनी मैयतों को ला इलाह इल्लल्लाहु की तलकीन (उपदेश) करो। (यानी मरने वालों के सामने "ला इलाह इल्लल्लाहु" पढ़ो ताकि तुम्हें सुनकर वे भी पढ़ सकें।)

(186) अपनी मैयतों को ला इलाह इल्लल्लाहु की तलकीन (उपदेश) करो। (यानी मरने वालों के सामने "ला इलाह इल्लल्लाहु" पढ़ो ताकि तुम्हें सुनकर वे भी पढ़ सकें।)

431 2020/10/04
(186) अपनी मैयतों को ला इलाह इल्लल्लाहु की तलकीन (उपदेश) करो। (यानी मरने वालों के सामने

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "لَقِّنُوا مَوْتَاكُمْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ".

तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "अपनी मैयतों को ला इलाह इल्लल्लाहु की तलकीन (उपदेश) करो।"

मैयत को तलकीन या उपदेश करने का मतलब है कि नज़अ़ के समय (आत्मा निकलते समय) उसे कलिमए तौह़ीद (यानी ला इलाह इल्लल्लाहु) याद दिलाना। वह इस तरह की जो लोग उसके पास हों वे "ला इलाह इल्लल्लाहु" पढ़ें ताकि वह मरने वाला भी उसे पढ़ सके। और इस तरह से वही उसका दुनिया से जाते समय आखरी शब्द हो और अल्लाह उसे उसकी आत्मा निकलने तक उस पर साबित रखे। और ताकि कब्र में वह उसका साथी रहे और जब वह मुस्लमान कब्र से उठाया जाए तो वह कलमए तौह़ीद उसके लिए प्रकाश और अल्लाह के यहाँ उसकी दलील हो।

और बेहतर यह है कि उसके पास में शहादतैन को पढ़ा जाए यानी

  لا إلهَ إلاّ اللهُ محمّدٌ رسُولُ اللَّهِ

(ला इलाह इल्लल्लाह मुह़म्मदुर्रसूलुल्लाह) या

 أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا رَسُولُ اللَّهِ

(अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्ना मुह़म्मदर्रसूलुल्लाह।) पढ़ा जाए लेकिन मैयत को पढ़ने का आदेश न दिया जाए। क्योंकि हो सकता है कि वह सख्त तकलीफ और परेशानी में हो जिसकी वजह से वह "ना" कह दे और इस तरह इस कलमए तौही़द का इनकार हो जाए।(अल्लाह हम सभी को इससे सुरक्षित रखे।) क्योंकि मौत की बड़ी सख्तियाँ और कठिनाइयाँ है। अल्लाह हम सबको उनसे महफूज़ रखे।

और मुनासिब यह है कि कोई नेक आदमी या रिश्तेदार या करीबी दोस्त या दयालु बाप उसे इसकी तलकीन करे और याद दिलाए न कि कोई ऐसा आदमी जो उसका दुश्मन हो या जिसे वह यह सोचता हो कि यह मुझसे जलता है या मेरे मरने की तमन्ना रखता है। क्योंकि इंसान उसी आदमी को जल्दी जवाब देता है जिससे वह मोहब्बत करता है।

और यह तलकीन या उपदेश करना यानी याद दिलाना केवल मुसलमान ही के साथ खास है जैसा कि जाहिर है।

याद रखो मेरे प्यारे भाई! ऐसे समय में एक मुसलमान भाई की दूसरे मुसलमान भाई के लिए दुआ़ करना उसकी सिफारिश होती है। क्योंकि फरिश्ते उसकी दुआ़ पर आमीन कहते हैं। लिहाज़ा उनके आमीन कहने की बरकत से अल्लाह ने चाहा तो उसकी दुआ़ जरूर कबूल होगी। तथा नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया है: "जब तुम बीमार या मैयत के पास जाओ तो अच्छी बात करो। क्योंकि जो तुम बोलते हो फरिश्ते उस पर आमीन कहते हैं।"

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day