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(187) जिसने धोखा दिया वह हम में से नही है।
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَرَّ عَلَى صُبْرَةِ طَعَامٍ فَأَدْخَلَ يَدَهُ فِيهَا، فَنَالَتْ أَصَابِعُهُ بَلَلًا، فَقَالَ: "مَا هَذَا يَا صَاحِبَ الطَّعَامِ؟!". قَالَ: أَصَابَتْهُ السَّمَاءُ يَا رَسُولَ اللَّهِ. قَالَ: "أَفَلَا جَعَلْتَهُ فَوْقَ الطَّعَامِ كَيْ يَرَاهُ النَّاسُ؟ مَنْ غَشَّ فَلَيْسَ مِنِّي".
तर्जुमा: "ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम गल्ले (अनाज) के एक ढेर के पास से गुजरे तो अपना हाथ उस में डाला तो आपकी उंगलियों ने गीलापन महसूस किया। तो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "एक गल्ले वाले! यह क्या है?" उसने कहा: "ऐ अल्लाह के रसूल! इस पर बारिश पड़ गई थी।" नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"तो तुमने इसे (भीगे हुए अनाज को) ऊपर क्यों न रखा ताकि लोग इसे देख लेते? जिस ने धोखा दिया वह मुझसे नहीं।"
हजरत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु से उल्लेख एक दूसरी रिवायत में है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"जो हम पर हथियार उठाए वह हम में से नहीं और जो हमें धोखा दे वह (भी) हम में से नहीं। (यानी उन लोगों में से नहीं जो मेरे तरीके पर चलते हैं)"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की इनकिसारी और खाकसारी का आलम यह था कि आप खुद ही बाजार जाया करते थे ताकि अपनी जरूरत का सामान खरीदें, व्यापारियों की हालत देखें। तो जो सच्चाई और ईमानदारी के साथ व्यवहार करता हो उसे बरकत की दुआ़ दें और जो मुसलमानों जैसा व्यवहार न करता हो उसे नसीहत करें और ताकि लेनदेन और खरीदने और बेचने में जो उनके लिए जायज है या जो उन पर हराम है उसकी उन्हें शिक्षा दें।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम फितरती तौर पर बड़े दयालु थे। वह समझदारी, अच्छी नसीहत और संतुष्ट दलील के द्वारा लोगों को नेकी और भलाई की तरफ बुलाते और बुराई से रोकते थे।
धोखेबाज अपना भी दुश्मन है और लोगों का भी। जो दुश्मनी में हथियार उठाता है वह इसी के जरिए मारा जाता है और जो सत्य से मुकाबला करता है सत्य उसे बुरी तरह हराता है। और बगावत करने वाला ही ज्यादातर जाल में फंसता है।
याद रखें कि इस्लाम अपने मानने वालों से जिंदादिल और जागते जमीर का मुतालबा करता है कि जिसके जरिए अल्लाह के अधिकार और साथ में लोगों के अधिकार सुरक्षित रह सकें और जिसके जरिए कामों में बहुत ज़्यादा ज़्यादती या कमी या किसी तरह की धोखाधड़ी न हो।
इस वसियत के जरिए नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम धोखेबाज को ऐसा सबक सिखाना चाहते हैं कि जिससे वह अपने कहने-करने में सच्चाई और ईमानदारी की हकीकत को अच्छी तरह समझ सके।
सच्चाई और ईमानदारी ऐसी दो विशेषताएं हैं जो भलाई के सभी गुणों को शामिल हैं। और उनमें से हर एक से दूसरे का पता चलता है। अतः सच्चाई ईमानदारी है और ईमानदारी सच्चाई है।