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(188) लुक़त़ा (गिरी-पड़ी चीज़) (उठाने) का हुक्म।

778 2020/10/04
(188) लुक़त़ा (गिरी-पड़ी चीज़) (उठाने) का हुक्म।

زَيْدِ بْنِ خَالِدٍ الْجُهَنِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّهُ قَالَ: جَاءَ رَجُلٌ إِلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَسَأَلَهُ عَنْ اللُّقَطَةِ؟ فَقَالَ: "اعْرِفْ عِفَاصَهَا وَوِكَاءَهَا، ثُمَّ عَرِّفْهَا سَنَةً، فَإِنْ جَاءَ صَاحِبُهَا، وَإِلَّا فَشَأْنَكَ بِهَا". قَالَ: فَضَالَّةُ الْغَنَمِ؟ قَالَ: "لَكَ أَوْ لِأَخِيكَ أَوْ لِلذِّئْبِ". قَالَ: فَضَالَّةُ الْإِبِلِ؟ قَالَ مَا لَكَ وَلَهَا؟ مَعَهَا سِقَاؤُهَا وَحِذَاؤُهَا، تَرِدُ الْمَاءَ وَتَأْكُلُ الشَّجَرَ حَتَّى يَلْقَاهَا رَبُّهَا".

तर्जुमा: ह़ज़रत ज़ैद बिन खालिद जुहनी रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि एक आदमी नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास आया और लुक़त़ा (गिरी-पड़ी चीज़) के बारे में पूछा। आपने जवाब दिया: "उसके बर्तन और उसके बंधन को दिमाग में याद रख कर एक साल तक उसका ऐलान करते रहो अगर मालिक मिल जाए तो उसे दे दो वरना तुम्हें उसमें इख्तियार है।"

उस आदमी ने पूछा: "और अगर रास्ता भूली हुई बकरी मिले?"

नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "वह तुम्हारी होगी या तुम्हारे भाई की (जिसकी बकरी है।) वरना फिर भेड़िया उसे उठा ले जाएगा।"

उस आदमी ने पूछा: "और ऊंट जो रास्ता भूल जाए?"

नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "तुम्हें उससे क्या मतलब? उसके साथ खुद (पेट में जिसमें कई दिन का पानी भर लेता है) उसका मटका (पानी का बर्तन) है। उसके जूते (खुर) हैं। पानी पर वह खुद ही पहुंच जाएगा और खुद ही पेड़ के पत्ते खा लेगा और इस तरह किसी न किसी दिन उसका मालिक उसे खुद पा लेगा।"

नबी करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के सह़ाबा (साथी व अनुयायी) जहाँ तक होता था शक में डालने वाली छोटी-बड़ी सभी चीजों से बचते थे ताकि उनके सम्मान और उनके धर्म पर कोई आंच न आए। लिहाज़ा अगर उनके सामने कोई ऐसा मामला आता कि जिसके हलाल होने और हराम होने में उन्हें शक होता तो फौरन नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से उसके बारे में पूछते। नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अल्लाह की शिक्षा के मुताबिक उन्हें उस मामले में जवाब देते।

लुक़त़ा (गिरी-पड़ी चीज) हर उस सम्मान योग्य संपत्ति को कहते हैं जो बर्बादी की जगह में पड़ी हो और उसका मालिक का पता न हो। अब चाहे वह संपत्ति पैसे हों या कपड़े या इतना ज्यादा खाना कि खो जाने पर उसका मालिक उसे ढूंढो। चाहे वह संपत्ति रास्ते में मिले या मस्जिद में या खंडर या बस या ट्रेन आदि में।

गिरी-पड़ी चीज़ उठाने के पांच निम्नलिखित हुक्म हैं: वाजिब (अनिवार्य), मुस्तह़ब (बेहतर), ह़राम (नाजायज़), मकरूह (नापसंदीदा) और जायज़।

तो अगर गिरी-पड़ी चीज के बर्बाद होने का डर हो तो उसका उठाना वाजिब (अनिवार्य) है खासकर अगर वह गिरी-पड़ी कोई क़ीमती संपत्ति हो। यह उस समय है जबकि उठाने वाले को अपनी नियत खराब होने का डर न हो वरना तो उसे उठाना मकरुह (नापसंदीदा) है। और अगर (नियत खराब होने का) यकीन हो तो ह़राम है।

और अगर गिरी-पड़ी चीज को वह इसलिए उठाए कि उसके मालिक को वापस करेगा तो उसका उठाना मुस्तह़ब (बेहतर) है। क्योंकि यह भलाई पर मदद के जैसा है जिसका अल्लाह ने हमें आदेश दिया है।

और अगर ज़्यादा गुमान यह हो कि अगर उस गिरी-पड़ी का मालिक उसे ढूंढेगा या उसे उसकी जगह याद आ जाएगी तो खुद ही उसे मिल जाएगी या यह ज़्यादा गुमान हो कि अगर उसके अलावा कोई दूसरा आदमी उठाएगा तो वह उसे उसके मालिक तक पहुंचा देगा तो ऐसी सूरत में उसके लिए उस गिरी-पड़ी चीज को उठाना जायज़ होगा।

इस वसियत में संक्षेप रूप से हमने लुक़त़ा (गिरी-पड़ी चीज)  के हुक्मों के बारे में बताया। और अब हम फायदे को पूरा करने के लिए मुनासिब समझते हैं की लक़ीत़ का भी हुक्म बयान कर दें। लक़ीत़ अरबी भाषा का शब्द है। लक़ीत़ उस बच्चे को कहते हैं जो रास्ता भटक गया हो और ऐसे आदमी को मिल गया हो जिसे न उसका घर पता हो और न यह पता हो कि वह किसका बच्चा है। तो इस बारे में मैं कहता हूँ कि हर मुसलमान (बल्कि हर आदमी) जिसे भी भटका हुआ या गुमा हुआ कोई बच्चा मिले तो उसके लिए जरूरी है कि वह इस बच्चे को ले ले ताकि वह बच्चा हलाक होने से सुरक्षित रहे। और फिर अपने नजदीकी थाने या पुलिस स्टेशन में जाकर उसे दे दे या उस बच्चे के बारे में वहाँ के लोगों से पता करे जहाँ उसे वह बच्चा मिला हो या अखबारों, टीवी और रेडियो चैनलों आदि के द्वारा उसके बारे में खबर कर दे। और उसके घर वालों के मिलने तक उस बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार करे और नरमी से पेश आए।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day