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(193) अनाथों की संपत्तियों को व्यापार में लगा दो कि उन्हें ज़कात नहीं खाएगी।
عَنْ أَنس بِنْ مَالك رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُول الله صلَّى اللهُ عليه وسلَّم قَالَ: "اتجِرُوا فِي أَمْوَّالِ اليَتَامَى؛ لَا تَأْكُلُهَا الزَّكَاةُ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अनस बिन मालिक रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"अनाथों की संपत्तियों को व्यापार में लगा दो कि उन्हें ज़कात न खाएगी।"
इस्लाम कमजोरों जैसे अनाथों आदि की जालिमों के जुल्म से रक्षा करता है। और अपने मजबूत कानूनों और कीमती निर्देशों के जरिए उनकी संपत्ति को बर्बाद होने से बचाता है। लिहाज़ा अनाथ को अपमानित और रुसवा होने और उसकी संपत्ति को मुर्दा जमीर या कठोर दिल वालों के हड़पने के लिए नहीं छोड़ता है। और न ही आलसियों और नाकारा लोगों को इसकी अनुमति देता है कि वे उसकी संपत्ति को ऐसे ही रखे रहें कि वह थोड़ा-थोड़ा होकर सब खत्म हो जाए और उस अनाथ के पास कुछ न बचे जिसके कारण उस अनाथ को ज़िल्लत और रुसवाई का सामना करना पड़े।
अल्लाह ने इबादत और नेक काम को तिजारत (व्यापार) कहा है। क्योंकि उनसे बंदे को दुनिया और आखिरत में फायदे हासिल होते हैं।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम सल्लम के फरमान:"कि उन्हें ज़कात न खाएगी।" का मतलब है कि कहीं ऐसा न हो कि उन्हें ज़कात खा जाए। नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के इस फरमान में इस बात का सबूत है कि जिम्मेदार पर अनाथ की संपत्ति में ज़कात वाजिब (अनिवार्य) होती है। लिहाज़ा उसे चाहिए कि वह हर साल अपने मातहत अनाथ की संपत्ति में से उसकी तरफ से ज़कात निकाले। लेकिन उसकी संपत्ति को तिजारत व व्यापार में भी लगा दे। क्योंकि जब उससे व्यापार करके ज़कात निकाली जाएगी तो उसमें कुछ कमी नहीं आएगी वरना तो उसकी सारी संपत्ति ज़कात में ही चली जाएगी। यही नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की इस वसियत का मतलब है।
इस पाठ से हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि अनाथों की संपत्तियों की देखभाल करना सामूहिक या समाजिक, आर्थिक और इंसानी जरूरत है। और यह की फिक़ह की किताबों में उल्लेखित शर्तों जैसे निसाब और एक साल का गुजरना आदि पाए जाने पर सभी मालों में ज़कात वाजिब (अनिवार्य) हो जाती है।