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(195) मोमिन की फ़िरासत (अन्तर्दृष्टि, होशियारी व समझदारी) से डरो।
عَنْ أَبِي أمامة الباهلي رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: "اتَّقُوا فِرَاسَةَ الْمُؤْمِن،ِ فَإِنَّهُ يَنْظُرُ بِنُورِ اللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू उमामह बाहिली रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "मोमिन की फ़िरासत (अन्तर्दृष्टि, होशियारी व समझदारी) से डरो। क्योंकि वह सर्वशक्तिमान अल्लाह के नूर से देखता है।"
फ़िरासत का मतलब है: किसी चीज को ऊपर से देखकर उसे अंदरूनी तौर पर पहचानने और विभिन्न रायों में से सही और उचित व मुनासिब राए को चुनने में माहिर होना। यानी दिखाई और सुनाई देने वाली और लाभदायक और हानिकारक चीज पर गहरी नज़र होना।
मामलों में फ़िरासत व होशियार कभी तो बहुत ज़्यादा बुद्धि से आती है और कभी लोगों की आदतों और जिंदगी से बहुत ज़्यादा अनुभवों और तजरबों से प्राप्त होती है।
और केवल ईमान वाले ही बसीरत (अन्तर्दृष्टि, परख) वाले और चमकदार और चोकन्ना दिल वाले होते हैं।
जन्मजात (फितरती) फ़िरासत हासिल की हुई फ़िरासत से कहीं ज़्यादा बढ़कर होती है। पहले प्रकार की फ़िरासत अल्लाह का वह नूर (प्रकाश) होती है जिसे अल्लाह मोमिन बंदे के दिल में डालता है। और दूसरे प्रकार की फ़िरासत एक तरह की तेज बुद्धि होती है जिसकी ईमानी फ़िरासत को जरूरत नहीं होती जबकि यही ईमानी फ़िरासत के बिना पाई नहीं जाती। गौर करने से पता चल जाएगा कि यह बिल्कुल सही बात है।
हकीकी फ़िरासत पक्की अकलमंदी का नाम है। यह अक्लमंदी भलाई के तरीकों और उसके नजदीकी और दूरी चरणों को जानने का नाम है।
मोमिन की फ़िरासत अल्लाह के नूर की एक झलक है। जिस तरह इंसान घटता बढ़ता रहता है इसी तरह ईमानी फिरासत भी घटती बढ़ती रहती है।
फ़िरासत का मतलब यह भी है कि चेहरों से अच्छाई या बुराई को जान लेना और दिलों में छपी बातों को पहचान लेना। क्योंकि जो दिल में होता है वह चेहरे पर जाहिर हो जाता है।
याद रखें कि सारी कायनात में सबसे ज्यादा बसीरत (अन्तर्दृष्टि, फ़िरासत, होशियारी) वाले नबी ए करीम मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम हैं। क्योंकि वही सबसे ज़्यादा अल्लाह से डरने वाले हैं।