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पैगंबर मुहम्मद ने क्या आदेश दिया ?

Auther : Yusuf Estes
48228 2009/02/19 2024/12/18

          पैगंबर मुहम्मद ने क्या आदेश दिया ?
पैगंबर मुहम्मद -शांति और आशिर्वाद हो उनपर- ने कई  महत्वपूर्ण सिद्धांतों और नैतिकताओं की बुनयाद रखी, केवल यही नहीं बल्कि युद्ध के बहुत सारे ऐसे नियमों को स्थापित किया जिनका युद्धों के दौरान ख्याल रखना ज़रुरी है, और ----यह सारे नियम इतने ऊँचे हैं कि जिनेवा कन्वेंशन द्वारा उल्लिखित नियम भी इनके सामने बौने पड़ते हैं.

 

 

नीचे दिये गए कुछ नियमों पर ज़रा विचार करें:
सभी निर्दोष जान पवित्र होती है और किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए, सिवाय उनके जो इस्लाम धर्म से युद्ध करे. एक जान को बचाना पूरी दुनिया के लोगों की जान बचाने के बराबर है, और इसी तरह एक निर्दोष जिंदगी को नष्ट करना पूरी दुनिया के लोगों की जीवनों को नष्ट करने के बराबर है.
किसी भी जनजाति का जातिसंहार या (कत्लेआम) न्याय विरुद्ध है, यदि किसी जनजाति ने मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार भी किया हो तब भी उसके इंतेक़ाम में कत्लेआम जाएज़ नहीं है. बल्कि पैगंबर मुहम्मद -शांति और आशिर्वाद हो उनपर- के द्वारा आम माफी और आपसी सुरक्षा समझौता की पेशकश की और इनमें सभी शामिल थे बल्कि इनमे तो वे भी शामिल थे जिन्हों ने उनके साथ कई बार समझोतों का उल्लंघन किया था. और उन्होंने ऐसे लोगों पर भी हमला करने की अनुमति नहीं  दी यहाँ तक यह स्पष्ट रूप से पता जल जाए कि वे गद्दार हैं, और सदा पैगंबर हज़रत मुहम्मद -शांति और आशीर्वाद उन पर हो- और मुसलमानों को किसी भी कीमत पर युद्धों में नुकसान पहूँचाना चाहते, और इसी कारण कुछ यहूदियों को सज़ा दी गई थी जिन्होंने मुसलमानों के साथ गद्दारी कि थी.

 

 

उस समय दास बना लेना आम बात थी, और सारी जातियों और जनजातियों में इस का चलन था. लेकिन इस्लाम धर्म जब आया तो  गुलामों को मुक्त कराने के लिए प्रोत्साहित किया और लोगों को बताया कि यदि वे उनके पास पहले से उपस्थित गुलामों को मुक्त करेंगे तो अल्लाह उनको  बड़ा इनाम देगा. इसका उदाहरण खुद पैगंबर मुहम्मद-शांति  और आशीर्वारद उन पर हो- के नौकर ज़ैद बिन हरीसा हैं जो वास्तव में उन के बेटे की तरह माने जाते थे और बिलाल दास जिनको अबू बक्र ने केवल मुक्त कराने के उद्देश्य से ही खरीदा था.
 

 

जबकि पैगंबर मुहम्मद-शान्ति और आशीर्वाद उनपर हो-पर हत्या के कई प्रयास किए गए थे (सबसे प्रसिद्ध उस रात का हमला था जब पैगंबर मुहम्मद-शान्ति और आशीर्वाद उनपर हो- और अबू बक्र मक्का को छोड़ कर मदीना जारहे थे, और उन की जगह पर हज़रत अली बिस्तर पर  लेटे थे),यह सब होने के बाद भी उन्होंने अपने साथियों में से किसी को इन प्रयासों में शामिल होने वालोँ की हत्या की अनुमति नहीं दी. इसका सबूत यह है कि, जब वह मक्का में विजयी होकर प्रवेश किए तो उनके  सब से पहले शब्दों में यह शब्द शामिल थे और उन्होंने सब से पहले अपने अनुयायियों को आदेश दिया की  फलां फलां जनजातियों और परिवारों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाना है, और यह एक सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है और सच तो यही है कि उनके सभी कार्य में क्षमता और विनम्रता साफ़ झलकते थे. 
पैगंबर मुहम्मद-शान्ति और आशीर्वाद उनपर हो-के पैगंबर घोषित किए जाने से तेरह वर्ष तक फौजी लड़ाईयां मना  थी , बावजूद इसके कि अरब के लोग तो जंग में अधिक जानकारी रखते थे और उनको युद्ध लड़ने के ढंग सिखाने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वे तो एक एक युद्ध को कई कई दशकों तक लड़ते रहते, यह सब होते पर भी इस्लाम धर्म ने केवल उसी समय युद्ध की अनुमति दी जब अल्लाह ने युद्ध का उचित तरीका पवित्र कुरान में उल्लेख कर दिया और उसके उचित अधिकार और आज्ञाओं को खोल खोल कर समझा दिया, अल्लाह के आदेश ने बता दिया कि किस पर, कैसे, कब और किस समय तक हमला होना उचित है. और फिर बुनियादी ज़रुरत के ढांचे को नष्ट करना बिल्कुल सख्ती से मना है सिवाय उन विशेष स्तिथियों के जिनको अल्लाह ने उल्लेख किया है और वे  गिनेचुने स्तिथि थे.

 

 

 

वास्तव में हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उन पर-को उनके दुश्मन सदा गालीगलौज का निशाना बनाते थे, इसपर भी वह उनके लिए  मार्गदर्शन और भलाई की दुआ देते थे. इस बारे में मशहूर उदाहरण है  कि जब हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उन पर-"ताइफ" को गए थे और जब वहाँ के नेताओं ने आपके निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया,और उपयुक्त आतिथ्य का भी ख्याल नहीं रखे, यह तो यह वे सड़क के बच्चों को उनके खिलाफ ललकार दिये और वे उनपर पत्थर बरसाने लगे यहाँ तक कि उनका पवित्र शरीर घायल होगया और खून से उनके जूते भर गए, इस बीच हज़रत जिबरील- शांति हो उनपर- ने उन लोगों से बदला और इंतिकाम की पेशकश की, और यदि वह चाहेंगे तो अल्लाह के आदेश से वहाँ पहाड़ उनपर टूट पड़ेंगे और वे धरती में पिस जाएंगे. तब भी उन्होंने उनको श्राप नहीं दिया बल्कि एक अल्लाह की पूजा की ओर आने की दुआ देते रहे. 

 

 

पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद उन पर हो-ने बता दिया प्रत्येक  मनुष्य इस्लाम के मानव स्वभाव पर जन्म लेता है (मतलब अल्लाह की मर्ज़ी और उसके आदेश के अनुसार चलना और उसी की बात मानना और उसकी इच्छा और आज्ञाओं का पालन करना) भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को वर्तमान छवि पर उसकी योजना के अनुसार बनाया है, और उनकी आत्मा अल्लाह की राज्य है. और फिर जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं प्रचलित समाज और अपने पूर्वाग्रहों के प्रभाव के अनुसार अपने विश्वास को  बिगाड़ना शुरू कर देते हैं.

 

 

मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उन पर -ने अपने अनुयायियों को आदम, नूह, इब्राहीम, याकूब, मूसा, दाऊद, सुलैमान और यीशु-सबके सब पर शांति हो- के एक ही भगवान पर विश्वास और ईमान रखने का आदेश दिया,और सबको बताया कि यह सब अल्लाह के सच्चे दूत और पैगंबर हैं और उसके भक्ति हैं, केवल यही नहीं बल्कि उन पैगंबरों की स्थिति और ग्रेड का भी बहुत अधिक ख्याल रखा.लेकिन उनके बीच बिना कोई भेद किए, बल्कि अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि  जब भी उन में से किसी  पैगंबर का नाम उल्लेख किया जाए तो उस समय यह कहकर दुआ दें, "शांति हो उन पर " इसके इलावा उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया है कि टोरा (ओल्ड टैस्टमैंट), ज़बूर (भजन) और इंजील (या नई टैस्टमैंट) के मूल या स्रोत एक ही हैं जहां से कुरान उतरा है वहीं से वे भी उतरे हैं क्योंकि अल्लाह ने अपने दूत "जिबरील" के  द्वारा इन सब को उतारा है. और अल्लाह ने यहूदियों से कहा कि अपनी उतारी हुई  पुस्तक के अनुसार न्यायाधीश करें लेकिन वे लोग उनमें से कुछ छिपाने का प्रयास किए, यह सोच कर कि पैगंबर मुहम्मद-शांति हो उन पर- लिखते पढ़ते नहीं हैं इसलिए उनको पता नहीं चल सकेगा लेकिन अल्लाह ने तो वाणी के माध्यम से उनको सब कुछ बता दिया.

 

 


हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उनपर-ने कई घटनाओं के विषय में पहले से ही भविष्यवाणी की थी जो अभी हुवे नहीं थे बल्कि बाद में होने वाले थे, और फिर वास्तव में हुवे भी वैसे ही जैसा कि उन्होंने भविष्यवाणी की थी क्योंकि अल्लाह ने उनको वाणी के द्वारा होने से पहले ही उनको बता दिया था. उन्होंने बहुत सारी बातोँ का उल्लेख किया है जिनके विषय में उस समय के किसी भी मनुष्य को कुछ भी पता नहीं था, लेकिन आज हम देख रहे हैं कि एक बाद एक हर समय विज्ञान, चिकित्सा, जीव विज्ञान और भ्रूणविज्ञान और मनोविज्ञान और खगोल विज्ञान और भूविज्ञान, और ज्ञान की कई शाखाओं में सबूत पर सबूत सामने आते जा रहे हैं. केवल यही नहीं बल्कि अंतरिक्ष यात्रा और बेतार संचार के विषय में भी जिनको हम आज अपने कामों में प्रयोग कर रहे हैं  और जिन के विषय में अब कोई विवाद  ही नहीं है जब कि भूतकाल में कोई सोचा भी नहीं था.

 

 


पवित्र कुरान ने फिरौन की कहानी बताया कि वह हज़रत मूसा-शांति हो उनपर-का पीछा करने के दौरान लाल सागर में डूब गया, परमेश्वर सर्वशक्तिमान ने पवित्र कुरान में यह भी बताया कि फिरौन के शव को  निशानी और चिन्ह के रूप भविष्य में आने वाले लोगों के लिए सुरक्षित रखेगा. डॉ. मौरिस बुकाइले अपनी पुस्तक "बाइबल और कुरान और विज्ञान"  में कहा है कि फिरौन के शरीर की जो बात है वह मिस्र में खोज की गई है और अब दिखाने के लिए मुजियम घर में रखा हुवा है जो देखना चाहे वह देख ले,यह घटना तो  हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उनपर- के समय से कई हज़ार साल पहले घटी थी, और फिरौन का शरीर तो अभी अभी पिछले कुछ दशकों के दौरान सामने आया और इस तरह इसकी सच्चाई पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर-की मृत्यु के सदियों के बाद प्रकाशित हुई.

 


पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर- या उनके अनुयायियों में से किसी ने भी कभी भी यह दावा नहीं किया कि वह भगवान या ईश्वर का पुत्र हैं या  देवता हैं बल्कि सदा से यही कहना है कि  वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पैगंबर हैं परमेश्वर ने उन्हेँ अपना एक दूत चुना. उन्होंने सदा इसी बात पर जोर दिया कि लोग अकेले भगवान की महिमा करें और किसी भी रूप में उनकी अपनी या उनके साथियों की पूजा न करें, जबकि बहुत सारे लोग ऐसे आम लोगों को भी जो अब जिवित भी नहीं हैं और जिनके नाम काम सब कुछ मिट चुके हैं ऐसे लोगों को भी भगवान के पद तक पहूँचा देते हैं. और थोड़ा भी नहीं झिझकते हैं, जबकि  इतिहास गवाह है कि उन व्यक्तियों में से किसी से भी उन उन योगदानों का एक भाग भी प्राप्त नहीँ हुवा जो   पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर-ने पूरी मानवता के लिए किया.
 

 

 

सब से अधिक मुख्य कारण जो अल्लाह के पैगंबर -शांति और आशीर्वाद हो उनपर- को उत्साहित  करता था वह केवल यही था कि पूरी मानवता को एक ही अल्लाह की पूजा पर इकट्ठा कर दिया जाए, जो आदम और दूसरे सारे पैगंबरों-उन सब पर शांति हो- का पालनहार है, वह सदा यही लक्ष्य को पूरा करना चाहते थे कि सारी मानवता परमेश्वर के द्वारा निर्धारित नैतिक नियमों को समझ लें और उनको लागू करें.
 

 

और आज चौदह शताब्दियां बीत जाने के बाद भी अल्लाह के पैगंबर -शांति और आशीर्वाद हो उनपर- की  जीवन और उनकी शिक्षाऐं जूं की तुं बिना किसी कमी बेशी के उपस्थिति हैं, जिन में मनुष्य के सारे रोगों के उपचार के लिए अनन्त आशा मौजूद है, बिल्कुल वैसे ही जैसा कि अल्लाह के पैगंबर के समय में हुवा था. न तो यह मुहम्मद- शांति और आशीर्वाद हो उनपर- या उनके अनुयायियों का दावा है   बल्कि यही इतिहास का कहना है, और महत्वपूर्ण तारीख और निष्पक्ष इतिहास का फैसला है जिस से भागना संभव नहीं हैं.
 

 

मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर- ने स्प्ष्ट कहा कि वह अल्लाह के भक्ति, उसके  दूत, और  उसके पैगंबर  हैं, और वह एक ही परमेश्वर है जिसने आदम और  इब्राहीम  और  मूसा और  दाऊद और  सुलैमान  और मरियम के पुत्र यीशु-शांति हो उन सब पर-को पैगंबर बना करे भेजा, और पवित्र कुरान परमेश्वर की ओर से जिबरील फरिश्ता-शांति हो उनपर- के द्वारा उनपर वाणी के रूप में उतारा गया. और उन्होंने लोगों को इस बात पर ईमान रखने का आदेश दिया की अल्लाह एक है उसका कोई साझेदार नहीं है. इसी तरह उसके आदेशों पर जहाँ तक होसके चलने और उसकी शिक्षाओं के पालन का हुक्म दिया इसके इलावा उन्होंने खुद को  और  अपने अनुयायियों को हर प्रकार की बुराई और अपमानजनक व्यवहार से दूर रखा, इसी तरह खाने-पिने का उचित तरीक़ा सिखाया  केवल यही नहीं बल्कि शौचालय का भी ढंग बताया. बल्कि हर हर काम का उचित ढंग बताया. और यह भी समझा दिया कि यह सब अल्लाह की और से उतारी गई.
 

 

वह बुरी प्रथाओं और गंदी आदतों से अपने आप को और अपने अनुयायियों को मना किया , उन्हें खाने, पीने का उचित ढंग सिखाया, केवल यही नहीं बल्कि शौचालय के विषय में भी सही तरीका बताया,   सच तो यह है कि उन्होंने हर प्रकार के व्यवहार का साफ रास्ता दिखा दिया, और उन्होंने दावा किया कि यह अल्लाह की ओर से उतारा हुआ संदेश है


 

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