1. सामग्री
  2. दिन और रात की हज़ार सुन्नतें – खालिद अल-हुसैन
  3. सोने से पहले की सुन्नतें

सोने से पहले की सुन्नतें

सोने से पहले की सुन्नतें:

- सोने से पहलेयह दुआ पढ़े:

 

"باسمك اللهم أموت وأحيا"

"बिस्मिकल्लाहुम्मा अमूतु व अहया" (हे अल्लाह! मैं तेरे ही नाम पर मरता हूँ और जीता हूँ lइसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया है l
अपनी दोनों हथेलियों को इकठ्ठा करे और सूरह " क़ुल हुवल्लाहु अहद" और क़ुल अऊज़ु बिरब्बिल- फलक़ " और " क़ुल अऊज़ु बिरब्बिन-नास" पढ़कर उसमें फूंके और चेहरा, सिर सहित जहाँ तक शरीर पर हाथ पहुँच सके हाथ फेरे, इस तरह तीन बार करे lइसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया है l    
- "आयतल-कुर्सी" यानी अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल- हय्युल-क़य्यूम पढ़े lइसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया है l

 इस आयत को पढ़ने के फल : जो भी इसे पढ़ेगा तो अल्लाह की ओर से उस पर लगातार एक रक्षक मुतय्यन रहेगा और शैतान उसके पास फटकेगा भी नहीं lजैसा कि ऊपर की हदीस में है l
और फिर यह दुआ पढ़े :

 

"باسمكربي وضعت جنبي وبك أرفعه ، إن أمسكت نفسي فارحمها وإن أرسلتها فاحفظهـا بما تحفظ بـه عبـادك الصـالحين"

"बिस्मिका रब्बी वज़अतु जंबी व बिका अर्फ़उहू, इन अम्सकता नफ्सी फर्हम्हा व इन अर्सल्तहा फह्फज़हा बिमा तहफज़ु बिही इबादकस-सालिहीन"      

(हे मेरे पालनहार! मैंने तेरे नाम से अपने पहलू को रखा और तेरे द्वारा ही उसे उठाऊंगा, यदि तू मेरी आत्मा को रोक लेता है तो तू उस पर दया कर, और यदि छोड़ देता है तो तू उसके द्वारा उसकी रक्षा कर जिसके द्वारा अपने विशेष दासों की रक्षा करता है lइसे बुखारी और मुस्लिम ने उल्लेख किया है l
और फिर यह दुआ पढ़े:

"اللهم إنك خلقت نفسي وأنت توفاها ، لك مماتها ومحياها إن أحييتها فاحفظها ، وإن أمتها فاغفر لها ، اللهم إني أسألك العافية"

(हेअल्लाह! तू ने मेरी आत्मा को बनाया, और तू ही उसे निधन देता है, तेरे ही लिए उसकी जीवन और उसका निधन है,यदि तू उसे जीवन देता है तो उसकी रक्षा कर और यदि तू उसे मौत देता है तो उसे माफ़ कर दे,हे अल्लाह! मैं तुझ से स्वास्थ्य मांगता हूँlइसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है l
- और तीन बार यह दुआ पढ़े:

"رب قني عذابك يوم تبعث عبادك"

"रब्बि क़िनी अज़ाबका यौमा तबअसु इबादक"

(हे मेरे पालनहार! तू मुझे उस दिन अपनी पीड़ा से बचा जब तू अपने दासों को उठाएगा) इसे अबू-दाऊदऔर तिरमिज़ी ने उल्लेख किया है lयह दुआ उस समय पढ़ना चाहिए जब अपने दाहिने हाथ अपने गाल के नीचे रखे l
७–इसी तरह तेंतीस (३३) बार( سبحان الله )  "सुब्हानल्लाह"(ख़ूब पवित्रता है अल्लाह के लिए) और तेंतीस (३३) बार ((الحمد لله(अल-हम्दुलिल्लाह) )प्रशंसा है अल्लाह के लिए(और चौंतीस (३४) बार "  "الله أكبر"अल्लाहु अकबर"(अल्लाह बहुत बड़ा है) पढ़े lइसे इमाम बुखारी और मुस्लिम ने उल्लेख किया है l

८–और फिर यह पढ़े:

 "الحمد لله الذي أطعمنا وسقانا وكفانا وآوانا ، فكم ممن لا كافي ولا مأوي"

                                 

"अल-हमदु लिल्लाहिल-लज़ी अतअमना, व सक़ाना व कफाना व आवाना, फ कम मिम्म्न ला काफिया व ला मअवा"

(सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जिसने हमें खिलाया और हमें पिलाया, और हमारे लिए काफ़ी हुआ और हमें पनाह दिया, जबकि कितने ऐसे हैं जिसका न कोई काफ़ी होने वाला है और न कोई पनाह है l) इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है l     

९- –इसी तरह यह दुआ पढ़ना चाहिए:

"اللهم عالم الغيب والشهادة فاطر السماوات والأرض ، ربَّ كل شيء ومليكه ، أشهد أن لا إله إلا أنت ، أعوذ بك من شر نفسي ومن شر الشيطان وشركه ، وأن أقترف على نفسي سوءاً أو أجره إلى مسلم"

 

"अल्लाहुम्मा आलिमल-ग़ैबि वश्शहादति फातिरस्-समावाति वल-अरज़ि, रब्बा कुल्लि शैइन व मलीकहु, अश्हदु अल्ला इलाहा इल्ला अन्ता, अऊज़ु बिका मिन शर्रि नफ्सी व मिन शर्रिश्शैतानि व शिरकिही व अक़तरिफा अला नफ्सी सूअन औ अजुर्रहू इला मुस्लिम"

(हे अल्लाह! देखी और अनदेखी को जानने वला! आकाशों और पृथ्वी का निर्माता!हर चीज़ का पालनहार और मालिक! मैं गवाही देता हूँ कि तुझको छोड़कर कोई पूजनीय नहीं है, मैं तेरी शरण में आता हूँअपनी आत्मा की बुराई और शैतान की बुराई और उसकी मूर्तिपूजा से, और अपनी आत्मा पर कोई बुराई करने अथवा किसी मुसलमान पर बुराई डालने से तेरी शरण में आता हूँ l)  इसे अबू-दाऊद और तिरमिज़ी ने उल्लेख किया है l

 १० – और यह दुआ पढ़े:

 "اللهم أسلمت نفسي إليك ، وفوضت أمري إليك ، ووجهت وجهي إليك ، وألجأت ظهري إليك ، رغبة ورهبة إليك لا ملجأ ولا منجا إلا إليك ، آمنت بكتابك الذي أنزلت وبنبيك الذي أرسلت"

 

"अल्लाहुम्मा अस्लम्तुनफ्सी इलैका, व फव्वज़तु अम्री इलैक, व वज्जह्तु वजही इलैक, व अल्जअतु ज़हरी इलैक, रग़बतन व रह्बतन इलैक, ला मल्जअ व ला मनजा इल्ला इलैक, आमन्तु बि किताबिकल-लाज़ी अन्ज़लता व बि नबिय्यिकल- लाज़ी अरसलत"

(हे अल्लाह! मैंने अपनी आत्मा को तेरे हिवाले किया, और मैंने अपने कार्य को तेरे सुपुर्द किया, और मैंने अपने चेहरे को तेरी ओर फेर दिया, और मैंने अपनी पीठ को तेरे हवाले किया , तुझ से उम्मीद करके और तुझ से डरते हुए, कोई शरण नहीं और कोई बचने का रास्ता नहीं है मगर तेरे सहारे , मैंने तेरी उस पुस्तक पर विश्वास किया जो तू ने उतारी है , और तेरे उस दूत पर विश्वास किया जिसे तू ने भेजा है l) इसे बुखारी और मुस्लिम ने उल्लेख किया l

११– और फिर यह दुआ पढ़े:

"اللهم رب السماوات السبع ورب العرش العظيم ، ربنا ورب كل شيء فالق الحب والنوى ، ومنزل التوراة والإنجيل والفرقان ، أعوذ بك من شر كل شيء أنت آخذ بناصيته ، اللهم أنت الأول فليس قبلك شيء ، وأنت الآخر فليس بعدك شيء ، وأنت الظاهر فليس فوقك شيء ، وأنت الباطن فليس دونك شيء ، إقض عنا الدين وأغننا من الفقر"

"अल्लाहुम्मा रब्बस-समावातिस्-सबइ व रब्बल-अर्शिल-अज़ीम, रब्ब्ना व रब्बा कुल्लि शै, फालिक़ल-हब्बि वन्-नवा, व मुन्ज़िलत-तौराति वल-इनजीलि वल-फुरक़ान, अऊज़ु बिका मिन शर्रि कुल्लि शैइन अन्ता आखिज़ुनबिनासिय्तिह, अल्लाहुम्मा अन्तल-अव्वलु फलैसा क़ब्लका शै, व अन्तल-आखिरु फलैसा बअदका शै, व अन्तज़-ज़ाहिरु फलैसा फव्क़का शै, व अन्तल-बातिनु फलैसा दूनका शै, इक़ज़ि अन्नद-दैना व अग़निना मिनल-फक़र"

(हे अल्लाह! सातों आकाशों का मालिक! और सम्मानित "अर्श" के मालिक! हे मेरे मालिक और हर चीज़ के मालिक! दानों और गुठलियों से (फल-फूल) खिलाने वाला!  "तौरात" इंजील और फुरक़ान(कुरान) को उतारने वाला! मैं हर उस चीज़ की बुराई से तेरी शरण में आता हूँ जिसकी पेशानी को तू पकड़े हुए है lहे अल्लाह! तू पहला है, तो तुझ से पहले कोई चीज़ नहीं है, और तू ही आखिर है तो तेरे बाद कोई चीज़ नहीं है , और तू ही प्रत्यक्षहै तो तेरे ऊपर कोई चीज़ नहीं है,और तू ही परोक्षहै तो तेरे से नीचे कोई चीज़ नहीं है , हमारी ओर से हमारे कर्ज़ को चुका दे, और हमारी ग़रीबी को दूर करके हमें मालामाल करदे l) इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है l
१२– इसी तरह सूरह "बक़रा" की आखिरी दो आयत "  آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنْزِلَإِلَيْهِ مِنْ رَبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ " आमनर-रसूलु बिमा उनज़िला इलैही मिर्-रब्बिही वाल-मुअमिनून"(रसूल उसपर जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा ईमान लाया और ईमानवाले भी .) से आखिर तक पढ़े l  क्योंकि सुभ हदीस में है: जो भी इन दोनों को पढ़ेगा तो वह दोनों उसे काफी होगी lइसे बुखारी और मुस्लिम ने उल्लेख किया है l

•:  इस हदीस में जो अरबी शब्द ((كفتاه" कफताहू"आया है उसके अर्थ पर विद्वानों के बीच मतभेद है , कुछ लोगों का कहना है कि उसका मतलब यह है कि वे दोनों रात की नमाज़ की जगह काफी है , और कुछ लोगों का कहना हैं कि उसका मतलब यह है कि वे दोनों आयतें हर प्रकार की बुराई, दुख और कठनाई को दूर करने के लिए काफी है lलेकिन दोनों अर्थ एक ही साथ सही होसकते हैं lइस बात को इमाम नववी ने "अल-अज़कार" नामक पुस्तक में उल्लेख किया है l 

१३– सोने के समय पवित्र रहना चाहिए क्योंकि शुभ हदीस में है:" जब बिस्तर पर आते हो तो पहले वुज़ू कर लो l"

१४– दाहिने पहलू पर सोना चाहिए: क्योंकि शुभ हदीस में आया है:" फिर तुम अपने दाहिने पहलू पर सोओl" इसे बुखारी और मुस्लिम ने उल्लेख किया है l
१५- और अपने दहिने हाथ को दाहिने गाल के नीचे रखे lजैसा कि शुभ हदीस में है: "जब तुम में से कोई अपने बिस्तर पर आए तो अपने बिस्तर को झाड़ ले, क्योंकि उसे पता नहीं है कि उसके बाद उसपर क्या आ पड़ा है?" इसे बुखारी और मुस्लिम ने उल्लेख किया है l 
१६– सोने से पहले   "قُلْ يَا أَيُّهَا الْكَافِرُونَ" ( क़ुल या अय्युहल-काफिरून) पढ़ना: और उसका फल यह है कि उसके द्वारा "शिर्क" मूर्तिपूजा से मुक्त हो जाएगा lइसे अबू-दाऊद, तिरमिज़ी और अहमद ने उल्लेख किया है, और इब्ने-हिब्बान और हाकिम ने इसे "सहीह" कहा है और ज़हबी ने इसपर समर्थन किया, और हाफ़िज़ इब्ने-हजर ने भी इसे विश्वशनीय बताया और अल्बानि ने इसे सही कहा है l

• सोने से पहले की सुन्नत के संबंध में इमाम नववी ने कहा: कोई भी व्यक्ति इस खंड में वर्णित सभी नियमों पर एक साथ अमल कर सकता है, और यदि न हो सके तो उनमें से जो जो अधिक महत्वपूर्ण है उस पर अमल कर ले l

•याद रहना चाहिए किखोज करने से हमें पता चलता है कि:ज्यादातर लोग दिन और रात में दो बार तो सोते ही हैं और इस आधार पर एक व्यक्ति कम से कम दो बार इन सारी सुन्नतों अथवा उन में से कुछ सुन्नत पर अमल कर सकता है lक्योंकि यह सुन्नतें केवल रात की नींद के लिए ही विशेष नहीं है बल्कि इस में दिन की नींद भी शामिल है lयह इसलिए कि सुभ हदीसों में रात दिन किसी को भी विशेष नहीं किया गया है l

सोने के समय इन नियमों पर अमल करने के परिणाम:

१) यदि एक मुसलमान सोने से पहले बराबर इन दुआओं को पढ़ता है तो उसके लिए सौ (१००) दान लिखा जाएगा, क्योंकि शुभ हदीस में है :" प्रत्येक सुब्हानल्लाह" (पवित्रता है अल्लाह के लिए) एक दान है,  और प्रत्येक "अल्लाहु अकबर"(अल्लाह बहुत बड़ा है) एक दान है, और प्रत्येक "अलहम्दुलिल्लाह" (सभी प्रशंसा अल्लाह के लिए  है) एक दान है, और प्रत्येक (ला इलाहा इल्लाहू) (अल्लाह को छोड़ कर कोई पूजनीय नहीं है) एक दान है l" इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है l    
* इमाम नववी ने कहा: इसका मतलब यह है कि एक दान करने का बदला और पुण्य मिले गा l
२) यदि एक मुसलमान सोने से पहले लगातार इन दुआओं को पढ़ता है तो उसके लिए स्वर्ग में सौ (१००) पेड़ लगा दिए जाते हैं lजैसा कि इब्ने-माजा के द्वारा उल्लेखित शुभ हदीस में आया है l

३– अल्लाह सर्वशक्तिमान अपने दास को उस रात सुरक्षित रखता है और शैतान को उस से दूर रखता है , और बुराइयों और कठनाईयों से उसे बचाता है l

४– इसके द्वारा एक व्यक्ति अल्लाह की याद , उसकी आज्ञा, उसपर भरोसा, विश्वास और उसकी एकता पर ईमान के साथ अपने दिन को समाप्त करता है l

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