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तुम में से कोई जब किसी औरत को देखे तो वह अपनी पत्नी के पास आ जाए।
ह़ज़रत जाबिर रद़ियल्लाहु अ़न्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की एक औरत पर नजर पड़ गई तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अपनी पत्नी ह़ज़रत ज़ैनब रद़ियल्लाहु अ़न्हा के पास गाए। वह उस समय अपने एक चमड़े को (दबाग़त देने के लिए) मल रही थीं। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उनसे (घर में) अपनी ज़रूरत पूरी की। फिर अपने सहा़बा की तरफ तशरीफ ले गए और फ़रमाया: " बेशक (फितने में डालने के हवाले से) औरत शैतान की सूरत में सामने आती है और शैतान ही की सूरत में मुड़कर वापस जाती है। तुम में से कोई जब किसी औरत को देखे तो वह अपनी पत्नी के पास आ जाए। (यानी उससे अपनी ख्वाहिश पूरी करले) यकीनन यह चीज़ उस ख्वाहिश को दूर कर देगी जो उसके दिल में (उस औरत को देखकर पैदा हुई) है।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम खुद अपने अ़मल के ज़रिए अपने सहा़बा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम के लिए बेहतरीन मिसाल कायम करते थे। आप उन्हें बताते कि अल्लाह से किस तरह डरा जाए और एक मुसलमान उस फितने से कैसे बचे कि जिसमें उसे पड़ने का अंदेशा हो।
लिहाज़ा इसी मकसद के लिए निकाह को लागू किया गया। लिहाज़ा जिसे शादी की सख्त जरूरत हो और ज़िना और बदकारी में पड़ने का अंदेशा हो और पत्नी के खर्च की ताकत रखता हो तो उसके लिए फोरन शादी करना वाजिब यानी जरूरी है। और जिसे शादी की जरूरत हो और खर्च देने की ताकत ना रखता हो लेकिन ज़िना का अंदेशा ना हो तो ऐसे व्यक्ति के लिए शादी करना मुस्ताहब यानी बेहतर है। क्योंकि ऐसा व्यक्ति हर समय महफूज़ नहीं रह सकता है।
और इसी वजह से अल्लाह तआ़ला ने मर्दों और औरतों दोनों को निगाह नीचे रखने और शर्मगाह (गुप्तांग) की हिफाज़त करने का हुक्म दिया है। लिहाज़ा जब मर्द किसी औरत को देखे तो निगाह नीची कर ले इससे पहले कि शैतान उसे बहकाए। क्योंकि अगर वह शैतान के बहकावे में आ गया और उसने पहला कदम उसकी तरफ उठा दिया तो हो सकता है कि वह शैतानी इरादे को अंजाम दिए बिना वापस ना आ सके।
अल्लाह ने मर्दों और औरतों के लिए एक सीमा रखी है और वह यह है कि उन्हें आपस में नाजायज़ मिलाप से मना फ़रमाया है ताकि किसी तरह का कोई भी फ़ितना ना हो। और मुसलमान पाक और साफ रहे। और नफ्स की ख्वाहिशें और शैतानी चालों से बचा रहे। बेशक यह सीमा और नियम का़एदा मज़हब और इज्जत आबरू को महफूज़ रखने का सबसे बेहतर ज़रिया है।
निगाह को आजा़द रहने देने का एक बुरा असर यह भी है कि उससे दिल अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल हो जाता है और वह लगातार गम और हसरत का शिकार हो जाता है। और कभी-कभी यह मरते दम तक रहता है। अल्लाह पाक बंदे को उसके अ़मल से ज़्यादा बदला देता है। तो जो अल्लाह के लिए किसी चीज़ को छोड़ता है अल्लाह उससे बेहतर बदला अ़ता करता है। लिहाज़ा जो अल्लाह की ह़राम की हुई चीज़ों से अपनी निगाह को नीचे कर लेता है तो अल्लाह उसके लिए ह़िकमत, बसीरत, ईमान, यकीन ज्ञान, पहचान और समझ के दरवाज़े खोल देता है जिन से उसका दिल रोशन हो जाता है और फिर वह अपने दिल की आंखों से दिलों के हाल पता कर लेता है।