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जल्द ही तुम मेरे बाद स्वार्थपरता (खु़दग़र्ज़ी) देखोगे।
तर्जुमा: ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह बिन मसऊ़द कहते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने हम लोगों से इरशाद फ़रमाया: "जल्द ही तुम मेरे बाद स्वार्थपरता (खु़दग़र्ज़ी) और ऐसे काम देखोगे जिन्हें तुम बुरा जानोगे।" लोगों ने कहाः "ए अल्लाह के रसूल ऐसे समय में आप हमें क्या करने का हुक्म देते हैं?" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:" तुम (उस समय के) उन (ह़ाकिमों) का अधिकार देना (यानि उनकी आज्ञा का पालन करना) और अपना अधिकार अल्लाह से मांगना।"
स्वार्थपरता व ख़ुदग़र्ज़ी हमदर्दी और परोपकारिता के विलोम विशेषता है। ख़ुदग़र्ज़ी एक बुरी विशेषता और बुरी आदत है। तथा एक तरह से इस बुरी आदत में अल्लाह की नेमत की नाशुकरी भी है जबकि यह बुरी आदत मानवता व इंसानियत और फितरत के भी खिलाफ है।
भले ही स्वार्थ व ख़ुदग़र्जी़ में कुछ समय तक अपने लिए थोड़ा बहुत फायदा हो लेकिन यह एक बहुत बुरी आदत है। यह बुरी तरह का लालच है और यही सारी बुराइयों की जड़ है।
इसे स्वार्थपरता और हमारे नए समय में अनानियत भी कहते हैं। यह शब्द अनानियत अरबी भाषा का शब्द है और यह शब्द "अना " से लिया गया है जिसके माना आते हैं "मैं "। अतः जिस लालची के अंदर ख़ुदग़र्ज़ी की यह बुरी आदत होती है वह हर समय यही सोचता है " मैं, मैं, मेरी ज़ात, मेरी ज़ात, मुझे अपने आप के अलावा किसी की फिक्र नहीं, मुझे मुझ स ही मतलब है, मैं किसी और के बारे में क्यों सोचूँ?.......”
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इस ह़दीस़ शरीफ में हमें इसकी खबर दी है कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की जिंदगी के बाद यह ख़ुदग़र्ज़ी जरूर पाई जाएगी। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की जिंदगी में मुहाजरीन व अंसारी और दूसरे सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम के अन्दर परोपकारिता (यानी अपने आप से दूसरे को आगे रखना) और कुर्बानी का जज़्बा कूट-कूट कर भरा हुआ था। अल्लाह ने असांर की इस आदत का क़ुरआन मजीद में ज़िक्र फ़रमाया है और बयान फ़रमाया कि किसी चीज़ की ज़्यादा ज़रूरत के बावजूद भी अंसारी सह़ाबा वह चिज़ अपने मुहाजिरीन भाइयों को दे देते और अपने आप से उन्हें आगे रखते। लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं है कि यह आदत मुहाजरीन के अंदर नहीं थी। क्योंकि मुहाजिरीन सह़ाबा पहले इस्लाम लाए तो उनके अंदर तो यह आदत और भी ज़्यादा होगी। लिहाज़ा क़ुरआन मजीद में अंसारी सह़ाबा की यह आदत बयान होना हरगिज़ इस बात के खिलाफ नहीं है कि औरों के अंदर यह आदत ना हो और खासकर उन लोगों के अंदर जिन्हें सिर्फ इस्लाम लाने की वजह से नाहक़ उनके घरों और माल व दौलत से बेदखल कर गया और जिन्होंने अपने घरों, अपने परिवार वालो, माल व दौलत और अपनी जायदादों को नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर कुर्बान कर दिया और आपकी और इस्लाम की खातिर सब कुछ छोड़ दिया।