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हज़रत आइशा पुत्री हज़रत सिद्दीक़- अल्लाह उ
हज़रत आइशा क़ुरआन की व्याख्या और हदीस की एक माहिर महिला
(سورة القمر:46)(بل الساعة موعدهم والساعة أدهى وأمر)
(नहीं, बल्कि वह उनकी घड़ी है, जिसका समय उनके लिए बड़ी आपदावाली और कटु घड़ी हैl) तो उस समय मैं छोटी बच्ची थी और मक्का में खेलती कूदती थी और जब सूरह अल-बक़रा और सूरह अन-निसा उन पर उतरी तो मैं उनके पास थीl
कई महत्वपूर्ण कारणों में से एक यह भी है कि वह अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-पर ईशवाणी उतरने को देखती थीं और क़ृरआन की आयतों के अर्थों और उनके पीछे छिपे रहस्यों के बारे में उनसेपूछती थीं इस से उनको दो बातें एक साथ प्राप्त हो गईं: एक तो उतरते ही क़ृरआन की आयतों को सुनती थीं और फिर उसके अर्थ को भी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से प्राप्त कर लेती थीं, इसके साथ ही उनको अरबी भाषाकी बारीकियां भी उनपर प्रकाशित होती गईं जिनका जानना किसी भी मुफस्सिर (क़ृरआन के अर्थ के माहिर) के लिए बहुत ज़रूरी है l
हज़रत आइशा सदा इस बात का ख्याल रखती थीं कि पवित्र क़ृरआन की व्याख्या सावधानीसे की जाए ताकि उनकी व्याख्या धर्म के सिद्धांतों औरइस्लामी परम्परा के मुताबिक रहे, और यही बात हज़रत उरवा की बात से समझ में आती है, हज़रत उरवा ने एक बार हज़रत आइशा से इस आयत के विषय में पूछा:
(حتى إذا استيأس الرسل و ظنوا أنهم قد كُذِبُوا جاءهم نصرنا)(سورة يوسف :110)
(यहाँ तक कि जब वे रसूल निराश होने लगे और वे समझने लगे कि उनसे झूट कहा गया था कि हमारी सहायता पहुँच गईl)(सूरह यूसुफ:११०)
मैंने कहा: كُذِبُوا (कुज़िबू) या كُذِّبُوا(कुज्ज़िबू) तो हज़रत आइशा ने कहा:كُذِّبُوا(कुज्ज़िबू) तो मैंने कहा: मतलब यह है कि रसूलों को विश्वास हो गया था कि उनकी जाति ने उनको झुटला दिया तो यह तो विश्वास हुआ न कि गुमान, तो उन्होंने उत्तर दिया: निस्संदेह उनको विश्वास हो गया था तो मैंने कहा:و ظنوا أنهم قد كُذِبُوا(उनको गुमान हुआ कि उनको झूट कहा गया)इस पर उन्होंने कहा: मैं अल्लाह की पनाह में आती हूँ, रसूलों के लिए यह उचित नहीं होता है कि वे अपने मालिक पर गुमान या शक करें तो फिर मैंने कहा: फिर इस आयत का क्या अर्थ होगा? तो वह बोलीं: वास्तव में उन रसूलों के माननेवालों के बारे में है, जो उन पर विश्वास कर चुके थे और उनको सच मान चुके थे लेकिन जब ज़ियादा दिनों तक वे परीक्षण में पड़े रहे और अल्लाह की सहायता के आने में देरी हुई यहां तक कि रसूल अपनी जाति से बिल्कुल निराश हो गए और रसूलों को लगा कि उनके माननेवाले भी उनको झुटा समझने लगे तो उस समय अल्लाह की सहायता आ गईl
इसके अलावा, हज़रत आइशा सदा यह कोशिश करती थीं कि क़ृरआन की आयतों के बीच संबंध स्पष्ट हो और क़ृरआन की व्याख्या क़ृरआन के माध्यम से करती थीं, उनकी इस नियमितता से बाद में आनेवाले लोगों के लिए रास्ता बन गया था बल्कि क़ृरआन को समझने के लिए एक बड़े सिद्धांत की बुनियाद पड़ गई, वास्तव में वह सहाबा के बीच हदीस की याद में बहुत माहिर थीं , बल्कि हदीस के याद करने में उनका मकाम पाँचवाँ था, पहला नंबर अबू-हुरैरा का था फिर इब्न उमर का फिर अनस बिन मालिक का और फिर इब्न अब्बास का –अल्लाह उन सब से खुश रहे-l
फिर भी, वह उन में प्रतिष्ठित थीं क्योंकि अक्सर बातें वह दिरेक्ट खुदहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से सुन कर कथित करती थीं, इसके अलावा, उनकी अक्सर हदीसों वे हैं जो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की प्रक्टिकल सुन्नतों से संबंधित हैं, इस तरह उनका कमरा हदीस का पहला स्कूल था जहां विद्वान आते थे और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के शुभ क़ब्र की ज़ियारत करते थे, और हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे खुश रहे-से हदीस भी सुन लेते थे जो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के सब से नज़दीक रहने वाली पत्नी थीं, और वह ज्ञान फैलाने में कभी किसी के साथ कंजूसी नहीं करती थीं,और उनके कथावाचकों की संख्या भी बड़ी है l
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे खुश रहे- यह मानती थीं और महत्व देती थीं कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की हदीसों के शब्दों को जूं की तूं कथित किया जाए, जैसा कि उरवह बिन जुबैर के कथन से स्पष्ट है, एक बार हज़रत आइशा ज़ुबैर को बोलीं:''ऐ मेरी बहन का बेटा! मुझे जानकारी मिली है कि अब्दुल्ला बिन अम्र हमारी ओर से गुज़र कर हज को जाने वाले हैं तो उनसे मिलो और उनसे पूछो, क्योंकि उनके पास हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से सुना हुआ महान ज्ञान है तो मैं उनसे मिला और उनसे बहुत सारी बातों के बारे में पूछा जिनको वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से सुने थे उरवह ने कहा: उसी में उन्होंने इस हदीस को भी उल्लेख किया:हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने फ़रमाया:निस्संदेह लोगों से ज्ञान एक दम नहीं छीना जाएगा बल्कि विद्वान उठा लिए जाएंगे तो ज्ञान भी उनके साथ उठ जाएगा,फिर लोगों के बीच मूर्ख लोग बड़े बन जाएँगे और वे बिना ज्ञान के फतवा(धर्म का हुक्म) देंगे, वे खुद भी भटकेंगे और दूसरों को भी भटकाएंगेlउरवह कहते हैं जब मैंने यह हदीस हज़रत आइशा को सुनाईं तो उन्होंने इसे बहुत महत्व दिया लेकिन अनजानापन दिखाई और बोलीं: क्या उन्होंने यह कहा है कि उन्होंने इसेहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से सुना है? उरवह कहते हैं जब वह आगए तो हज़रत आइशा ने कहा: देखो वह अब्दुल्लाह बिन अम्र आए हैं उनसे मिलो और ज्ञान के विषय में जो हदीस उन्होंने कथित की हैं उनके बारे में बात निकाल कर पूछो, तो मैं उनसे मिला और उनसे पूछा तो उन्होंने फिर उसी तरह उल्लेख किया जैसा पहली बार उल्लेख किया था, आगे उरवह कहते है:तो जब मैंने उनको फिर से बताया तो हज़रत आइशा बोलीं: मेरा ख्याल है कि उसने सही कहा, और उस में कुछ कमी बेशी नहीं कीl
इस हदीस को हज़रत आइशा ने कथित किया और यह हदीस सही है, इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है, देखिए मुस्लिम शरीफ हदीस नंबर :२६७३l
(والذين هم لفروجهم حافظون.إلا على أزواجهم أو ما ملكت أيمانهم فإنهم غير ملومين.فمن ابتغى وراء ذلك فأولئك هم العادون) (سورة المؤمنون:5)
इस हदीस को हज़रत आइशा ने कथित किया और यह हदीस सही है, देखिए मुस्लिम शरीफ हदीस नंबर:८३३l
यह हदीस हज़रत आइशा से कथित है, और सही है, देखिए बुखारी शरीफ हदीस नंबर:११४७, और २०१३l
निस्संदेह, हज़रत आइशा का इस्लामी ज्ञान में बड़ा योगदान रहा, जो छात्रों और विद्वानों के लिए एक चमकदार सूर्य साझी जाती थीं, और ऐसा क्यों न हो वह तो पूरी दुनिया के शिक्षक और सबसे प्यारे पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की सब से प्रिय और उनके नज़दीक रहने वाली थीं, वह उनसे बहुत कुछ सीखीं थीं और फिर इस्लामी समुदाय को पहूँचाईंlवास्तव में वह तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के मिशन के ज़ंजीर की एक कडì