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सहाबा और अबू बक्र सिद्दीक़ के नेतृत्व के बारे में अह्ले सुन्नत का मत
आप के इस कथन का क्या प्रमाण है कि इमाम अली रज़ियल्लाहु अन्हु पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बाद नेता नहीं बन सकते थे?
हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए है।
पहला : अह्ले सुन्नत व जमाअत के सिद्धांतों में से एक यह है कि उनके दिल और उनकी ज़ुबानें पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा के प्रति सुरक्षित और साफ होती हैं, उनका दिल कीना-कपट, द्वेष और घृणा से पाक होता है, तथा उनकी ज़ुबानें हर उस कथन और वचन से पवित्र होती हैं जो उनके योग्य नहीं हैं, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
"और (उन के लिए ) जो उन के बाद आयें, जो कहें गे कि हे हमारे रब! हमें माफ कर दे और हमारे उन भाईयों को भी जो हम से पहले ईमान ला चुके हैं और ईमान वालों की तरफ से हमारे दिल में कपट (और दुश्मनी ) न डाल, हे हमारे रब ! बेशक तू बड़ा शफ्क़त (प्रेम) और दया (रहम) करने वाला है।" (सूरतुल हश्र :10)
तथा पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान का अनुपालन करते हुये : "मेरे सहाबा (साथियों) को बुरा-भला न कहो (उन्हें गाली न दो ), उस अस्तित्व की सौगन्ध ! जिसके हाथ में मेरी जान है, यदि तुम में से कोई व्यक्ति उहुद पहाड़ के बराबर सोना भी खर्च कर डाले तो उनके एक मुद्द (अर्थात् 510 ग्राम) बल्कि उसके आधे तक भी नहीं पहुँचे गा। (बुखारी हदीस संख्याः3673, मुस्लिम हदीस संख्याः 2541)
अहले सुन्नत व जमाअत के सिद्धान्तों में से यह भी है कि वे क़ुर्आन व हदीस और विद्वानों की सर्व सहमति से सहाबा की जो प्रतिष्ठायें और पद व स्थान साबति हैं उनको स्वीकार करते हैं, और उन सहाबा को जिन्हों ने स्पष्ट विजय -अर्थात हुदैबिया की संधि- से पहले अपना माल अल्लाह के रास्ते में खर्च किया और जिहाद किया है, उन लोगों पर प्राथमिकता और वरीयता देते हैं जिन्हों ने इस के बाद खर्च किया और जिहाद किया है, क्योंकि अल्लाह ताआला का फरमान हैः "तुम में से जिन लोगों ने फत्ह (विजय) से पहले अल्लाह के रास्ते में दिया और जिहाद किया है वह (दूसरों के) बराबर नहीं, बल्कि उन लोगों से बहुत ऊँचे पद के हैं, जिन्हों ने फत्ह के बाद दान किया और जिहाद किया। हाँ, भलाई का वादा तो अल्लाह का उन सब से है, और जो कुछ तुम लोग कर रहे हो उसे अल्लाह जानता है।" (सूरतुल हदीदः 10)
तथा मुहाजिरीन को अन्सार पर प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान हैः "और जो मुहाजिर (मक्का से मदीना आये हुये लोग) और अंसार (मदीना के मूल निवासी) पहले हैं, और जितने लोग भलाई के साथ (बिना किसी स्वार्थ के) उनके पैरोकार हैं, अल्लाह उन सभी से खुश हुआ और वे सब अल्लाह से खुश हुए और अल्लाह ने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं, जिन में वे हमेशा रहेंगे, यह बड़ी कामयाबी है।" (सूरतुत्तौबाः 100)
तथा इस बात पर विश्वास रखते हैं कि अल्लाह तआला ने बद्र वालों से कहा -और उनकी संख्या 313 थी- : तुम जो चाहो करो मैं ने तुम्हें माफ कर दिया, क्योंकि अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "अल्लाह तआला बद्र वालों पर झाँक कर कहा कि तुम जो चाहो करो मैं ने तुम्हें क्षमा कर दिया।" (बुखारी हदीस संख्याः 3007, मुस्लिम हदीस संख्याः 2494)
तथा इस बात पर ईमान रखते हैं कि जिसने पेड़ के नीचे बैअत किया था उन में से कोई भी सहाबी नरक में नहीं जाये गा, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसकी सूचना दी है, बल्कि अल्लाह तआला उन से खुश हो चुका और वो भी अल्लाह से खुश हैं, उनकी संख्या 1400 से अधिक थी, इस का प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान हैः "बेशक अल्लाह तआला ईमान वालों से खुश हो गया जब वे पेड़ के नीचे तुझ से बैअत कर रहे थे। उनके दिलों में जो कुछ था उसे मालूम कर लिया और उन पर शान्ति (सुकून) उतारा और उन्हें क़रीब की विजय प्रदान की।" (सूरतुल फ़त्हः18)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान के कारण किः "यदि अल्लाह ने चाहा तो पेड़ के नीचे बैअत करने वालों में से कोई भी नरक में नहीं जायेगा।" (मुस्लिम हदीस संख्याः2496)
चुनाँचि बैअत करने वालों में अबू बक्र, उमर, उसमान और अली रज़ियल्लाहु अन्हुम भी थे।
तथा अह्ले सुन्नत व जमाअत उन सहाबा के लिए जन्नती होने की गवाही देते हैं जिन के लिए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जन्नती होने की गवाही दी है, जैसे कि वो दस लोग जिन्हें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जन्नती होने की शुभसूचना दी है, और साबित बिन क़ै़स बिन शम्मास और उनके अलावा अन्य सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "अबू बक्र जन्नत मे हैं, उमर जन्नत में हैं. उसमान जन्नत में हैं, अली जन्नत में हैं, तल्हा जन्नत में हैं, ज़ुबैर जन्नत में हैं, अब्दुर्रहमान बिन औफ जन्नत में हैं, सअद जन्नत में हैं और सईद जन्नत में हैं और अबू उबैदा बिन जर्राह जन्नत में हैं।" (अबू दाऊद हदीस संख्याः4649, तिर्मिज़ी हदीस संख्याः3747, इसे अल्बानी ने सहीह कहा है)
तथा इस बात को स्वीकारते हैं जो तवातुर के साथ अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु वग़ैरह से उल्लिखित है कि इस उम्मत के नबी के बाद सब से श्रेष्ठ आदमीः अबू बक्र फिर उमर हैं। चुनाँचि मुहम्मद बिन अल-हनफिय्या से विर्णत है कि उन्हों ने कहा कि मैं ने अपने पिता (अली बिन अबू तालिब) से कहा कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बाद सब से श्रेष्ठ आदमी कौन है? तो उन्हों ने कहा कि अबू बक्र। मैं ने कहा कि फिर कौन? उन्हों ने कहा कि फिर उमर। और मुझे भय हुआ कि वह उसमान का नाम लेंगे। मैं ने कहा कि फिर आप हैं? तो उन्हो ने कहा कि मैं मुसलमानों में से मात्र एक आदमी हूँ। (बुखारी हदीस संख्याः3671)
फिर तीसरे स्थान पर उसमान और चौथे स्थान पर अली रज़ियल्लाह अन्हुम को मानते हैं। (देखिये : शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या की किताब अल-वास्तिया उसकी व्याख्या के साथ )
दूसरा : अह्ले सुन्नत व जमाअत का मत है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बाद खिलाफत का सब से अधिक हक़दार अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु हैं। अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के नेतृत्व के प्रमाण आप के सामने प्रस्तुत किये जा रहे हैं :
1- मुहम्मद बिन जुबैर बिन मुत्ईम अपने बाप के हवाले से बयान करते हैं कि उन्हों ने कहा कि एक महिला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आई तो आप ने उसे पुन: अपने पास आने का हुक्म दिया। उस ने कहा कि आप का क्या विचार है यदि मैं आप के पास आऊँ और आप को न पाऊँ (तो मैं क्या करूँ?) मानो वह यह कह रही थी कि यदि आप की मृत्यु हो जाये तो मैं क्या करूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "अगर तुम मुझे न पाओ तो अबू बक्र के पास आना।" (बुखारी हदीस संख्याः3659)
2- इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है वह कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "मेरे बाद दो लोगों अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की पैरवी करो।" (इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है, हदीस संख्याः3805, और अल्लामा अल्बानी ने सहीह कहा है।)
3- इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि उन्हों ने कहा कि रसूल रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : इस बीच कि मैं एक कुँए से पानी खींच रहा था कि अबू बक्र और उमर आये, तो अबू बक्र ने डोल को ले लिया और एक डोल या दो डोल पानी निकला, और उनके पानी खींचने में कमज़ोरी थी, तो अल्लाह उन्हें क्षमा करे। फिर उमर बिन खत्ताब ने अबू बक्र के हाथ से डोल ले लिया तो वह उनके हाथ में एक बड़े डोल में परिवर्तित हो गया। तो मैं ने लोगों में ऐसा गुणवान पुरूष नहीं देखा जो उनके समान परिपूर्ण काम करने वाला हो, यहाँ तक कि लोगों ने अपने ऊंटों को सैराब कर उन्हें उनके बाड़ों में बैठा दिया।" (बुखारी हदीस संख्याः3676)
हाफिज़ इब्ने हजर इस हदीस की व्याख्या में कहते हैं :
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान (इस बीच कि मैं एक कुँए पर था) इस से अभिप्राय सपने की हालत है। तथा (उस से खींंचने) का अर्थ डोल में पानी भर कर खींचना है। (तो उन्हों ने एक या दो डोल भर कर पानी निकाला) मुझे प्रतीक यह होता है कि इस से संकेत उन तीन बड़ी विजयों की ओर है जो आप के समय काल में पेश आयीं। इसीलिए उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का ज़िक्र करते समय उनके द्वारा निकाले गये डोलों की संख्या नही बयान की गई है, बल्कि उनके निकालने का वर्णन महानता से किया गया है जो उनकी खिलाफत के समय काल में होने वाली विजयों के बाहुल्य का संकेतक है। और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
इमाम शाफेई ने अपनी किताब 'अल-उम्म' में इस हदीस की व्याख्या की है, चुनाँचि इस हदीस का उल्लेख करने के बाद फरमाया : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन (उनके निकालने में कुछ कमज़ोरी थी) का अर्थ उनके खिलाफत की अवधि का कम होना, उनकी मृत्यु का जल्द होना, और मुर्तद लोगों से लड़ाई करने में व्यस्त होने के कारण बहुत अधिक फुतूहात न कर पाना जितना अधिक कि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी खिलाफत की लंबी अवधि में किया।" इमाम शाफेई की बात समाप्त हुई।
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन (अल्लाह उन्हें क्षमा करे) के बारे में इमाम नववी कहते हैं कि यह मुतकिल्लम (संबोधक) की तरफ से एक दुआ है, यानी उसका कोई अर्थ नहीं है। कुछ अन्य का कहना है कि : इस में अबू बक्र की मृत्यु की ओर संकेत है, और यह ऐसे ही जैसे कि अल्लाह तआला का अपने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यक कहना है कि ((अत: आप अपने रब की स्तुति के साथ उसकी पाकी बयान कीजिये और उस से क्षमा माँगिये, नि:सन्देह वह अधिक क्षमा करने वाला है)) क्योंकि इस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के क़रीब होने की तरफ संकेत है। मैं कहता हूँ : यह भी संभव है कि इस में इस बात की ओर संकेत हो कि उनके ज़माने में फुतूहात (विजित छेत्र) के कम होन में उनका कोई दोष नहीं है, क्योंकि इसका कारण उनके खिलाफत की अवधि का कम होना है, अत: उनके लिये माफी का अर्थ यह है कि उन पर कोई मलामत नहीं है।
4- आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा से विर्णत है वह कहती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी बीमारी के दौरान मुझ से कहा कि अपने बाप अबू बक्र और अपने भाई को मेरे पास बुलाओ ताकि मैं एक पत्र लिख दूँ। क्योंकि मुझे डर है कि कोई महत्वाकांक्षी आकांक्षा करे और कोई कहने वाला कहे कि मैं नेतृत्व का अधिक हक़दार हूँ, जबकि अल्लाह और मोमिन लोग अबू बक्र के अलावा किसी को स्वीकार नहीं करें गे।" (मुस्लिम हदीस संख्याः 2387)
5- आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी उस बीमारी में जिस में आप की मृत्यु हुई अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को नमाज़ पढ़ाने के लिए मुसलमानों का इमाम नियुक्त किया था और उनके बदले में किसी अन्य को स्वीकार नहीं किया, अत: उनको छोटी नेतृत्व में खलीफा (उत्तराधिकारी) नियुक्त करना, उनको बड़ी नेतृत्व में खलीफा नियुक्त करने का संकेतक है।
और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ जानता है।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर