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उसने शव्वाल के छः रोज़े रखे और वह रोज़े को निरंतर जारी रखना चाहती है

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1673 2013/08/13 2024/04/29
मैं शव्वाल के छः रोज़ों से फारिग होने के बाद भी बिना रूके हुए निरंतर रोज़ा रखने का हुक्म जानना चाहती हूँ, मैं ने अपने ऊपर अनिवार्य रह गए जो रोज़ों की कज़ा की, फिर मैं ने शव्वाल के छः रोज़े रखे, फिर मेरे पति का विचार हुआ कि हम नफली रोज़े जारी रखें, तो इस बारे में शरीअत का हुक्म क्या है ? अल्लाह तआला आपको अच्छा बदला दे।



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

इसमें कोई हरज (आपत्ति) की बात नहीं है कि इंसान नफ्ली रोज़े को क़ज़ा के रोज़े के साथ या शव्वाल के छः रोज़े के साथ मिलाए ;  क्योंकि नफ्ली रोज़े की अभिरूचि दिलाने के बारे में वर्णित प्रमाण सामान्य हैं उनमें नफ्ल और कज़ा के बीच कोई अंतर नहीं किया गया है।

दूसरा :

यदि आप लोगों का शव्वाल के छः रोज़ों से फारिग होने के बाद रोज़े को जारी रखने से अभिप्राय, शव्वाल के अंत तक रोज़े को लगातार बिना अंतराल के जारी रखना है, या कुछ निर्धारित दिन हैं जिनका आप अल्लाह के लिए ऐच्छिक तौर पर रोज़ा रखना चाहते हैं, तो इसमें कोई हरज (आपत्ति) की बात नहीं है जबतक कि आप दोनों में से कोई भी इससे नुकसान न उठाए, या इसके कारण किसी दूसरे का हक़ नष्ट न हो।

जबकि इस विषय में प्रतिष्ठित तरीक़ा यह है कि रमज़ान के महीने के अलावा किसी भी महीने का मुक्कमल रोज़ा न रखे, बल्कि वह अपने रोज़े को इफ्तार के साथ और अपने इफ्तार को रोज़े के साथ मिलाए, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा था।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : “पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रोज़ा रखते थे यहाँ तक कि हम कहते थे आप रोज़ा नही तोड़ें गे, और आप रोज़ा तोड़ देते थे यहाँ तक कि हम कहते थे कि आप रोज़ा नहीं रखेंगे, तो मैं ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को रमज़ान के अलावा किसी अन्य महीने का मुकम्मल रोज़ा रखते हुए नहीं देखा, तथा आप को शाबान से अधिक किसी अन्य महीने का रोज़ा रखते हुए नहीं देखा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1969) ने रिवायत किया है।

शैख इब्ने जिब्रीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “कई दिनों तक लगातार रोज़ा रखना जायज़ है, फिर अन्य कई दिनों तक लगातार रोज़ा तोड़ना जायज़ है, और इसका प्रमाण प्रश्न में वर्णित हदीस है, क्योंकि यह ऐच्छिक मुसतहब रोज़ा है।” फतावा शैख इब्ने जिब्रीन से समाप्त हुआ।

और यदि इसका अभिप्राय ईद के दो दिनों (ईदैन) और तश्रीक़ के दिनों के अलावा अगले साल तक रोज़े को बराबर जारी रखना है, तो इसे विद्वानों के निकट सौमुद्दह्र (ज़माने भर का रोज़ा) कहा जाता है, और इसका हुक्म यह है कि वह विद्वानों के सहीह कथन के अनुसार मक्रूह (अनेच्छिक) है।

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