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फित्ने के कारण दाढ़ी मूंडना
एक अवधि से मैं ने अपने धर्म इस्लाम को पहचाना है, इस पर सर्व प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, अल्लाह तआला ने मेरा मार्ग दर्शन किया और मैं ने और दो भाईयों ने दाढ़ी रख ली, और यह सुन्नत हमारे परिवार के कुछ सदस्यों तक पहुँच गई और हम अपने घरों को हर तरह इस्लामी बनाने पर सक्षम होगए, घर में सभी बहनें इस्लामी पोशाक पहनने लगीं और यथा शक्ति क़ुरआन और सुन्नत का पालन करने लगीं, फिर शहर में फित्ना व उपद्रव पैदा हो गया और लोग दाढ़ी वालों पर उलट पड़े और उन्हें परेशान करने लगे और यह समझने लगे कि हर दाढ़ी वाला लोगों की हत्या करना और उनका खून बहाना चाहता है - जबकि हम मुसलमान होने के रूप् में किसी भी हालत अपने पलनहार के निषेध किए हुए जान को क़त्ल करना अच्छा नहीं समझते हैं - और मेरे माता पिता और परिवार वाले मुझ पर ज़ोर देने लगे कि मैं अपनी दाढ़ी को मूँड लूँ। मेरी माँ कहती है कि मेरे पिता मुझसे नाराज़ हैं, और मैं रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की कही हुई किसी बात का विरोध करने से डरता हूँ, तथा मुझे किसी उल्लंघन और गुनाह करने से डर लगता है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
अल्लाह तआला आपको रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीक़ का पालन करने और अपने घर वालों और सभी परिवार के लागों को इसके लिए आमंत्रणित करने पर अच्छा बदला प्रदान करे।
दूसरा : दाढ़ी को मूँडना हराम व निषिद्ध है, और उसको बढ़ाना अनिवार्य है जैसाकि आप को पता है। तथा सृष्टा का आज्ञा पालन करना सृ़ष्टि के आज्ञा पालन पर प्राथमिकता रखता है चाहे वह कितना ही निकटतम क्यों न हो, अतः सृष्टा की अवज्ञा में किसी भी सृष्टि का अज्ञापालन नहीं है, बल्कि सृष्टि का आज्ञा पालन केवल भलाई के अंदर है। तथा आपने अपने दाढ़ी रखने के कारण अपने पिता के नाराज़ और क्रोधित होने का जो उल्लेख किया है तो वह मात्र भावना और आपके ऊपर उन घटनाओं और वारदातों से भय खाने की वजह से है जिससे आपके अलावा दूसरे लोग पीड़ित हो चुके हैं, लेकिन वे दुर्घटनायें आम तौर पर विद्रोह में पड़ने और उसे भड़काने के कारण हुई हैं, मात्र दाढ़ी के रखने या बढ़ाने से नहीं। इसीलिए आप देखेंगे कि उन वारदातों से ऐसे लोग भी पीड़ित हुए हैं जो अपनी दाढ़ियों को मूँडते थे। इसलिए आप हक़ और सत्य पर सुदृढ़ रहें, और अल्लाह का आज्ञापालन करते हुए और उसे खुश करने के लिए अपनी दाढ़ी को बढ़ाने की प्रक्रिया को जारी रखें, भले ही लोग इससे नाराज़ और क्रोधित हों, तथा आप उत्तेजना और विद्रोह के साधनों और कारणों से दूर रहें, तथा अल्लाह पर भरोसा रखें और उसी से आशा लगाएं कि वह आप के लिए हर तंगी और परेशानी से निकलने का रास्ता पैदा कर दे, अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿ ومن يتق الله يجعل له مخرجاً ويرزقه من حيث لا يحتسب ، ومن يتوكل على الله فهو حسبه إن الله بالغ أمره قد جعل الله لكل شيء قدراً ﴾ [ سورة الطلاق : 2-3]
‘‘और जो इंसान अल्लाह से डरता है, अल्लाह उसके लिए छुटकारे का रास्ता निकाल देता है। और उसे ऐसी जगह से रोज़ी उपलब्ध कराता है जिसका उसे अंदाज़ा भी न हो, और जो इंसान अल्लाह पर भरोसा करेगा, अल्लाह उसके लिए काफी होगा। अल्लाह अपना काम पूरा करके ही रहेगा, अल्लाह तआला ने हर चीज़ का एक अंदाज़ा निर्धारित कर रखा है।” (सूरतुत्तलाक़ : 2-3)
तथा फरमाया :
﴿ ومن يتق الله يجعل له من أمره يسراً ، ذلك أمر الله أنزله إليكم ومن يتق الله يكفر عنه سيئاته ويعظم له أجراً ﴾ [سورة الطلاق : 4-5].
“और जो इंसान अल्लाह तआला से डरेगा, अल्लाह उसके हर काम में आसानी पैदा कर देगा। यह अल्लाह का हुक्म है जो उसने तुम्हारी तरफ उतारा है, और जो इंसान अल्लाह से डरेगा, अल्लाह उस के गुनाह मिटा देगा और उसे बहुत भारी बदला देगा।” (सूरतुत्तलाक़ : 4-5)
तथा हम आप को माता पिता के साथ सद्वयवहार करने और नरमी तथा अच्छे ढंग से उनसे क्षमा याचना करने की सिफारिश करते हैं।