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पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और महिला का सम्मान-2
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया:
''जिस ने पाप किया है तो उसे उसके पाप के समान ही बदला मिले गा। और जिस ने नेकी की है, चाहे वो पुरूष हो या स्त्री और वो र्इमान वाला हो तो ये लोग स्वर्ग में जाएं गे और वहां असंख्य रोज़ी पाएं गे।“ (सूरतुल-मोमिन 40:40)
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्त्री वर्ग से अपनी महब्बत का उल्लेख करते हुए फरमाया:
''तुम्हारी दुनिया के उपकरणों में से मेरे लिऐ महिलाएं और सुगन्ध प्रिय कर दिए गए हैं। और मेरी आंखों की ठन्ढक नमाज़ में बना दी गर्इ है।“ (इसे अहमद और नसार्इ ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह कहा है।)
जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम महिलाओं से महब्बत करते थे तो फिर आप उन पर अत्या चार कैसे कर सकते हैं? कैसे उनका अपमान कर सकते हैं? तथा उन्हें तुच्छ कैसे समझें गे?
जिस प्रकार अल्लाह तआला ने लड़कियों को नापसंद करने और उन्हें जीवित गाड़ देने की कुप्रथा को मिटा दिया, पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भी उस बुरी आदत को नष्ट कर दिया, और लड़कियों का पालन पोषण करने और उन के साथ भलार्इ करने की रूचि दिलार्इ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''जिस ने दो लड़कियों का पालन-पोषण और देख भाल किया यहां तक कि वो बालिग हो गर्इं, तो कि़यामत के दिन वो मेरे साथ इस प्रकार आए गा - फिर आप ने अपनी दो अंगुलियों को मिलाकर दिखाया-“ (मुस्लिम)
इस हदीस में इस बात की ओर संकेत है कि लड़कियों की देख भाल और सुरक्षा करने से, यहां तक कि वो प्रौढ़ता और बुलूगत की उमर तक पहुंच जाएं, आदमी को उंचा पद और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की निकटता प्राप्त होगी।
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''जिस के पास तीन लड़कियां, या तीन बहनें, या दो लड़़कियां या दो बहनें हों और वो उनके साथ उत्तम रहन सहन करे, और उनके बारे में अल्लाह से डरता रहे, तो उस के लिए स्वर्ग है।“ (इसे त्रिमिज़ी ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह कहा है। )
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम स्त्री को शिक्षा देने के बड़े इच्छुक थे, आप ने उन के लिए एक दिन निश्चित कर दिया था जिस में वो एकत्र होती थीं। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके पास आते और जो कुछ अल्लाह ने आप को धर्म का ज्ञान प्रदान किया था उस की उन्हें शिक्षा देते थे।
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्त्री को घर में बन्दी बनाकर नहीं रखा है जैसाकि कुछ लोगों की सोच है, बल्कि उस के लिए अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति, रिश्ते दारों से मिलने और बीमारों की तीमार दारी करने के लिए घर से बाहर निकलना वैद्ध किया है। तथा अपने शरर्इ -धार्मिक- पर्दा और हया -सतीत्व- की रक्षा करते हुए उस के लिए बाज़ार में खरीद व फरोख्त करना जाइज़ ठहराया है। इसी प्रकार उस के लिए मस्जिदों में जाना वैद्ध घोषित किया है और उसे मस्जिद जाने से रोकने से रोका है। चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''अपनी महिलाओं को मस्जिदों से न रोको।“ (इसे अहमद और अबू दाउद ने रिवायत किया है।)
तथा पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने महिलाओं के साथ भलार्इ करने पर बल दिया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''महिलाओं के साथ भलार्इ करने की मेरी वसीयत का ध्यान रखो। (बुखारी एंव मुस्लिम)
इस कथन का तक़ाज़ा यह है कि उनके साथ बढि़या रहन-सहन रखा जाए, उनके अधिकारों का सम्मान किया जाए, उनकी भावनाओं का ध्यान रखा जाए और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचाया जाए।
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पतियों को अपनी पत्नियों पर खर्च करने की रूचि दिलार्इ है, चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी खर्च करो गे, उस पर तुम्हें अज्र व सवाब (पुण्य) मिले गा, यहां तक कि उस पर भी जो तुम अपनी बीवी को खिलाते पिलाते हो।“ (बुखारी एंव मुस्लिम )
बल्कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने परिवार पर खर्च करना आदमी का सर्व श्रेष्ठ खर्च घोषित किया है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''सर्व श्रेष्ठ दीनार वह है जो आदमी अपने बाल-बच्चों पर खर्च करता है। “ (मुस्लिम)
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''आदमी अगर अपनी बीवी को कुंवे से पानी पिला देता है, तो उसे उस पर अज्र व सवाब (पुण्य) दिया जाता है।“ (इसे अहमद ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह कहा है।)
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इस हदीस को इरबाज़ बिन सारिया ने सुना तो वो भाग कर पानी लाने के लिए गए, फिर अपनी बीवी के पास आए और उसे पानी पिलाया, और अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व