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गरीब को देकर सूद की राशि से छुटकारा प्राप्त करना
क्या यह जायज़ है कि हम बैंकों के सूद की राशि ज़रूरतमंद व्यक्ति को दे दें ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
यदि कोई ऐसा व्यक्ति था जो सूद का लेन देन करता था, फिर उसने तौबा कर लिया, और वह सूद के द्वारा प्राप्त धन से छुटकारा हासिल करना चाहता है, तो उस धन से छुटकारा पाने के लिए उसे गरीब व्यक्ति को देना जायज़ है, इसी तरह अगर बैंक उसके खाते में सूद की राशि डाल दे (तो उस स्थिति में भी यही हुक्म होगा)। लेकिन इसे सदक़ा (दान, खैरात) नहीं समझा जायेगा, क्योंकि अल्लाह तआला पवित्र है और पवित्र चीज़ को ही क़बूल करता है। जहाँ तक सूद पर आधारित लेन देन को निरंतर जारी रखने की बात है तो यह जायज़ नहीं है और वह घोर पापों में से एक महा पाप है, और उसका लेनेवाला अल्लाह और उसके पैगंबर का विरोधी है, यहाँ तक कि यदि वह गरीबों को देने के लिए सूदी कारोबार करता है।