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उसकी छोटी बच्ची ने दो चक्र तवाफ किया और बीमारी के कारण उम्रा मुकम्मल नहीं किया
मैं सऊदी अरब में रियाज़ का निवासी हूँ, मैं अपनी पत्नी और तीनों बच्चों के साथ रमज़ान के महीने में उम्रा करने के लिए गया, मेरी बड़ी बेटी (10 वर्ष) ने एहराम बाँधा और उम्रा की नीयत की, और उसने शर्त नहीं लगाई, वह बीमार थी, चुनाँचे उसने दो चक्र तवाफ किया और अपने उम्रा को मुकम्मल नहीं कर सकी, और हम रियाज़ वापस आ गए, तो क्या मेरे ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य है और मुझे क्या कना चाहिए ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
यदि आपकी बेटी अपने एहराम को काटते समय बालिग (व्यस्क) हो चुकी थी : तो जमहूर विद्वानों के निकट उसके ऊपर फिद्या अनिवार्य है - और वह एक बकरी है जिसे मक्का में ज़ब्ह किया जायेगा और हरम के गरीबों मे वितरित कर दिया जायेगा -, और यही हर उस व्यक्ति का हुक्म है जो किसी दुश्मन, या बीमारी, या इन्हीं के समान चीज़ों के कारण अपने हज्ज या उम्रा के मनासिक को पूरा करने से रोक दिया गया हो और उसने शर्त न लगाई हो।
तथा मुसलमान के लिए अपने एहराम में शर्त लगाने की अनुमति है यदि उसे इस बात का भय है कि कोई आपात परिस्थिति उसे उसके उम्रा और हज्ज को मुकम्मल करने से रोक सकती है, जैसे बीमारी, या डर या इनके अलावा कोई अन्य चीज़, तो वह अपने एहराम के बाद कहेगा :
إِنْ حَبَسَنِيْ حَابِسٌ فَمَحِلِّيْ حَيْثُ حَبَسْتَنِيْ
(इन ह-ब-सनी हाबिसुन फ-महिल्ली हैसो हबस्-तनी)
“यदि मुझे कोई रूकावट पेश आ गई तो मैं वहीं हलाल हो जाऊँगा जहाँ तू मुझे रोक दे।”
और इस शर्त के लगाने का लाभ यह है कि यदि उसे कोई रूकावट पेश आ जाती है तो वह बिना किसी फिद्या (क़ुर्बानी) के अपने एहराम से हलाल हो जायेगा।
तथा शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
यदि वह हज्ज या उम्रा का तल्बिया पुकारते हुए मीक़ात को पार कर गया और शर्त नहीं लगाई और उसे कोई रूकावट पेश आ गई, जैसे बीमारी इत्यादि, जो उसे उसके मनासिक को पूरा करने से रोक देती है, तो उसके लिए क्या करना अनिवार्य है ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया : यह व्यक्ति मोहसर (जिसे रोक दिया गया हो) समझा जायेगा, यदि उसने शर्त नहीं लगाई है फिर उसके साथ कोई घटना घटित होती है जो उसे उसके मनासिक को पूरा करने से रोक देती हैः तो यदि उसके लिए धैर्य करना संभव है इस आशा में कि हो सकता है उस घटने का प्रभाव समाप्त हो जाए फिर वह अपने मनासिक को पूरा करे : तो वह सब्र करेगा, और यदि उसके लिए ऐसा करना संभव नहीं है: तो सही कथन के अनुसार वह मोहसर है और अल्लाह तआला ने मोहसर के बारे में फरमाया है :
﴿ فإن أحصرتم فما استيسر من الهدي ﴾ [البقرة : 196]
“यदि तुम रोक दिये जाओ तो जो क़ुर्बानी तुम्हें उपलब्ध है (उसे कर डालो)।” (सूरतुल बक़रा : 196)
और सही बात यह है कि एहसार (यानी रोक दिया जाना) दुश्मन के द्वारा और बिना दुश्मन के भी होता है, ऐसी अवस्था में वह क़ुर्बीनी करेगा, सिर के बाल मुँडाए या कटवाए गा और हलाल हो जायेगा (एहराम खोल देगा), यही मोहसर व्यक्ति का हुक्म है: वह उसी स्थान पर जहाँ वह रोक दिया गया है क़ुर्बानी करेगा, चाहे वह हरम की सीमा में हो या उसके बाहर, और वह उसे उस स्थान के गरीबों को दे देगा चाहे वह हरम के बाहर ही क्यों न हो।
अगर उसके आस पास कोई गरीब मौजूद नहीं है तो उसे हरम के गरीबों या उसके आस पास के गरीबों या कुछ गावों के गरीबों को स्थानांतरित कर दिया जायेगा, फिर वह अपने सिर के बाल मुँडायेगा या छोटे करवायेगा और हलाल हो जायेगा। यदि वह क़ुर्बानी करने पर सक्षम नहीं है, तो वह दस दिन रोज़े रखेगा फिर अपने सिर के बाल मुँडायेगा या छोटे करवायेगा और हलाल हो जायेगा।
“तोहफतुल इख्वान बि-अजविबतिन मुहिम्मतिन त-तअल्लक़ो बि-अरकानिल इस्लाम”
और यदि वह नाबालिग थी : तो कुछ विद्वानों ने इस बात को चयन किया है कि आपके ऊपर और न ही उसके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है, और वे इस बात की ओर गए हैं कि बच्चे ने जो एहराम बांधा है उसको जारी रखना अनिवार्य नहीं है, और यह इसलिए कि वह उन लोगों में से नहीं है जिनके लिए पाबंदी अवश्यक है ; और इसलिए कि इसमें लोगों के लिए आसानी है, क्योंकि वली (सरपरस्त) यह समझता होगा कि एहराम बाँधने में आसानी है फिर उसके लिए यह स्पष्ट होता है कि मामला उसके विपरीत है।
और यह अहनाफ और इब्ने हज़्म का कथन है, तथा बाद के लोगों में शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह ने इसे इख़्तियार किया है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।