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जिहाद पर शक्ति जुटाने के लिए रोज़ा तोड़ने की वैधता
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
जी हाँ, मुजाहिदों के लिए रमज़ान में रोज़ा तोड़ना जाइज़ है ताकि वे जिहाद करने के लिए शक्ति जुटा सकें, भले ही वे अपने देश में ही क्यों न हों। क्योंकि रोज़ा उन्हें लड़ाई से और दुश्मनों को आघात पहुँचाने से कमज़ोर कर देता है।
यह इमाम अहमद के दो कथनों में से एक कथन है, और उसे शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या, उनके दो शिष्य इब्ने मुफलेह और इब्नुल क़ैयिम और इनके अतिरिक्त अन्या विद्वानों ने इसे पसंद (चयन) किया है। देखिए : इब्ने मुफलेह की किताब अल-फुरूअ़ 3 / 28.
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसे प्रमाण वर्णित हैं जो जिहाद के कारण रोज़ा तोड़ने की वैधता पर तर्क स्थापित करते हैं।
इमाम मुस्लिम (हदीस संख्या : 1120) ने अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : हम ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ मक्का की ओर -अर्थात् मक्का को विजय करने के अवसर पर - यात्रा किया इस हाल में कि हम रोज़े से थे। हम ने एक स्थान पर पड़ाव डाला, तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम अपने दुश्मन से क़रीब हो गए हो और रोज़ा तोड़ देना (रोज़ा न रखना) तुम्हारे लिए अधिक शक्तिप्रद है।” तो यह एक रूख्सत थी, चुनाँचे हम में से कुछ लोगों ने रोज़ा रखा और कुछ ने रोज़ा तोड़ दिया। फिर हम ने एक दूसरे स्थान पर पड़ाव डाला, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम सुबह अपने दुश्मनों का सामना करने वाले हो और रोज़ा न रखना तुम्हारे लिए अधिक शक्तिप्रद है, अतः तुम रोज़ा तोड़ दो।” चुनाँचे यह एक निश्चित आदेश था तो हम ने रोज़ा तोड़ दिया।”
तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2365) ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ सहाबा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि आप ने फत्हे मक्का (अर्थात मक्का पर विजय के वर्ष) अपनी यात्रा में लोगों को रोज़ा तोड़ने का आदेश दिया और फरमाया : “ अपने दुश्मनों के लिए शक्ति अर्जित करो।”
हाफिज़ (इब्ने हजर) ने “अत-तल्खीसुल हबीर” में फरमाया : इसे हाकिम और इब्ने अब्दुल बर्र ने सहीह कहा है। (हाफिज़ की बात समाप्त हुई).
ये दोनों हदीसे इस बात का तर्क देती हैं कि यहाँ पर रोज़ा तोड़ने का हुक्म यात्रा के कारण नहीं है, बल्कि जिहाद करने पर शक्ति जुटाने के लिए है।
इमाम मालिक की मुवत्ता की शरह अल-मुंतक़ा में फरमाया :
हदीस के शब्दः ( تَقَوَّوْا لِعَدُوِّكُمْ ) (अर्थात अपने दुश्मनों के लिए शक्ति अर्जित करो) तो यही उनके रोज़ा तोड़ने का करण था . . . अगर कारण यात्रा होती तो दुश्मन के लिए शक्ति जुटाने का कारण वर्णन न किया जाता, बल्कि यात्रा का कारण वर्णन किया जाता। (अंत)
अल-मुनावी ने “फैज़ुल क़दीर” में फरमाया :
हदीस के शब्द “مُصَبِّحُو” (मुसब्बिहू) अर्थात: तुम उस से सुबह के समय मुठभेड़ करोगे (मिलोगे) तथा एक दूसरी रिवायत के शब्द यह हैं कि “तुम अपने दुश्मने से क़रीब हो गए हो” . . . दुश्मन के क़रीब होने और उन्हें दुश्मन का सामना करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होने का कारण वर्णन करने से यह बात निकाली गई है कि यहाँ पर रोज़ा तोड़ना जिहाद के लिए है यात्रा के लिए नहीं है, अतः यदि शहरी क्षेत्र (निवास) में उनसे दुश्मन का सामना हो जाए और उन्हें रोज़ा तोड़ कर शक्ति जुटाने की आवश्यकता पड़ जाए तो उनके लिए ऐसा करना जाइज़ है, क्योंकि यह मात्र यात्रा के कारण रोज़ा तोड़ने से कहीं अधिक बढ़कर रोज़ा तोड़ने के योग्य है। (अंत हुआ).
इब्नुल क़ैयिम ने ज़ादुल मआद (2 / 53, 54) में फरमाया :
वह - अर्थात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - उन्हें जब वे दुश्मन से क़रीब हो जाते तो रोज़ा तोड़ने का आदेश देते ताकि वे दुश्मन से लड़ाई करने पर शक्ति और ताक़त जुटा सकें, यदि इस तरह की परिस्थिति शहर (निवास) में भी पैदा हो जाए और रोज़ा तोड़ देने में उन्हें दुश्मन से मुठभेड़ करने पर शक्ति और ताक़त प्राप्त होती हो, तो क्या उनके लिए रोज़ा तोड़ देने की अनुमति है ॽ इस बारे में दो मत (कथन) हैं : उन दोनों में प्रमाण की दृष्टि से सबसे शुद्ध (सही) मत यह है कि : उनके लिए इसकी अनुमति है। इसी मत को इब्ने तैमिय्या ने चुना है, और इसी बात का उन्हों ने इस्लामी सैनिकों को दमिश्क़ में दुश्मनों से मुठभेड़ करने के समय फत्वा दिया था, और इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके कारण रोज़ा तोड़ देना, मात्र यात्रा के कारण रोज़ा तोड़ने से अधिक योग्य है, बल्कि यात्री के लिए रोज़ा तोड़ने की वैधता इस बात पर चेतावनी है कि इस स्थिति में भी रोज़ा तोड़ना वैध है, क्योंकि यह वैधता का अधिक हक़ रखता है, क्योंकि वहाँ पर शक्ति केवल यात्री के साथ विशिष्ट और सीमित है, जबकि यहाँ पर शक्ति उसके लिए है और मुसलमानों के लिए भी है, तथा इसलिए कि जिहाद की कठिनाई और कष्ट, यात्रा की कठिनाई और कष्ट से अधिकतर है, और इसलिए भी कि मुजाहिद के लिए रोज़ा तोड़ने से प्राप्त होनी वाली मसलहत (हित और लाभ) यात्री के लिए रोज़ा तोड़ने से प्राप्त होने वाली मसलहत और हित से कहीं अधिक बढ़कर और महानतर है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
﴿ وأعدوا لهم ما استطعتم من قوة ﴾ [الأنفال : 60]
“और तुम से जितना हो सके उन (दुश्मनों) के लिए शक्ति और ताक़त तैयार करो।” (सरूतुल अनफाल : 60)
और दुश्मन से मुठभेड़ के समय रोज़ा तोड़ देना ताक़त और शक्ति के सबसे महान कारणों में से है . . . और इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा से जब वे अपने दुश्मनों के क़रीब हो गए तो फरमाया : “तुम अपने दुश्मन से क़रीब हो गए हो और रोज़ा तोड़ देना (रोज़ा न रखना) तुम्हारे लिए अधिक शक्तिप्रद है।” तो यह एक रूख्सत थी। फिर हम ने एक दूसरे स्थान पर पड़ाव डाला, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम सुबह अपने दुश्मनों का सामना करने वाले हो, और रोज़ा न रखना तुम्हारे लिए अधिक शक्तिप्रद है, अतः तुम रोज़ा तोड़ दो।” तो यह एक निश्चित आदेश था। अतः हम ने रोज़ा तोड़ दिया।)
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यहाँ उनके दुश्मन से क़रीब होने और दुश्मन का सामना करने के लिए उन्हें शक्ति की आवश्यकता होने का करण बताया है, और यह यात्रा के अलावा एक अन्य कारण है, और यात्रा स्वयं एक स्वतंत्र कारण है। कारण स्पष्ट करते हुए आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसका उल्लेख नहीं किया है और न उसकी ओर संकेत किया है . . . सारांश यह कि शरीअत की चेतावनी और उसकी तत्वदर्शिता (हिकमत) इस बात का तक़ाज़ा करती है कि जिहाद के लिए रोज़ा तोड़ना, मात्र यात्र के लिए रोज़ा तोड़ने से, अधिक योग्य है। फिर यह कैसे नहीं होगा जबकि शरीअत ने उसके कारण की ओर संकेत किया है, उस पर चेतावनी दी है, उसके हुक्म को स्पष्टता के साथ वर्णन किया है और उनके लिए उसके कारण रोज़ा तोड़ना निश्चित क़रार दिया है। तथा इसका प्रमाण ईसा बिन यूनुस की रिवायत भी है जिसे उन्हों ने शोअबा से उन्हों ने अम्र बिन दीनार से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं ने इब्ने उमर को फरमाते हुए सुना कि : अल्लाह के पैगंबर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का के विजय के दिन अपने साथियों से कहा : “यह लड़ाई का दिन है, अतः तुम रोज़ा तोड़ दो।” चुनाँचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस हदीस में लड़ाई को रोज़ा तोड़ने का कारण बताया है, और उस पर रोज़ा तोड़ने के आदेश को अक्षर “फा” (अर्थात तो, अतः) के द्वारा आधारित किया है, और इस शब्द से हर एक यही समझता है कि रोज़ा तोड़ना लड़ाई के कारण है। (इब्नुल क़ैयिम की बात समाप्त हुई).
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
यह युद्ध जिसका इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने उल्लेख किया है, वर्ष 702 हिज्री में मुसलमानों और तातारियों के बीच हुई थी और उसमें मुसलमानों को विजय प्राप्त हुई थी।
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
उन्हों ने -अर्थात इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने - उनसे लड़ाई की अवधि के दौरान लोगों को रोज़ा तोड़ने का आदेश दिया और स्वयं उन्हों ने भी रोज़ा तोड़ दिया, वह सैनिकों और सेनापतियों पर चक्कर लगाते थे और अपने हाथ में से कोई चीज़ लेकर खाते थे ताकि उन्हें बतलायें कि लड़ाई करने पर शक्ति जुटाने के लिए उनका रोज़ा तोड़ देना सर्वश्रेष्ठ है, तो लोग भी खाते थे। (इब्ने कसीर की बात समाप्त हुई)
देखिए : “अल बिदाया वन्निहाया” (14 / 31).