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क्या पाँच दैनिक नमाज़ों का क़ुरआन में वर्णन है ॽ
﴿فَسُبْحَانَ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ وَحِينَ تُصْبِحُونَ وَلَهُ الْحَمْدُ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَعَشِيًّا وَحِينَ تُظْهِرُونَ﴾ [الروم : 17-18)
“तो अल्लाह की स्तुति किया करो, जबकि तुम शाम करो और जब सुबह करो। तथा आकाश और धरती में सभी तारीफों के लायक़ वही है, तीसरे पहर और दोपहर के समय भी उसकी पवित्रता बयान करो।” (सूरतुर रूम : 17, 18).
इन आयतों में चार नमाज़ों का उल्लेख किया गया है, जबकि मुसलमान लोग पाँच नामज़ें पढ़ते हैं, सुन्नतें इनके अतिरिक्त हैं। तो पाँचवीं नमाज़ का वर्णन क्यों नहीं है ॽ मैं एक मुसलमान हूँ और प्रश्न के प्रति गंभीर हूँ, और मैं कतई कुरआन को गलत ठहराने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए है।
इस आयत की व्याख्या में इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : पाँच नमाज़ें क़ुरआन में वर्णित हैं। तो उनसे पूछा गया : कहाँ ॽ तो उन्हों ने फरमाया : “फ-सुब्हानल्लाहि हीना तुम्सूना” (अर्थात् तो अल्लाह की तस्बीह व पाकी बयान करो जब तुम शाम करो) मग़रिब और इशा की नमाज़, और “व-हीना तुसबेहूना” (यानी और जब तुम सुबह करो) फज्र की नमाज़, “व-अशिय्यन” (अर्थात् और तीसरे पहर को) अस्र की नमाज़, “व-हीना तुज़हेरूना” (अर्थात और जब तुम दोपहर करो) ज़ुहर की नमाज़।
तथा यही बात क़ुरआन के भाष्यकारों में से ज़ह्हाक और सईद बिन जुबैर ने भी कही है।
तथा कुछ लोगों ने कहा है कि आयत में केवल चार नमाज़ों का वर्णन है, और इशा की नमाज़ का आयत में उल्लेख नहीं है, बल्कि उसका वर्णन सूरत हूद की आयत संख्या 114 में किया गया है, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है :
﴿وَزُلَفًا مِنَ اللَّيْلِ﴾
“और रात की कुछ घड़ियों में भी” (सूरत हूद : 114).
जबकि अधिकांश मुफस्सिरीन पहले कथन पर हैं, नह्हास रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “अहले तफसीर का यह मत है कि यह आयत : ﴿فَسُبْحَانَ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ وَحِينَ تُصْبِحُونَ ﴾ नमाज़ के बारे में है।
तथा इमाम अल-जस्सास रहिमहुल्लाह ने फरमाया : अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿ إنَّ الصَّلاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَوْقُوتًا ﴾ [النساء : 103]
“निःसंदेह नमाज़ मुसलमानों पर निर्धारित वक़्तों फर्ज़ की गई।” (सूरतुन्निसाः 103)
अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया : “नमाज़ के लिए हज्ज के समय के समान एक समय है।” तथा अल्लाह तआला के फरमान : “मौक़ूता” का अर्थ यह है कि वह कुछ निर्धारित व निश्चित ज्ञात समयों में अनिवार्य है। तो इस आयत में समय का उल्लेख सार रूप से किया गया है और कुरआन में दूसरे स्थानों पर उसको स्पष्ट रूप से वर्णन किया है बिना उसके प्रारंभिक और अंतिम समय को निर्धारित किए हुए। तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ुबानी उसके निर्धारित समय और मात्रा को स्पष्ट किया गया है। अल्लाह तआला ने क़ुरआन में नमाज़ के समय का जो उल्लेख किया है उसी में से अल्लाह तआला का यह फरमान है :
﴿ أَقِمْ الصَّلاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ ﴾ [ الإسراء : 78]
“नमाज़ क़ायम करें सूरज ढलने स लेकर रात के अँधेरे तक, और फज्र (प्रातः) की नमाज़ भी, बेशक फज्र की नमाज़ (फरिश्तों के) हाज़िर होने का वक़्त है।” (सूरतुल इस्राः 78).
मुजाहिद ने इब्ने अब्बास से उल्लेख किया है कि उन्हों ने : ﴿ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ ﴾ “लि-दुलूकिश्शम्स” की व्याख्या में फरमाया : “जब सूरज आसमान के पेट से ज़ुहर की नमाज़ के लिए ढल जाए।”
﴿ إلَى غَسَقِ اللَّيْلِ ﴾ फरमाया : “मगरिब की नमाज़ के लिए रात का प्रकट होना।” इसी प्रकार इब्ने उमर से “लि-दुलूकिश्शम्स” के बारे में वर्णित है कि वह सूरज का ढलना है . . . तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿وَأَقِمْ الصَّلاةَ طَرَفَيْ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِنْ اللَّيْلِ﴾ [هود : 114].
“और आप नमाज़ क़ायम करें दिन के दोनों किनारों में और रात की कुछ घड़ियों मेंओ” (सूरत हूदः 114)
अम्र ने अल-हसन से अल्लाह के कथन ﴿ طَرَفَيْ النَّهَارِ﴾ के बारे में रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा: “फज्र की नमाज़, और दूसरा किनारा ज़ुहर और अस्र की नमाज़ें हैं।” तथा ﴿ وَ زُلَفًا مِنْ اللَّيْلِ ﴾ के बारे में फरमाया : “मगरिब और इशा की नमाज़ है।” इस कथन के आधार पर यह आयत पाँचों नमाज़ों को सम्मिलित है . . . तथा लैस ने अल-हकम के माध्यम से अबू अयाज़ से वर्णन किया है कि उन्हों ने कहा : इब्ने अब्बास ने फरमाया : “यह आयत नमाज़ के समयों को समेटे हुए है :
चुनांचे ﴿ فَسُبْحَانَ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ ﴾मगरिब और इशा को, ﴿ وَحِينَ تُصْبِحُونَ ﴾ फज्र को, ﴿ وَعَشِيًّا ﴾ अस्र को, और ﴿ وَحِينَ تُظْهِرُونَ ﴾ ज़ुहर को सम्मिलित है।” तथा हसन से भी इसी के समान वर्णित है। तथा अबू रज़ीन ने इब्ने अब्बास से रिवायत किया है कि :
﴿ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوبِ ﴾ [ق : 39]
“और अपने पालनहार की स्तुति के साथ तस्बीह करें सूरज के उगने से पूर्व और सूर्यास्त से पहले।” (सूरत क़ाफः 39).
उन्हों ने कहा कि : इस से अभिप्राय “फर्ज़ नमाज़ है।”
तथा फरमाया :
﴿وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ غُرُوبِهَا وَمِنْ آنَاءِ اللَّيْلِ فَسَبِّحْ وَأَطْرَافَ النَّهَارِ لَعَلَّكَ تَرْضَى ﴾ [طه : 130].
“और अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ तस्बीह करें सूरज के उगने से पूर्व और उसके डूबने से पहले, और रात के कुछ हिस्सों में भी, अतः तस्बीह कीजिए दिन के हिस्सों में भी ताकि आप खुश हो जायें।” (सूरत ताहाः 130).
यह आयत भी नमाज़ के समयों पर आधारित है। तो इन सभी आयतों में नमाज़ के समयों का उल्लेख है . . अंत हुआ । अहकामुल क़ुरआन लिल-जस्सास बाब मवाक़ीतुस्सलात।
ऐ मुसलमान भाई ! आपके लिए इस बात को जानना उचित है कि क़ुरआन सभी प्रावधानों के विस्तार पर आधारित नहीं है, बल्कि उसके अंदर बहुत से प्रावधानों का उल्लेख किया गया है इसके अतिरिक्त सुन्नत (हदीस) के तर्क होने का उल्लेख किया गया है जिसके अंदर बहुत से विस्तृत प्रावधानों का उल्लेख है जिन्हें क़ुरआन में वर्णन नहीं किया गया है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿ وَأَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الذِّكْرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَيْهِمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُونَ ﴾ [سورة النحل : 44]
“यह ज़िक्र (किताब) हम ने आप की तरफ उतारी है कि लोगों की तरफ जो उतारा गया है आप उसे स्पष्ट रूप से बयान कर दें, शायद कि वे सोच चिार करें।” (सूरतुन नह्ल : 44)
तथा फरमायाः
﴿ وَمَاءاتَاكُمُ الرَّسُولُ فَخُذُوهُ ﴾ [سورة الحشر : 7]
“और पैग़म्बर जो कुछ तुम्हें दें, उसे ले लो।” (सूरतुल हश्र : 7)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : सावधान! मुझे क़ुरआन और उसके साथ ही उसके समान चीज़ दी गई है . . .” इसे इमाम अहमद (हदीस संख्या : 16546) ने रिवायत किया है, और वह एक सहीह हदीस है। अतः अहकाम चाहे क़ुरआन में वर्णति हुए हों या सुन्नत (हदीस) में, सबके सब सत्य और सभी सही (विशुद्ध) हैं, और सबका स्रोत एक ही है और वह सर्वसंसार के पालनहार की ओर से वह्य (प्रकाशना) है।