1. सामग्री
  2. एकेश्वरवाद का मानव-जीवन पर प्रभाव
  3. इन्सानों का सुधार

इन्सानों का सुधार

इन्सान का दो तरीक़ों से सुधार किया जा सकता है—अन्दर से बाहर की तरफ़ (Outward) और बाहर से अन्दर की तरफ़ (Inward)।
एक तरीक़ा यह है कि क़ानून, ताक़त या सज़ा का डर पैदा करके इन्सान को बुराई करने से रोका जाए और दूसरा तरीक़ा यह है कि अन्दर अर्थात् अक़ीदा (धर्म के प्रति आस्था एवं विश्वास) के द्वारा (अल्लाह है, देख रहा है और उसका सामना करना है)। इस्लाम इसी दूसरे तरीक़े को प्रमुखता व प्राथमिकता देता है, क्योंकि समाज में ऐसे भी लोग होते हैं जो बेहद ताक़तवर हैं, जिन्हें क़ानून और ताक़त आदि किसी चीज़ का डर नहीं होता। उन्हें केवल एकेश्वरवाद की धारणा ही ठीक रख सकती है। यह धारणा अथवा आस्था सामाजिक चेतना (Civic sense) पैदा करती है। एकेश्वरवाद का मानने वाला एक ज़िन्दा अल्लाह को मानता है। इसलिए वह कभी ट्रैफिक की लाल बत्ती नहीं फलांगता, सरकारी सम्पत्ति (Property) को बरबाद नहीं करता। एकेश्वरवाद का मानने वाला एक अच्छा पिता, एक अच्छा पति, एक अच्छा मैनेजर, अच्छा नेता, अच्छा व्यापारी, अच्छा सैनिक, अच्छा शिक्षक, अच्छा डॉक्टर, अच्छा इंजीनियर अच्छा क्लर्क अच्छा वकील, अच्छा जज, अच्छा पुलिसकर्मी अच्छा ऑफिसर, अच्छा मातहत अच्छा मंत्री, अच्छा उद्योगपति, अच्छा किसान, अच्छा श्रमिक आदि साबित होता है।

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