1. सामग्री
  2. क़ुरआन करीम में भ्रूण के विकास के चरणों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य
  3. क़ुरआन करीम में भ्रूण के विकास के चरणों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य

क़ुरआन करीम में भ्रूण के विकास के चरणों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य

यमन के प्रसिद्ध ज्ञानी शैख़ अब्दुल मजीद अज़-ज़न्दानी के नेतृत्व में मुसलमान स्कालरों के एक समूह ने भ्रूण विज्ञान (Embryology) और दूसरे वैज्ञानिक विषयों के बारे में पवित्र क़ुरआन और विश्वस्नीय हदीस ग्रंथों से जानकारियां इकट्ठी कीं और उनका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। फिर उन्होंने पवित्र क़ुरआन की एक सलाह पर काम किया :


﴿وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًا نُوحِي إِلَيْهِمْ ۚ فَاسْأَلُوا أَهْلَ الذِّكْرِ إِنْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ﴾ [سورة النحل : 43]

''ऐ पैग़म्बर! हमने तुमसे पहले भी जब कभी रसूल संदेशवाहक भेजे हैं आदमी ही भेजे हैं जिनकी तरफ हम अपने संदेश को वह्य किया करते थे, सारे चर्चा करने वालों से पूछ लो अगर तुम स्वयं नहीं जानते।''  (अल-क़ुरआन, सूरः 16 आयतः 43)


जब पवित्र क़ुरआन और प्रमाणिक हदीसों से भ्रूण विज्ञान के बारे में प्राप्त की गई जानकारी एकत्रित होकर अंग्रेज़ी में अनुवादित हुई तो उन्हें प्रोफेसर डा. कीथ मूर के सामने पेश किया गया। डा. कीथ मूर टोरॉन्टो विश्वविद्यालय कनाडा में शरीर रचना विज्ञान विभाग के संचालक और भ्रूरण विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं। आज कल वह प्रजनन विज्ञान के क्षेत्र में अधिकृत विज्ञान की हैसियत से विश्व विख्यात व्यक्ति हैं। उनसे कहा गया कि वह उनके समक्ष प्रस्तुत शोध पत्र पर अपनी प्रतिक्रिया दें। गम्भीर अध्ययन के बाद डॉ. कीथ मूर ने कहा, ''भ्रूण के संदर्भ से क़ुरआन की आयतों और हदीस के ग्रंथों में बयान की गई तक़रीबन तमाम जानकारियां ठीक आधुनिक विज्ञान की खोजों के अनुकूल हैं। आधुनिक प्रजनन विज्ञान से उनकी भरपूर सहमति है और वह किसी भी तरह आधुनिक प्रजनन विज्ञान से असहमत नहीं हैं। उन्होंने आगे बताया कि अलबत्ता कुछ आयतें ऐसी भी हैं जिनकी वैज्ञानिक विश्वस्नीयता के बारे में वह कुछ नहीं कह सकते। वह यह नहीं बता सकते कि वह आयतें विज्ञान की अनुकूलता में सही अथवा ग़लत हैं, क्योंकि खुद उन्हें उन आयतों में दी गई जानकारी के संदर्भ का कोई ज्ञान नहीं। उनके संदर्भ से प्रजनन के आधुनिक अध्ययन और शोध प़त्रों में भी कुछ उप्लब्ध नहीं था।''

 

ऐसी ही एक पवित्र आयत निम्नलिखित हैः

﴿اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ `خَلَقَ الْإِنْسَانَ مِنْ عَلَقٍ﴾ [سورة العلق :1-2]

 


‘‘पढ़ो (ऐ नबी) अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया, जमे हुए रक्त के एक थक्के से मानव जाति की उत्पत्ति की।'' (अल-क़ुरआन, सूरः 96 आयतः 1-2)

यहाँ अरबी शब्द 'अलक़' प्रयुक्त हुआ है जिसका एक अर्थ तो 'रक्त का थक्का' है जब कि दूसरा अर्थ है 'कोई ऐसी वस्तु जो चिपट जाती हो' यानी जोंक जैसी कोई वस्तु। डॉ. कीथ मूर को ज्ञान नहीं था कि गर्भ के प्रारम्भ में भ्रूण (Embryo) का स्वरूप जोंक जैसा होता है या नहीं। यह मालूम करने के लिये उन्होंने बहुत शक्तिशाली और अनुभूतिशील यंत्रों की सहायता से, भ्रूण (Embryo) के प्रारम्भिक स्वरूप का एक और गम्भीर अध्ययन किया। तत्पश्चात उन चित्रों की तुलना जोंक के चित्रांकन से की, वह उन दोनों के मध्य असाधारण समानता देख कर आश्चर्यचकित रह गये। इसी प्रकार उन्होंने भ्रूण विज्ञान के बारे में अन्य जानकारियां भी प्राप्त कीं जो पवित्र क़ुरआन से ली गयी थीं और अब से पहले वह इनसे परिचित नहीं थे।


भ्रूण के बारे में ज्ञान से संबंधित जिन प्रश्नों के उत्तर डॉ. कीथ मूर ने क़ुरआन और हदीस से प्राप्त सामग्री के आधार पर दिये उनकी संख्या 80 थी। क़ुरआन व हदीस में प्रजनन की प्रकृति से संबंधित उप्लब्ध ज्ञान केवल आधुनिक ज्ञान से परस्पर सहमत ही नहीं बल्कि डॉ. कीथ मूर अगर आज से तीस वर्ष पहले मुझसे यही सारे प्रश्न करते तो वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में, मै इनमें से आधे प्रश्नों के उत्तर भी नही दे सकता था।

 


1981 ई. में दम्माम (सऊदी अरब) में आयोजित 'सप्तम चिकित्सा सम्मेलन' में डॉ0 मूर ने कहा, ‘‘मेरे लिये बहुत ही प्रसन्नता की स्थिति है कि मैंने पवित्र क़ुरआन में उप्लब्ध 'गर्भावधि में मानव के विकास' से सम्बंधित सामग्री की व्याख्या करने में सहायता की। अब मुझ पर यह स्पष्ट हो चुका है कि यह सारा विज्ञान पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक ख़ुदा या अल्लाह ने ही पहुंचाया है क्योंकि कमोबेश यह सारा ज्ञान पवित्र क़ुरआन के अवतरण के कई सदियों बाद ढूंढा गया था।

 


इससे भी सिद्ध होता है कि मुहम्मद निःसन्देह अल्लाह के रसूल (संदेशवाहक) ही थे । इस घटना से पूर्व डा॰ कीथ मूर 'The developing human' (विकासशील मानव) नामक पुस्तक लिख चुके थे। पवित्र क़ुरआन से नवीन ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद उन्होंने 1982 ई॰ में इस पुस्तक का तीसरा संस्करण तैयार किया। उस संस्करण को वैश्विक शाबाशी और ख्याति मिली और उसे वैश्विक धरातल पर सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा पुस्तक का सम्मान भी प्राप्त हुआ। उस पुस्तक का अनुवाद विश्व की कई बड़ी भाषाओं में किया गया और उसे चिकित्सा विज्ञान पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों को अनिवार्य पुस्तक के रूप में पढ़ाया जाता है।

 


डॉ॰ जोहम्पसन, बेलर कॉलिज ऑफ़ मेडिसिन, ह्यूस्टन, अमरीका में ‘‘गर्भ एवं प्रसव विभाग obstetrics and gynecology के अध्यक्ष हैं। उनका कथन है, ''यह मुहम्मद - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - की हदीस में कही हुई बातें किसी भी प्रकार लेखक के काल, 7वीं सदी ई॰ में उप्लब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर पेश नहीं की जासकती थीं। इससे न केवल यह ज्ञात हुआ कि 'अनुवांशिक' (genetics)  और मज़हब यानी इसलाम में कोई भिन्नता नहीं है बल्कि यह भी पता चला कि इस्लाम मज़हब इस प्रकार से विज्ञान का नेतृत्व कर सकता है कि परम्पराबद्ध वैज्ञानिक दूरदर्शिता में कुछ इल्हामी रहस्यों को भी शामिल करता चला जाए। पवित्र क़ुरआन में ऐसे बयान मौजूद हैं जिनकी पुष्टि कई सदियों बाद हुई है। इससे हमारे उस विश्वास को शक्ति मिलती है कि पवित्र क़ुरआन में उप्लब्ध ज्ञान वास्तव में अल्लाह की ओर से ही आया है।‘‘

Next article
पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day