Search
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-क
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का अपनी पत्नियों के साथ प्यार मोहब्बत
अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की जीवनी में ध्यानी यह बात अच्छी तरह जानता है कि वह अपनी पत्नी का बहुत ख्याल रखते थे , और उनका अच्छी तरह देखभाल करते थे बल्कि सच तो यह है कि उन्हें अपने दिल में बैठाते थे l
इस विषय में उन्होंने बेहतरीन उदाहरण स्थापित किया, उन्हें दिलासा देने में सब से पहले रहते थे, उनका आँसू पोछते थे, उनकी भावनाओं का सम्मान करते थे, उनकी बात नहीं उठाते थे, उनकी शिकायत सुनते थे, उनका दुख हल्का करते थे, उनके साथ चलते फिरते थे ,उनके साथ दौड़ का मुकाबला भी करते थे , उनकी बेरुखी और लड़ाई झगड़े को भी सहते थे, उनकी पहचान का सम्मान करते थे यहां तक कि समस्याओं के समय में तो उनका और ज़ियादा ख्याल करते थे, केवल यही नहीं बल्कि उनके सामने अपने प्यार को स्पष्ट करते थे और उस प्यार से खुश होते थे , यह लीजिए यहाँ हमने आपके लिए कुछ मोतियाँ इकठ्ठा किए हैं जो आपके सामने बिखेरते हैं l
वह उनकी भावनाओं और उनके जज़्बात को पहचानते थे
तुम मुझ से खुश रहती हो और जब तुम मुझ पर गुस्से में रहती होl
"उन्होंने पूछा कैसे? तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उत्तर दियाजब तुम खुश रहती हो तो यह कहती हो:"नहीं नहीं मुहम्मद के पालनहार की क़सम"और जब गुस्से में रहती हो तो कहती हो "नहीं नहीं इब्राहिम के पालनहार की क़समl" इस पर वह बोलीं:"जी हाँअल्लाह की क़सम!हे अल्लाह के पैगंबर मैं केवल आप का नाम नहीं लेती हूँl"
यह हदीस हज़रत अबू-हुरैरा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-के द्वारा कथित की गई , और यह हदीस सही है, इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है, देखिए मुस्लिम शरीफ पेज नंबर या संख्या: २४३९l
उनकी ईर्ष्या और प्रेम को ध्यान में रखते थे
हज़रत उम्मे सलमा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहती हैं कि एक बार वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास अपनी एक थाली में कुछ खाना लेकर आई तो हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-एक चादर ओढ़े हुए आगे बढ़ीं और उनके साथ उनका गुलाम 'फिहर' साथ था और थाली को तोड़ दी तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने थाली के दोनों टुकड़ों को मिलाया और दो बार यह शब्द बोले"खाओ तुम्हारी मां को ईर्ष्याहुई" इसके बाद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- की थाली ली और उम्मे सलामा के पास भेज दिया, और उम्मे सलमा की थाली हज़रत आइशा को दे दिए lयह हदीस हज़रत उम्मे सलमा से कथित हुई और यह हदीस सही है , इसे अल्बानी ने उल्लेख किया है , देखिए 'सहीह नसई' पेज या संख्या नंबर: 3966l
उनकी मानसिक और प्रकृति को समझ कर चलते थे
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:"महिलाओं के साथ भलाई करने की सलाह दिया करो, क्योंकि वे एक पसली से बनाई गई हैं और पसलियों में सब से टेढ़ी तो ऊपर वाली पसली होती हैं, तो यदि तुम उसे सीधी करने जाओगे तो तोड़ कर रख दोगे, और यदि छोड़ दोगे तो टेढ़ी रहेंगी, इसलिए महिलाओं के साथ भलाई की सलाह दिया करो lयह हदीस हज़रत अबू-हुरैरा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-के द्वारा कथित की गई , और यह हदीस सही है, इसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया है, देखिए बुखारी शरीफ पेज नंबर या संख्या: ३३३१l
याद रहे कि इस हदीस में महिलाओं की बुराई नहीं की जा रही है जैसा कि साधारण लोग ख़याल कर सकते हैं बल्कि इस में मर्दों को समझाया जा रहा है और उनको ज्ञान दिया जा रहा है और इस में महिलाओं की चमत्कारिक प्रकृति को बयान किया जा रहा है और इस में यह बात भी सिखाई जा रही है कि महिलाओं को जाइज़ कामों की सीमा में रखते हुए उनके टेढ़े सवभाव पर छोड़ दिया जा सकता हैlलेकिन यदि पाप करने या अल्लाह की ओर से फ़र्ज़ की हुई बातों में सुस्ती की बात है तो उस समय उनको सीधा किया जाना चाहिए l
वह उनके साथ समस्याओं के बारे में बात भी करते थे और उनसे सलाह भी लेते थे
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अपनी पवित्र पत्नियों से सबसे नाजुक बातों में भी सलाह लेते थे l
इस में वह सलाह भी शामिल है जो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने 'सुलह हुदैबिया' के अवसर पर उम्मे सलमा से ली थी ,हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कुरैश के मूर्तिपूजकों के साथ एक समझौता लिखवाया था, और यह घटना 'हुदैबिया' के साल 'हुदैबिया' नामक स्थान पर घटी थी, उस समय हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने अपने साथियों से कहा: चलो उठो कुरबानी के जानवरों को यहीं ज़बह कर लो और सिर मुंडा लो , इस हादीस के कथावाचक कहते हैं :अल्लाह की क़सम तो उनमें से एक आदमी ने भी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के आदेश पर अमल नहीं किया, यहां तक कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने यह आदेश तीन बार दुहराई, और जब कोई नहीं सुना तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- उठे और उम्मे सलमा के पास आए और उनको यह बात बताए तो उम्मे सलमा ने कहा:ऐ अल्लाह के दूत! आप जाइए और किसी से भी कोई बात मत कीजिए पहले अपनी कुरबानी के जानवर को ज़बह कर लीजिए और नाई को बुला कर अपना सिर मुंडा लीजिएlइस पर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- निकले और किसी से कोई बात नहीं किए और पहले अपना काम कर लिए जब लोग यह देखे तो वे भी उठे और अपनी अपनी कुरबानी को ज़बह किए और आपस में एक दूसरे के सिर को मुंडने लगे और उस समय ऐसा लग रहा था कि चिंता के कारण एक दूसरे को मार डालेंगे l" यह हदीस उम्मे सलमा हिन्द बिनते अबू-ओमय्या से कथित है, यह हदीस 'मुतवातिर'(यानी बहुत मशहूर है कि झूट नहीं हो सकती)इसे अब्ने जरीर तबरी ने उल्लेख किया है, देखिए 'तफसीर तबरी' पेज या संख्या: 2/ 293
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-अपना प्यार और और अपनी वफादारी का उनको विश्वास दिलाते थे
हज़रत आइशा से कथित उम्मे-ज़रअ वाली हदीस में है जिसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया है कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने हज़रत आइशा को कहा: "मैं तुम्हारे लिए ऐसे ही हूँ जैसे अबू-ज़रअ उम्मे-ज़रअ केलिए था l" मतलब मैं प्यार और वफादारी में तुम्हारे लिएअबू-ज़रअकी तरह हूँ , इस पर हज़रत आइशा ने कहा: मेरे मां बाप आप पर निछावर, आप तो जैसा अबू-ज़रअ उम्मे-ज़रअ केलिए था उससे कहीं बेहतर हैं lयह हदीस हज़रत आइशा से कथित है और सही है , इसे बुखारी ने उल्लेख किया है lदेखिए पेज या संख्या नमबर:5189l
उनके लिए अच्छा से अच्छा नाम चुना करते थे
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने हज़रत आइशा को कहा:"ऐ आइश! यह जिब्रील हैं तुम को सलाम कह रहे हैं lतो हज़रत आइशा बोली: और उन पर भी सलाम हो और अल्लाह की दया और उसके आशीर्वाद हो, आप तो वह देखते हैं जो मैं नहीं देख सकती l" उनका मतलब था कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- जो देखते हैं वह हज़रत आइशा नहीं देख सकती क्योंकि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-तो फरिश्तों को देखते थे lऔर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत आइशा को "या हुमैरा!" (ऐ गोरी) के शब्द से संबोधित करते थे, "हमरा" अरबी भाषा में गोरी को कहते हैं और 'हमरा' को प्यार जताने के लिए कभी "हुमैरा" भी कहा जाता है l
यह हदीस हज़रत आइशा से कथित है और सही है , इसे इब्ने हजर अस्क़लानी ने उल्लेख किया है, देखिए 'फतहुल बारी' पेज या संख्या: २/५१५ l
उनके साथ खाते पीते थे
इस विषय में हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहती हैं:"मैं पानी पीती थी और मैं माहवारी में होती थी, फिर मैं हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को बरतन देती थी तो वह अपने पवित्र मुंह को उस जगह रख कर पीते थे जहां मैं मुंह रखती थी, और मैं हड्डी वाले गोश्त को दांत से नोचती थी और फिर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को देती थी तो वह अपने पवित्र मुंह को मेरे मुंह से काटे हुए गोश्त के टुकड़े पर रखते थेl" यह हदीस हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- से कथित है, और सही है , इसे मुस्लिम ने उल्लेख किया है, देखिए मुस्लिम शरीफ पेज नम्बर या संख्या: 300.
उनकी परिस्थितियों पर उबते नहीं थे
बुखारी में ही यह भी उल्लेखित है कि हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-ने कहा:मैं अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के सिर में कंघी करती थी जब मैं माहवारी में होती थी l
इस हदीस में एक शब्द "उरज्जिलु" أرجل है जिसका अर्थ है: मैं उनके बालों को संवारती थी l
यह हदीस हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-के द्वारा कथित की गई , और यह हदीस सही है, इसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया है, देखिए बुखारी शरीफ पेज नंबर या संख्या: २९५l
उनके गोद में सिर रखते थे और उनका टेका लिया करते थे
हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहती हैं :"हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-मेरी गोद में टेका लेते थे जब मैं माहवारी में होती थी फिर वह कुरआन भी पढ़ते थे l"
यह हदीस हज़रत आइशा से कथित हुई, और सही हदीस है, इसे बुखारी ने उल्लेख किया, देखिए बुखारी शारीफ पृष्ठ नम्बर या संख्या: 297l
उनके साथ चलना फिरना और उनके साथ इधर उधर जाते आते थे
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-जब बाहर की यात्रा करते थे तो अपनी पत्नियों के बीच चुनाव रखते थे, एक बार हज़रत आइशा और हज़रत हफ्सा का नाम निकला तो दोनों उनके साथ निकले और जब रात होती थी तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत आइशा के साथ चलते थे , उनके साथ बातचीत करते थे, तो हज़रत हस्फा हज़रत आइशा को बोलीं: क्या आज तुम मेरी सवारी पर बैठो गी और मैं तुम्हारी सवारी पर बैठूंगी? फिर मैं भी देखूंगी और तुम भी देखो गी क्या होता है? इस तरह हज़रत आइशा हज़रत हफ्सा की सवारी पर बैठ गईं और हज़रत हफ्सा हज़रत आइशा की सवारी पर बैठ गईं तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत आइशा की सवारी के पास आए जबकि उस पर तो हज़रत हफ्सा बैठी थीं ,हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-सलाम किए और उनके साथ साथ चलने लगे यहां तक कि एक स्थान पर पड़ाव डाले, इतने में हज़रत आइशा उनको खोजे लेकिन वह दिखाई नहीं दिए तो उनको डाह हुआ , जब वे उतरे तो हज़रत आइशा ने (डाह के कारण) अपने पैर को 'इज्खिर' (नामक घासों) में रखी (जहां सांप और बिच्छू रहते थे) और दुआ करने लगी:"हे पालनहार! मेरे लिए सांप या बिच्छू को भेज जो मुझे काटे, यह तो तेरे दूत हैं और इनको मैं कुछ कह भी नहीं सकती हूँlयह हदीस हज़रत आइशा से कथित हुई, और सही हदीस है, इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया, देखिए मुस्लिम शारीफ पृष्ठ नम्बर या संख्या: 297l
घर के कामों में उनकी मदद करते थे
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से पूछा गया कि घर पर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-किस तरह रहते थे ? तो उन्होंने उत्तर दिया : अपने परिवार के काम में लगे रहते थे और जब आज़ान सुनते थे तो(मस्जिद को) निकल पड़ते थे l
यह हदीस हज़रत आइशा से कथित हुई, और सही हदीस है, इसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया, देखिए बुखारी शारीफ पृष्ठ नम्बर या संख्या: 297l
उनका बोझ हल्का करने के लिए खुद अपने काम कर लेते थे
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से पूछा गया कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-अपने घर में क्या काम करते
थे ? तो उन्होंने उत्तर दिया : अपना कपड़ा सी लेते थे , और बकरी को दूह लेते थे , और अपना काम खुद कर लेते थे l
यह हदीस हज़रत आइशा से कथित हुई, और सही हदीस है, इसे अल्बानी ने उल्लेख किया, देखिए 'सहीह अल-जामिअ' पृष्ठ नम्बर या संख्या:
4996l इसी तरह हज़रत आइशा कहती हैं कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- खुद अपना कपड़ा सीते थे , और अपने जूते को दुरुस्त कर लेते थे और सारे लोग जो काम अपने अपने घरों में करते हैं वे सब किया करते थे lयह हदीस हज़रत आइशा से कथित हुई, और सही हदीस है, इसे अल्बानी ने उल्लेख किया, देखिए 'सहीह अल-जामिअ' पृष्ठ नम्बर या संख्या:४९३७l
उनकी खुशी के लिए खुद ही बहुत कुछ सह लेते थे
हज़रत आइशा कहती हैं कि हज़रत अबू-बक्र-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- एक बार उनके (हज़रत आइशा) पास आए और उस समय उनके पास दो लड़कियां दफ (ढोलक) बजा रही थी और गा रही थी औरहज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-अपने परिधान को ओढ़े हुए थेl
और एक कथन में है अपने कपड़े में लिपटे हुए थे तो अपने चेहरे को खोले और बोले इनको बजाने दो ऐ अबू-बक्र! ईद के दिन हैं , यह दिन ईदे कुरबानी के थे और उस समय हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-शुभ मदीना में थे lयह हदीस हज़रत आइश से कथित हुई और यह हदीस सही है , इसे अल्बानी ने उल्लेख किया है , देखिए 'सहीह नसई' पेज या संख्या नंबर: १५९६l
उनकी साहिलियों के पास उपहार भेजते थे और उनका ख्याल रखते थे
हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहती हैं :" मुझे हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की किसी पत्नी पर डाह नहीं हुआ मगर केवल खादीजा पर जबकि मैं उनको देखी भी नहीं , हज़रत आइशा कहती हैं कि हज़रत पैगंब