1. सामग्री
  2. पैगंबर मुहम्मद एक पति के रूप में - अहमद क़ासि
  3. अल्लाह के दूत -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- 

अल्लाह के दूत -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- 

Auther : Ahmad kasem El Hadad

 

अल्लाह के दूत -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का सुंदर स्वभाव

 

हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की तरह का वैवाहिक स्वभाव किसी महिला ने कभी भी नहीं देखी और जैसा सुंदर स्वभाव एक पति में होना चाहिए वैसा उन में भर पूर तरीके से उपस्थित था , वास्तव में उनका स्वभाव, उनकी बात, उनके किरदार बिलकुल शुभ क़ुरआन का अनुवाद थे l

अपनी पवित्र पत्नियों के साथ उनकी नैतिकता यही रहती थी कि वह सदा उनके साथ अच्छा बर्ताव करते थे , सदा मुस्कुराहट से पेश आते थे , अपनी पवित्र पत्नियों के साथ हंसी मज़ाक़ और नरमी से पेश आते थे, दिल खोल कर उन पर ख़र्च करते थे , खुद भी हँसते और उनको भी हंसाते थे, वह तो हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-के साथ दौड़ का रेस भी लगाते थे lइस विषय में खुद हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहती हैं कि एक बार हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- मेरे साथ दौड़ का मुक़ाबला किए थे तो मैं जीत गई थी lथोड़े समय बीतने के बाद जब मैं ज़रा मोटी हो गई थी तो एक बार फिर मेरे साथ दौड़ का मुक़ाबला किए तो वह जीत गएlइस पर उन्होंने कहा :"यह उसका जवाब है" मतला यह पहली वाली जीत का बदला हैlयह हदीस हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से कथित है, और सही है, अल्बानी ने इसे साही कहा है, देखिए 'ग़ायतुल मराम' पृष्ठ या संख्या: 377l

और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- हर रात अपनी पत्नियों को उस घर में इकठ्ठा करते थे जहां रात में रहना होता था और कभी कभी उन सब के साथ रात का खाना खाते थे , और फिर सब अपने अपने घरों को वापस चली जाती थीं , फिर अपनी पवित्र पत्नियों में से उनके साथ आराम फरमाते थे जिनकी बारी होती थीlवह अपनी चादर उतार देते थे और तहबंद पहन कर अपनी पत्नी के साथ एक ही चादर में आराम फरमाते थे, और कभी कभी जब इशा की नमाज़ पढ़ लेते थे तो अपने घर में प्रवेश करते थे और अपने परिवार के साथ सोने से पहले कुछ देर कहानी और किस्सा और बातचीत करने में समय बिताते थे, उनके दुख दूर करते थे और इसके द्वारा उनका दुख का बोझ हल्का करते थे  lइसे हफीज इब्न कसीर –अल्लाह उनपर दया करे- ने उल्लेख किया हैl

बल्कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने तो पतियों के अच्छे होने का तराजू इसे ही बताया कि अपनी पत्नियों के साथ अच्छा बर्ताव करेlउन्होंने इस विषय में फरमाया :" तुम्हारे बीच सब से अच्छा वह व्यक्ति है जो अपने परिवारके साथ अच्छा हैऔर मैं अपने परिवारके साथ तुम्हारे बीच सब से अच्छा हूँl "

यह हदीस हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से कथित है , लेकिन यह हदीस 'हसन' 'ग़रीब' 'सहीह' है , इसके कथावाचक इमाम तिरमिज़ी हैं , देखिए 'सुनन तिरमिज़ी' पेज नम्बरया संख्या: 3895l(हसन ग़रीब सहीह का मतलब यह है कि इस के बयान करनेवाले सारे लोग सच्चाई और विश्वास में मशहूर हैं लेकिन वे याद रखने में सही हदीस के कथावाचक के दर्जे पर नहीं हैं , और इसे कथित करनेवालों में से एक या कुछ लोग इस हदीस की किसी बात में अकेले रहेl)

ऐसे व्यक्ति के सब से अच्छा होने का कारण यह है कि अच्छे सवभाव से पेश आना कभी कभी कमज़ोर पड़ता है और अच्छे बर्ताव का मामला उस समय ठंडा पड़ जाता है जब आदमी यह महसूस करता है कि घरवालों और परिवार पर तो उसकी हुकूमत है , इसी तरह जब एक आदमी कुछ लोगों के साथ जो उनके मातेहत हैं ज़ियादा दिनों तक रहता है तो भी आदमी का बर्ताव बिगड़ जाता है और कमजोर पड़ता है और यदि एक आदमी यह सब बातों के बावजूद अपने बर्ताव को बचा कर चलता है और बिगड़ने से रोक लेता है, और ऐसे लोगों के साथ भी अच्छा रहता है जिनके साथ सदा रहना होता है, और जिनके साथ सदा का लेनदेन और नैतिक संबंध है उनके साथ भी अच्छा रहता है इसका मतला यही होता है कि वह सब से अच्छा आदमी है , और ऐसा आदमी तो दुसरों के साथ भी अच्छा रहेगा l  

और जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अपने परिवार के लोगों के साथ सारे लोगों की तुलना में सबसे अच्छे थे तो मतलब साफ़ है कि अपने परिवार के साथ उनका बर्ताव भी निस्संदेह सब से अच्छा था और सब के लिए अपनाए जाने के योग्य नमूना था, बल्कि सच तो यह है कि नैतिक व्यवहार की पूर्णता के सारे अर्थ उन में भरपूर रूप से उपलब्ध थे , चाहे व्यवहारिक हो या लेनदेन की बात हो या प्यार और हंसी मज़ाक़ की बात हो, न्याय और दया का विषय हो या वफादारी की बात हो सब में वह नमूना थे , इसी तरह वैवाहिक जीवन में रातदिन होने वाली सारी बातों में वह यकता थे l  जैसा कि उनकी जीवनी , बर्ताव और किरदार की पुस्तकों में उल्लेखित हैl और यही बात उन सारी हदीसों में भी मिलती है जिन में हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का उनकी पवित्र पत्नियों के साथ बर्ताव का वर्णन है l

(क) हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के अपनी पवित्र पत्नियों के साथ प्यार के विषय में हज़रत अनस बिन मलिक-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहते हैं कि:

१- हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:"

इस दुनिया में से जो चीज़ मुझे प्रिय हैं वे यह हैं, महिलाएं, खुशबू और यह कि नमाज़ में मेरी आँख की ठंडक रखी गई l "

इसे अनस बिन मलिक ने कथित किया है, इसके कथावाचक विश्वसनीय हैंl इसे इमाम ज़हबी ने 'मीज़ानुल एतेदाल' में उल्लेख किया है, देखिए पेज नम्बर: 2 / 177l  

२-अम्र बिन आस-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- से यह कह कर पूछा:"लोगों में आपको  सब से प्रिय कौन हैं? तो उन्होंने उत्तर दिया:आइश, तो मैंने पूछा : मर्दों में से कौन? तो उन्होंने उत्तर दिया: उनके पिता, इसके बाद मैंने पूछा:उनके बाद कौन? तो उन्होंने उत्तर दिया:उमर, इस तरह उन्होंने कई लोगों के नाम लिए, तो फिर मैं इस डर से चुप हो गया कि कहीं मुझे सब के बाद न रख देंl  

इसे अबू उस्मान नह्दी ने कथित किया है, और यह हदीस सही है, इसे इमाम बुखारी ने उल्लेख किया है, देखिए बुखारी शरीफ पेज नंबर या संख्या: 4358l

 (ख) और उनके अपने परिवार के साथ हंसी मज़ाक़ के विषय मेंहज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-कहती हैं:

१- मैं हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के घर में लड़कियों के साथ खेलती थी, मेरी कुछ सहेलियां थीं जो मेरे साथ खेला करती थी और जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- प्रवेश करते थे तो वे सब उनसे भाग जाती थीं तो फिर वह उनको इकठ्ठा कर के मेरे पास पहुंचाते थे और फिर वे मेरे साथ खेलने लगती थींl  यह हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से कथित है, और सही है, अल्बानी ने इसे उल्लेख किया, देखिए 'अलअदब अलमुफरद' पृष्ठ या संख्या: 283 l

२-और हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-कहती हैं:एक बार हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-मुझे छिपा रहे थे और मैं हबशियों को देख रही थी, जब वे मस्जिद में अपना खेल दिखा रहे थे, तो हज़रत उमर-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- ने उन लोगों को झिड़क दिया इस पर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा: छोड़ दो, हे बनी अरफदह तुम लोगों को शांति का वचन है l मतलब तुमको सुरक्षा प्राप्त है l

यह हदीस हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से कथित है, और सही है , इसे बुखारी ने उल्लेख किया है,  देखिए बुखारी शरीफ पेज नम्बर या संख्या: 3529 l

और एक दूसरे कथन में है , वह कहती हैं: "मैं देखी कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- मेरे कमरे के दरवाजे पर खड़े थे और  हब्शी लोग अपने भालों से हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की मस्जिद में खेल कर रहे थे, तो वह अपनी चादर में मुझ को छिपा रहे थे ताकि मैं उनका खेल देख सकूँ, वह मेरे लिए रुके रहते थे यहां तक कि मैं ही उठ जाती थी l इसलिए ऐ लोगो! तुम लोग भी नई नवेली और कम उम्र लड़की का ख्याल रखो, जिनको खेल कूद देखने का शौक़ होता है l"

यह हदीस हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से कथित है, और सही है , इसे मुस्लिम ने उल्लेख किया है, देखिए मुस्लिम शरीफ पेज नम्बर या संख्या:892l

३- इसके इलावा अभी अभी हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-की वह हदीस गुज़री है जिस में यह उल्लेख है कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- खुद उनका दिल बहलाने और दिल लगाने के लिए खेलते थेlवास्तव में वह बहुत दयालु कृपाशील और मेहरबान थे l

४- हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के अच्छे बर्ताव और सुंदर स्वभाव उस शुभ हदीस से भी झलक रहे हैं जिस में हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-कहती हैं:"मैं पानी पीती थी और मैं माहवारी में होती थी, फिर मैं हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को बरतन देती थी तो वह अपने पवित्र मुंह को उस जगह रख कर पीते थे जहां मैं मुंह रखती थी, और मैं हड्डी वाले गोश्त को दांत से नोचती थी और फिर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को देती थी तो वह अपने पवित्र मुंह को मेरे मुंह से काटे हुए गोश्त के टुकड़े पर रखते थेl यह हदीस हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से कथित है, और सही है , इसे मुस्लिम ने उल्लेख किया है,  देखिए मुस्लिम शरीफ पेज नम्बर या संख्या: 300l

और एक दूसरे कथन में हैहज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-कहती हैं कि "मैं हड्डी वाले गोश्त को दांत से नोचती थी और फिर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को देती थी जबकि मैं माहवारी में होती थी तो भी वह अपने पवित्र मुंह को मेरे मुंह से काटे हुए गोश्त के टुकड़े पर रखते थे,  और मैं पियाली से पानी पीती थीऔर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को बरतन देती थी तो वह अपने पवित्र मुंह को उस जगह रख कर पीते थे जहां मैं मुंह रखती थी l" इसे अबू दाऊद ने उल्लेख किया l

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