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क्या मुसलमान शुभ कअबा को पूजते हैं ?

19230 2009/04/15 2024/11/05

 

क्या मुसलमान शुभ कअबा को पूजते हैं ?

इस्लाम केवल एक अल्लाह की पूजा के प्रचार के लिए आया उसके मूल उद्देश्यों में यह बात सब से महत्वपूर्ण है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान के इलावा किसी की पूजा न हो भले ही मनुष्य की पूजा हो या किसी पत्थर की lशुभ क़ुरआन में है:"

"واتخذوا من دونه آلهة لا يخلقون شيئا وهم يخلقون, ولا يملكون لأنفسهم ضرا ولا نفعا, ولا يملكون موتا ولا حياة ولا نشورا" (الفرقان: 3)

 

 

(फिर भी उन्होंने उससे हटकर ऐसे ईष्ट-पूज्य बना लिए जो किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते हैंlउन्हेंन तो अपनी हानि का अधिकार प्राप्त है और न लाभ का lऔर न उन्हें मृत्यु का अधिकार प्राप्त है और न जीवन का और न दोबारा जीवित होकर उठने का l) (अल-फुरक़ान:३) 

और अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है:"

"وما أرسلنا من قبلك من رسول إلا نوحي إليه أنه لا إله إلا أنا فاعبدون" (الأنبياء 25)

"हमने तुम से पहले जो रसूल भी भेजा, उसकी ओर यही प्रकाशना की कि"मेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहींlअतः तुम मेरी ही बन्दगी करोl"(अल-अंबिया:२५)

और हज़रत इबराहीम-सलाम हो उनपर-ने अपने पिता से कहा था और अल्लाह को छोड़कर उनके मूर्तिपूजा के काम का खंडन किया:"

"وإذ قال إبراهيم لأبيه آزر أتتخذ أصناما آلهة إني أراك وقومك في ضلال مبين"(الأنعام: 74)

 

 

(और याद करो, जब इबराहीम ने अपने बाप आज़र से कहा था:"क्या आप मूर्तियों को पूज्य बताते हो? मैं तो आपको और आपकी क़ौम को खुली गुमराही में पड़ा देख रहा हूँ l" (अल-अनआम:७४)

एक दूसरी जगह पर शुभ क़ुरआन में आया है हज़रत इबराहीम के बारे में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फ़रमाया:"

"يا أبت لم تعبد ما لا يسمع ولا يبصر ولا يغني عنك شيئا" (مريم: 42)

 

 

(ऐ मेरे बाप! आप उस चीज़ को क्यों पूजते हैं, जो न सुने और न देखे और न आपके कुछ काम अए l) (मरयम:४२)

और अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उसके सिवा मूर्तियों की पूजा के बारे में चेताया और कहा:"

"ألهم أرجل يمشون بها, أم لهم أيد يبطشون بها, أم لهم أعين يبصرون بها, أم لهم آذان يسمعون بها؟ قل ادعوا شركائكم ثم كيدون فلا تنظرون" (الأعراف: 195)

 

 

(क्या उनके पाँव हैं जिनसे वे चलते हों या उनके हाथ हैं जिनसे वे पकड़ते हों या उनके पास आँखें हैं जिनसे वे देखते हों या उनके कान हैं जिनसे वे सुनते हों? कहो:"तुम अपने ठहराए हुए सहभागियों को बुला लो, फिर मेरे विरूद्ध चालें चलें, इस प्रकार कि मुझे मुहलत न दो l"(अल-आराफ़:१९५)  
और हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-से पूछा गया :कौनसा पाप सबसे अधीक भयानक है? तो उन्होंने फ़रमाया :"अल्लाह के लिए साझेदार ठहराना जबकि उसने तुम्हें बनाया l"
और हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-ने शुभ मक्का में अपने विजयी वापसी के बाद सबसे पहला जो काम क्या वह था कअबा की सभी मूर्तियों का तोड़ना, उस समय वह इस शुभ आयत को पढ़ रहे थे :"

 

 

"وقل جاء الحق وزهق الباطل إن الباطل كان زهوقا" (الإسراء 81)

(कह दीजिए:"सत्य आ गया और असत्य मिट गया;असत्य तो मिट जानेवाला ही होता है l" (बनी इसराईल:८१)
इन सब के बावजूद, आप खुद सोंच सकते हैं कि आरोप लगानेवाले का यह आरोप कैसे सही हो सकता है कि मुसलमान शुभ

कअबा को पूजते हैं?

वास्तव में, पवित्र कअबा तो सिर्फ एक क़िबला है जिसकी ओर मुसलमान अपनी नमाजों के समय चेहरा रखते हैं और यह तो एकता और लक्ष्य के एक होने का आइना है, और जब वे उसके पास जाते हैं और उसका फेरा लगाते हैं तो वे यही विश्वास रखते हैं कि वे इसके द्वारा अल्लाह सर्वशक्तिमान के आदेश की आज्ञाकारीता कर रहे हैं, और यही समझते हैं कि वे असल में पत्थर हैं जो न कुछ लाभ दे सकते हैं और न कोई हानि पहुंचा सकते हैं lनिश्चित रूप से वे जानते हैं कि यही अल्लाह का आदेश है और उसे करना ही करना है चाहे हमारे समझ में आए या न आए, इसी का नाम तो आज्ञाकारीता है कि उसके कारण का ज्ञान हो या न हो अल्लाह की बात मान ली जाए l

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