1. सामग्री
  2. पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की आज्ञाएं व वसीयतें
  3. महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करो।

महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करो।

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तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"जो कोई अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता हो तो वह अपने पड़ोसी को तकलीफ न पहुंचाए। और महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करो। इसलिए के वे पसली से पैदा की गई हैं। और पसलियों में सबसे ऊंची वाली पसली सबसे ज्यादा टेढ़ी है। तो अगर तुम उसे सीधा करना चाहोगे तो तोड़ दोगे और अगर यूंही छोड़ दोगे तो वह टेढ़ी ही रहेगी। तो महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करो।"

यह उन महान वसियतो में से एक है जो पुरुषों और महिलाओं को अमन व शांति, प्यार व मोहब्बत, इत्तेफाक और आपस में समझ बूझ के साथ जिंदगी गुजारने की ज़मानत देती है। और हर एक को उसके अधिकारों और जिम्मेदारियों की याद दिलाती है।

इस ह़दीस़ शरीफ में नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने पड़ोसियों को तकलीफ देने से मना करने के बाद महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है। क्योंकि महिला जबकि पत्नी हो एक ऐसी पड़ोसन है जो अपने पड़ोसी यानी पति के साथ एक ऐसे मजबूत बंधन में जुड़ी रहती है जिसकी इजाज़त अल्लाह ने दी है जिसकी वजह से अल्लाह ने उन दोनों को एक जगह जमा किया है ताकि वह एक दूसरे के लिए लिबास और सुकून हो जाएं।

क़ुरआन और सुन्नत में पड़ोसियों के अधिकार पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है खासतौर पर जबकि पड़ोसी नजदीकी मुसलमान हो। तो पत्नी जो कि सबसे नजदीक मुसलमान पड़ोसन है जो पति के हमेशा नजदीक रहती है, उसके घर में जिंदगी बसर करती है, और दोनों एक दूसरे से हर तरह का सुकून हासिल करते हैं तो अंदाजा लगाएं कि इस पड़ोसन (यानी पत्नी) के पति पर कितने अधिकार होंगे! और उस पर उस पड़ोसी (यानी पति) के कितने अधिकार होंगे!

इसी वजह से नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने पुरुषों को महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है।  ताकि वे एक दूसरे से संबंध बेशुमार अधिकारों का ख्याल रख सकें।

"उनके साथ अच्छा व्यवहार करो।" इसका मतलब यह है कि तुम एक दूसरे को आदेश दो कि हर एक अपनी पत्नी के खर्च, उसके कपड़ों और दूसरी जरूरतों का ख्याल रखे। और उसके साथ अच्छा बर्ताव करे।

यह वसियत पुरुषों को तमाम मामलों में अच्छी तरह से न्याय और इंसाफ स्थापित करने की दावत देती है।

इस्लाम में इंसाफ का संतुलन यह है कि इंसान को उतने अधिकार भी दिए जाएं जितनी उसके ऊपर जिम्मेदारियाँ हैं।

 

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