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पवित्र पत्नियों के साथ नरमी और प्यार पत्नी
पवित्र पत्नियों के साथ नरमी और प्यार पत्नी के साथ प्यार के प्रकटन का एक तरीक़ा
पत्नी के साथ प्यार के प्रकटन एक तरीक़ा यह भी है कि उनको उनके सबसे अधिक प्रिय नाम से पुकारा जाए या उनके नाक को छोटा और संक्षिप्त करके प्यार से पुकारा जाए lजैसा कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- के साथ किया करते थे lएक शुभ हदीस में है कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने हज़रत आइशा को यह कह कर संबोधित किया:" ए आइश! यह जिबरील हैं आपको सलाम कर रहे हैं, हज़रत आइशा ने कहा:"तो मैं 'वअलैहिस-सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह'(और उनपर भी सलाम हो और ईश्वर की कृपा और उसकी दया और उसकी बरकत हो) आप तो वह देखते हैं जो मैं नहीं देख सकतीlमतलब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- जो देखते हैं वह तो मैं नहीं देखती हूँ lइस हदीस को हज़रत आइशा ने कथित किया और यह हदीस सही है , बुखारी और मुस्लिम दोनों इस 'हदीस'के सही होने पर सहमत हैं lदेखिए हदीस नमबर:२४४७l
वह हज़रत आइशा को 'ए हुमैरा' भी कहकर संबोधित करते थे l'हमरा' और 'हुमैरा' अरबी में गोरी महिला को कहते हैं lजैसा कि इब्ने कसीर ने 'अन-निहाया' नामक पुस्तक में उल्लेख किया है lऔर इमाम ज़हबी ने कहा हिजाज़ के लोगों की भाषा में 'हमरा' ऐसी गोरी महिला को कहते हैं जिसके गोरे रंग में लाली शामिल हो और यह रंग उन लोगों में बहुत कम पाया जाता था lइसका मतलब यह है कि वह उन्हें उनके सुंदर नामों के द्वारा पुकारते थे और प्यार से उनके नामों को छोटा और संक्षिप्त करके पुकारते थे l
इमाम मुस्लिम ने रोज़ा के बारे में हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- की हदीस को उल्लेख किया है, हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- ने कहा:"हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अपनी पत्नियों में से किसी को चूमते थे जबकि वह रोज़ा में होते थे lयह सुना कर हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- हँसती थी l"
इस हदीस को हज़रत आइशा ने कथित किया और यह हदीस सही है , इमाम मुस्लिम ने इसे उल्लेख किया है lदेखिए हदीस नमबर:११०६ l
हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- के द्वाराही कथित है कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा:"विश्वासियों के बीच सब से अधिक पक्का विश्वासवाला वह है जिसके शिष्टाचार सब से अच्छे हैं और जो अपनी पत्नी पर सब से अधिक दयालु है lइस हदीस को इमाम तिरमिज़ी ने हज़रत आइशा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से उल्लेख किया है lयह हदीस सही है देखिए 'सुनने तिरमिज़ी' हदीस नमबर:२६१२l
इन हदीसों से यह बात खुल कर हमारे सामने आ जाती है कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अपनी पवित्र पत्नियों का बहुत खयाल रखते थे विशेषरूप से हज़रत आइशा–अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-का और उन सब के साथ बहुत सुंदर बर्ताव करते थे lप्यार और लाड में उन्हें खाना खिलाना भी शामिल है, इस संबंध में हज़रत सअद बिन अबू-वक्कास से कथित है उन्होंने कहा:" हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- मेरे पास तीमारदारी करने के लिए आए जब मैं पवित्र मक्का में था और सअद को उस धरती पर मारना नापसंद था जहां से स्थलांतर कर चुके थे तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा:" अल्लाह अफरा के बेटे पर दया करे l"हज़रत सअद कहते हैं मैंने कहा:" हे अल्लाह के दूत मैं अपने पूरे धन को दान कर देना चाहता हूँ तो उन्होंने कहा:" नहीं" तो मैंने कहा:" तो फिर आधा धन " तो उन्होंने कहा:" नहीं" तो मैंने कहा:" तो फिर मेरे धन का तीसरा भाग " तो उन्होंने कहा:" तीसरा भाग(ठीक है) और तीसरा भाग भी बहुत है, निसंदेह यदि तुम अपने उत्तराधिरियों को अमीर छोड़ोगे तो यह अच्छा है कि तुम उनको ग़रीब छोड़ दो और वे लोगों के सामने अपना हाथ फैलाएं lनिसंदेह तुम जो भी खर्च करोगे तो वह दान ही होगा यहां तक कि तुम खाने का जो कौर अपनी पत्नी के मुंह तक उठाते हो (वह भी दान है )lहो सकता है कि अल्लाह तुमको उठा लेगा और कुछ लोगों को तुम से लाभ हो जाए और कुछ लोगों की क्षति हो जाए l" उस समय हज़रत सअद को केवल एक ही बेटी थी lइस हदीस को हज़रत सअद ने कथित किया और यह हदीस सही है , बुखारी ने इसे उल्लेख किया है lदेखिए हदीस नमबर:२४४७l
जी हाँ वह खाने का लुक़मा जो अपनी पत्नी के मुंह तक अपने हाथ से पहुंचाते हैं वह भी एक दान है, केवल पत्नी का दिल जीतना और पत्नी की सहायता ही नहीं हैं बल्कि एक दान है जिस पर पति अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से पुरस्कार से पुरस्कृत किया जता है l
इस से पता चला कि पत्नी से लाड और प्यार का एक तरीक़ा उसे खाना खिलाना भी है lजी हाँ इस का पत्नी के दिल पर ज़बरदस्त भावनात्मक प्रभाव पड़ता हैlतो मेरे भाई! हे मनुष्य! ज़रा सोचिए इस काम मैं आपका क्या ख़र्च होता है? इस में कुछ ख़र्च नहीं होता है बल्कि इस से तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के उदाहरण पर भी अमल हो जाता है और इस पर अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से अच्छा पुरस्कार भी प्राप्त हो जाता है और पत्नी की सहायता भी हो जाती है और उसके दिल के भी आप मालिक हो जाते हैं lलाड प्यार हंसी मज़ाक़ करने का धर्मशास्त्र ने आपको आदेश दिया है क्योंकि इस से दिल मिलते हैं और प्यार का वातवरण बनता है l
हम अक्सर प्रिय पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की जीवनी के बारे में पढ़ा करते हैं धर्म शिक्षा, राजनैतिक, सैन्य या आर्थिक क्षेत्र में बहुत कुछ हमें पढ़ने को मिलता है lलेकिन हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की जीवनी के बारे में और वह अपने घर में कैसे रहते थे? और अपनी पत्नियों के साथ उनके संबंध की प्रकृति क्या थी? इन विषयों पर कम ही लिखा जाता है और कम ही प्रकाशित किया जाता है lजबकि सच तो यही है कि प्यारे मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की जीवन के परिवारिक संबंधों के क्षेत्र में शोध करने वाला व्यक्ति बहुत सारी ऐसी अनमोल बातें पा लेता है जिनकी हमको हमारी समकालीन वास्तविकता में सख्त ज़रूरत हैlयदि हमको उनका ज्ञान होता तो उनका हमारे घरों की स्थिरता के लिए और हमारे वैवाहिक संबंधों को मज़बूत बनाने में बड़ा योगदान होता lहम इस लेख में कुछ उदाहरण देंगे और बताएँगे कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अपनी पवित्रपत्नियों की भावनाओं का कैसा सम्मान करते थे ? और उनको कितना चाहते थे ?
भावनाओं को व्यक्त करने में मर्दों की प्रकृति महिलाओं की प्रकृति से जुदा और अलग होती है , क्योंकि अगर एक औरत अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहती है तो वे बात करती हैं और कहती हैं कि मैं आप से प्यार करती हूँ या मैं आपको बहुत चाहती हूँ, मुझे आपकी ज़रूरत है, मैं आपको बहुत मिस याद करती हूँ lऔर पत्नी अपने पति को अक्सर ऐसे शब्द कहा करती हैं lलेकिन मर्द की प्रकृति यह है कि अगर वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहता है तो अपने कामऔरउत्पादन के द्वारा व्यक्त करता है lबात कम ही किया करता है lमर्द जब अपनी पत्नी को बताना चाहता है कि वह उससे प्यार करता है, तो वह उन्हें कुछ खरीद देता है या खाने पीने की चीज़ें घर पर मंगवा देता है या कुछ फर्नीचर दिला देता है lऔर पुरुष इन जैसे कामों के द्वारा प्यार व्यक्त करता है l
निश्चित रूप से आदमी में यह एक नकारात्मक स्वभाव हैlइसी कारण हमारे सम्मानित पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने इस स्वभाव को त्याग दिया lऔर वह हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- के लिए अपने प्यार और मोहब्बत को जताते थे lइस का मतलब यही है कि वह अपना लाड और प्यार सामने रखते थे और उनको वह सब कुछ सुनाते थे जो एक पत्नी अपने पति और प्रेमी से सुनना चाहती हैंlवास्तव में यह पति और पत्नी के बीच बर्ताव का एक ऊँचा मक़ाम है lइब्ने असाकिर ने हज़रत आइशा- अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- से कथित किया , हज़रत आइशा- अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- ने कहा कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने उनसे कहा:" क्या तुम इस बात से संतुष्ट नहीं हो कि तुम दुनिया और आखिरत दोनों में मेरी पत्नी रहोlहज़रत आइशा- अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- कहती हैं:"मैंने कहा: क्यों नहीं तो उन्होंने कहा:तो फिर तुम दुनिया और आखिरत में मेरी पत्नी हो l"
यह हदीस हज़रत आइशा से कथित है और सही है , इसे अल्बानी ने सही कहा lदेखिए "अल सिलसिला अल सहीहा" पेज या संख्या नम्बर: 2255l
अब आप ही बताइए कि हज़रत आइशा- अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- की भावना कैसी रही होगी? और इन शब्दों को सुनकर उनकी मनोवैज्ञानिक स्तिथि कैसी ज़बरदस्त हुई होगी? विशेष रूप से जब वह उनको अपने शब्दों के द्वारा सुरक्षा, प्यार और दुनिया व आखिरत में साथ राहने का वचन दे रहे थे l
यह देखिए अल-आस इब्न रबीअ को जो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की बेटी हज़रत ज़ैनब के पति थे वह इस्लाम से बचने के लिए मक्का से बाहर चले गए थे, हज़रत ज़ैनब ने मक्का लौटने के लिए बोली और इस्लाम में प्रवेश करने का बुलावा उनके पास भेजीlतो उनके जवाब में वह एक पत्र भीजे थेlपत्र कुछ इस तरह था: "ईश्वर की क़सम! आपके पिताजी मेरे नज़र में संदेहात्मकनहीं हैंlहे हबीबा! मुझे तो यह बात बहुत अधिक पसंद है कि मैं भी उसी वादी में रहूँ जिस में तुम हो, लेकिन मुझे इस बात से नफरत है कि यह कहा जाए देखो तेरे पति ने तो अपने लोगों को धोखा दिया? तो क्या तुम मेरी मजबूरी को समझ रही हो और तथ्य को जान रही हो l" इस पत्र से स्पष्ट है कि अल आस हज़रत ज़ैनब को बहुत चाहते थे, इसका सबूत यह है कि वह उनके साथ एक ही रास्ता और एक ही वादी में रहना चाहते थे , चाहे वह रास्ता कोई भी हो लेकिन उनको यह बात अच्छी नहीं लग रही थी कि हज़रत ज़ैनब को उनके पति को लेकर ताना मारा जाए और उनको दुख हो lफिर उन्होंने अंत में मजबूरी समझने और स्वीकार करने की विनती कीlइसी प्यार के कारण हज़रत ज़ैनब उनके पास गई और उन्हें मुसलमान बना कर वापिस लेकर आईं l
कुछ लेखकों ने पश्चिम में महिलाओं के सम्मान का सबूत देते हुए कहा है कि वहां तो पति अपनी पत्नी के लिए कार का दरवाज़ा खोलता हैlहालांकि यह तो ज़ाहिर में एक सम्मान है lलेकिन वहां बहुत सारे ऐसे पहलू पाए जाते हैं जिनसे एक पक्का आदमी को पता चल जाता है कि वे वास्तव में महिलाओं का अपमान करते हैं उन्हें बिल्कुल सम्मान नहीं देते हैंlहम मुसलमानों के यहां तो पुरुषों और महिलाओं के बीच टकराव का मुद्दा है ही नहीं, बल्कि हमारे पास तो हर एक दूसरे का पूरक है, और हम तो यही कहते हैं कि सम्मान दोनों तरफ से और दोनों केलिए आवश्यक है lइसके उदाहरण में हम प्यारे मुहम्मद-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को पेश करते हैं lजब उनकी पत्नी श्रीमती सफिय्या उनके पास मिलने आई थीं जब वह रमज़ान के पिछले दस दिनों में
(मस्जिद में ) एतेकाफ़ में थे, कुछ देर तक वह उनके साथ बातचीत की और उसके बाद जाने के लिए उठीं तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-भी उनको वापिस छोड़ने के लिए उठे और दरवाज़े तक गए lएक दूसरे कथन में है कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने उन्हें कहा:" जल्दी मत करो मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँlउनका घर ओसामा के घर के पास था तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- उनको घर तक छोड़ने के लिए बाहर निकले तो उन्हें अनसार के दो आदमी मिले , वे दोनों हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को देख कर जल्दी से वहां से गुज़रने लगे इस पर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- उन दोनों को बोले: तुम दोनों आओ , यह तो सफिय्या बिनते हुयेय हैं lअनसार के दोनों व्यक्तियों ने कहा:"सुब्हानल्लाह (पवित्रता है अल्लाह को) ऐ अल्लाह के दूत!" तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा:" निस्संदेह शैतान तो मनुष्य के खून के रग में दौड़ता है lऔर मुझे डर लगा कि कहीं वह (शैतान) तुम्हारे दिलों में कुछ डाल न दे lयह हदीस हज़रत सफिय्या बिनते हयेय से कथित है और सही है , बुखारी ने इसे उल्लेख किया है lदेखिए पेज या संख्या नमबर: 2038l
इस लिए हमें आशा है कि पतियों और पत्नियों के बीच सम्मान का वातावरण बना रहे , क्योंकि सम्मान ही वैवाहिक प्रेम और परिवारिक स्थिरता की कुंजी है l
विवाहित जीवन क्या ही सुंदर है अगर दोनों इस मानसिकता के साथ बर्ताव करें! और कितनी ही आवश्यकता की बात है कि हम इस्लामी इतिहास और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के जीवन के पन्नों को खोलें ताकि हमें वैवाहिक प्यार के कला के बारे में सबसे सुंदर सिद्धांत हमें मिल सकें l