1. सामग्री
  2. पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की आज्ञाएं व वसीयतें
  3. जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान और विश्वास रखता है, वह अपने पड़ोसी को कष्ट न पहुंचाए

जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान और विश्वास रखता है, वह अपने पड़ोसी को कष्ट न पहुंचाए

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ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द (अल्लाह उनसे राज़ी हो) से रिवायत है वह कहते हैं :  अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फरमाया :

"ऐ नव-युवकों (नौजवानो) के समू! तुम में से जो कोई विवाह करने की शक्ति रखता हो उसे विवाह कर लेना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा आँखें नीची रहती हैं और गुप्तांग की सुरक्षा होती है। और जो कोई विवाह  की ताक़त न रखता हो उसे चाहिए कि वह रोज़े रखे क्यों कि यह उसके लिए ढाल है।" (क्योंकि यह सहवास को दबाता है)

अल्लाह के पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) युवाओं पर विशेष ध्यान देते थे क्योंकि वे ही तो सक्रिय ताकत, संचालक शक्ति और युद्ध और शांति का साधन हैं। और वे ही तो वर्तमान और भविष्य के पुरुष हैं।

और सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य और बहुत सी धार्मिक और सांसारिक जिम्मेदारियाँ उन ही पर आधारित हैं।

अतः अल्लाह के रसूल ( सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) बहुत सी जगहों पर उनसे मिलते और कोमलता और प्यार से उनसे ऐसे बात करते जैसे कोई अपने प्रिय व्यक्ति से बात करता है, और आपकी बात उन पर उससे भी ज्यादा प्रभावित और असर करती जितनी एक बाप की उसके बेटे पर प्रभावित करती है, क्योंकि नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) उन पर और सामान्य रूप से हर मुसलमान पर उससे अधिक दयालु और महरबान हैं जितना कि वे मुसलमान स्वयं अपने आप पर दयालु हैं।

अल्लाह तआ़ला ने क़ुरआन में फरमाया है:

النَّبِيُّ أَوْلَىٰ بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنفُسِهِمْ

(सूरह अल अह़ज़ाब: 6)

(यह नबी मुसलमानों का उनकी जान से ज़्यादा मालकि है। (दुसरा अर्थ) यह नबी ईमान वालों पर स्वयं उनसे अधिक दयालु और महरबान है।)

 

 

 

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