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हज़रत ख़दीजह –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-
हज़रत ख़दीजह –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-
उनकी वंशावली और उनका पालनपोषण:
ख़दीजह बिन्ति खुवैलद इब्न असद इब्न अब्दुलउज्ज़ा कुसै इब्न किलाब, असद के कबीले से एक कुरैशी महिला थीं , उनका जन्म हिजरत (स्थलांतर)से ६८ साल पूर्व हुआ था यानी, ५५६ ईस्वी में l वह एक महान और सम्मानित परिवार में पलीं बढ़ीं थीं lवह अच्छे गुणों से सजधजकर बड़ी हुई थीं lवह दृढ़ संकल्प के साथ साथ पवित्रता और समझदारी के लिए प्रसिद्ध थींlवहइस्लाम धर्म से पूर्व जाहिलीयत के दौरान भी, वह शुद्ध और पवित्र जैसे गुणों से याद कीं जाती थी l
हज़रत ख़दीजहएक धनी व्यापारी के रूप में शुहरत रखती थीं, वह लोगों को मज़दूरी पर रखती थीं और अपने व्यापार के काम में लगातीं थीं l जब पैगंबर हज़रत मुहम्मद की ईमानदारी और महान चरित्र के बारे में सुनीं तो वह उनके पास कहला भेजी और उनके मैसरह नामक नौकर के साथ मुलके शाम को व्यापार के लिए यात्रा की पेशकश की तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और जल्द ही हज़रत ख़दीजह के व्यापार में दोगुना मुनाफा हुआlऔर उनके नौकर मैसरह ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के अनुकरणीय चरित्र के बारे में उनको बताया तो वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के महान चरित्र से बहुत प्रभावित हुई और उनके साथ शादी के प्रस्ताव के लिए किसी को लगा दी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उसपर सहमत होगाए lइस के बाद हज़रत ख़दीजह ने अपने चाचा अम्र बिन असअद बिन अब्दुल उज्ज़ा को बुलाया और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथ विवाह किया lउस समय हज़रत ख़दीजह चालीस वर्ष की थीं , जबकि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-पच्चीस वर्ष के थे l
हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनसे खुश रहे - हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की सबसे पहली और सबसे प्रिय पत्नी थीlवह उनको इतनी प्रिय थीं कि उन्होंने उनके जीवन में दूसरी शादी नहीं कीlवह उनके दो बेटों और चार बेटियों की मां थीं: क़ासिम(और उन्हीं के नाम पर उनको अबूल क़ासिम यानी क़ासिम के पिता कहा जाता था l) ,अब्दुल्लाह रुक़य्या, ज़ैनब, उम्म कुलसूम और फातिमा l
उनका इस्लाम धर्म स्वीकार करना: जब अल्लाह सर्वशक्तिमान ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की ओर इस्लाम धर्म का संदेश भेजा तो हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनसे खुश रहे - सब से पहली व्यक्ति थीं जो अल्लाह और उनके दूत पर विश्वास कींl
सभी पुरुषों और महिलाओं में हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे - इस्लाम धर्म को गले लगाने में सब से पहली थीं l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-और हज़रत ख़दीजह-अल्लाह उनसे खुश रहे - इस्लाम के लिए सार्वजनिक प्रचार की शरूआत में छिप छिप कर नमाज़ पढते थे l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को अपनी जाति की ओर से बहुत दुख का सामना करना पड़ा था, तो हज़रत ख़दीजह-अल्लाह उनसे खुश रहे - उनके दुख को हल्का करती थी और कुरैश के अविश्वासियों की ओर से उनपर होने वाले अत्याचारों में उनकी मदद करती थी l
जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास ईशवाणी आई और उनको कहाः "पढ़ो अपने पालनहार के नाम से जिसने पैदाकिया, मनुष्य को खून के लोथड़े से पैदा किया। पढ़ो और तुम्हारा पालनहार बहुत दानशील है।" (सूरह अल अलक़ः ३)
इन आयतों के साथ हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-पलटे,और आप का दिल धड़करहा था। हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे –के पास आए औरकहा: "मुझे चादर उढ़ा दो,मुझे चादर उढ़ा दो।"उन्हों ने उनको चादर उढ़ा दियायहाँ तक कि उनका भय समाप्त हो गया।
फिर हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनसे खुश रहे- को पूरी बात बतलाया और कहाः "ऐ ख़दीजह !मुझे क्या हुआ है, मुझे तो बहुत डर लगा।"
हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे –ने कहाः हरगिज़ नहीं,आपको खुशखबरी है, अल्लाह की क़सम ! अल्लाह सर्वशक्तिमान आप को कभी रुसवा नहीं करेगा। आप तो रिश्ते जोड़ने का काम करतेहैं, और सच्ची बात करते हैं, कमज़ोरों का बोझ उठाते हैं, मेहमान कीमेज़बानी करते हैं, और हक़(के रास्ते) की मुसीबतों पर सहायता करते हैं।
इसके बाद हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे –हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को अपने चचेरे भाई वरक़ा बिन नौफिल बिन असद बिनअब्दुल-उज़्ज़ा के पास ले गईं। वह जाहिलियत के काल में ईसाई हो गए थे और इब्रानी भाषा में लिखना जानते थे। और वह जितना अल्लाह सर्वशक्तिमान चाहता था इब्रानी भाषा में इन्जील लिखते थे। उस समय बहुत बूढ़े और अंधे हो चुके थे। उनसे हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे –ने कहाः भाई! ज़रा आप अपने भतीजे की बात सुनें।
वरक़ा ने कहाः भतीजे ! आप क्या देखते हो? तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने जो कुछ देखा था बयान कर दिया।
इस पर वरक़ा ने कहाः यह तो वही फरिश्ता है जिसे अल्लाह सर्वशक्तिमान ने हज़रत मूसा –सलाम हो उनपर-परउतारा था। काश मैं उस समय शक्तिवान होता ! काश मैं उस समय जीवित होता ! जब आप कीजाति आप को निकाल देगी।
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:"क्या यह लोग मुझे निकाल देंगे?"
वरक़ा ने कहाः हाँ, जब भी कोई आदमी इस तरह का संदेश लाया जैसा आप लाए हो तो उस से अवश्य दुश्मनी की गई, और यदि मैं ने आपका समयपा लिया तो मैं आपकी भरपूर सहायता करूंगा।
इसके थोड़े दिनों बाद वरक़ा की मृत्यु हो गई, इसके बाद ईशवाणी का सिलसिला कुछ समय के लिए रुका रहा। तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को इस पर बड़ा दुख हुआ और दुख के मारे वह पहाड़ के शिखरों पर चढ़ते थे और ऐसा लगता था कि वहाँ से अपने आपको नीचे फेंक देंगे लेकिन जब जब भी किसी पहाड़ के चोटी पर चढ़ते थे तो ताकि आपने आपको वहाँ से नीचे फेंकें तो अल्लाह का फरिश्ता जिबरील उनके सामने दिखाई पड़ते थे और यह कह कर संबोधित करते थे:ऐ मुहम्मद! आप तो निस्संदेहअल्लाह के दूत हैं lइस से उनके दिल को राहत मिलती थी और शांत हो कर वापिस आ जाते थे lजब फिर ज़ियादा समय के लिए ईशवाणी रुक जाती थी तो फिर उसी तरह करते थे लेकिन जैसे ही किस पहाड़ के शिखर पर चढ़ते थे तो उनको हज़रत जिबरील दिख जाते थे और फिर वही शब्द कहते थे lइस हदीस को हज़रत आइशा ने कथित किया और यह हदीस सही है lदेखिए बुखारी शरीफ, हदीस नमबर या पेज नमबर:६९८२l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की नज़र में उनकी स्तिथि:
श्रीमती ख़दीजह एक बुद्धिमान, सम्मानित, अपने धर्म का पालन करने वाली,पवित्र और बहुत अच्छी औरतथी, स्वर्ग की खुशखबरी पा चुकी थी, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने अपने दूत को यह आदेश दिया था कि उनको स्वर्ग में सोने से बने एक ऐसे घर की खुशखबरी दे दें जहाँ न कोई शोरगुल है और न कोई थकान है ।
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे –को अपनी सभी पत्नियों पर बढ़ावा देते थे और उनको बहुत याद करते थे, हज़रत आइशा- अल्लाह उनसे खुश रहे- कहती हैं कि मुझे–हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पत्नियों में से किसी पर भी उतना अधिक जलन नहीं हुआ जितना हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनसे खुश रहे -पर था, जबकि मैं उनको देखी भी नहीं थी लेकिन –हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनको बहुत याद करते थे, और जब बकरी ज़बह करते थे तो उसका एक बड़ा टुकड़ा काट कर हज़रत ख़दीजह की सहेलियों के पास भेजा करते थे, इस पर मैं उनको कहा करती थी: ऐसा लगताहै कि दुनिया में ख़दीजह को छोड़ कर और कोई महिला ही नहीं है, तो फिर वह कहते थे:वह ऐसी थी, वह ऐसी थी , उनसे मुझे बच्चे हुए । इस हदीस को हज़रत आइशा ने कथित किया और यह हदीस ठीक है lइसे हैसमी ने उल्लेख किया है देखिए मजमअ अज़-ज़वाइद, पेज नमबर:९/२२७।
निधन:
हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे –तो अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का दाहिना हाथ थे और उन्होंने इस्लाम धर्म के प्रचार के शुरू में उनका बहुत साथ दिया था, हज़रत पैगंबर के मक्का से मदीना को स्थलांतर करने से तीन साल पहले उनका निधन हुआ, उस समय वह पैंसठ साल की थीं ।अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने खुद अपने हाथों से उनको क़ब्र में उतारा हज़रत ख़दीजह -अल्लाह उनके साथ खुश रहे –की मौत अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के लिए बहुत बड़ी मुसीबत थी, लेकिन वह धैर्य से काम लिए और अल्लाह सर्वशक्तिमान की इच्छा और उसके फैसले से बिल्कुल राज़ी थे ।