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मैं दिल का हाल या किसी के अंत को नहीं जानता हूँ।
तर्जुमा: ह़ज़रत अ़ब्दुर्रह़मान बिन अबु बकरह अपने पिता अबु बकरह रद़ियल्लाहु अ़न्हु से उल्लेख करते हैं कि एक व्यक्ति ने नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के सामने किसी की तारीफ की, तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने कई बार यह इरशाद फ़रमाया: " अफसोस! तूने अपने साथी की गर्दन काट दी। तूने अपने साथी की गर्दन काट दी।" फिर आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: तुम में से जब किसी को अपने भाई की तारीफ करना ही हो तो यूँ कहे: "मैं फुलाने व्यक्ति को ऐसा समझता हूँ और अल्लाह खूब जानता है। और मैं दिल का हाल या किसी के अंत को नहीं जानता हूँ। मैं समझता हूँ कि वह ऐसा ऐसा है अगर उसका हाल जानता हो तो।"
यह ह़दीस़ शरीफ हमें सिखाती है कि हम किसी के अंत या उसके दिल की बात को नहीं बता सकते हैं। क्योंकि यह सभी मामले अनदेखी का हिस्सा हैं।
अच्छे और महान अखलाक़ का तकाज़ा है कि इंसान अपने भाई के अधिकार को जाने और जिसके वह लायक हो उसकी हो उसकी उस जैसी तारीफ करे। तारीफ करना एक तरह का शुक्र करना है। बेशक तारीफ का दिलों पर बड़ा असर पड़ता है। इससे भावनाएं उभरती हैं जैसे कि इससे अधिक भालाइयों करने की इच्छा पैदा होती है। लेकिन तारीफ के असर के एतबार से लोग कई तरह के होते हैं।
कुछ तो तारीफ की वजह से घमंडी हो जाते हैं।
और कुछ तारीफ की वजह से महान लक्ष्यों यानी मक़सदों को प्राप्त करने में सुस्ती करने लगते हैं और जिस हालत पर वे होते हैं बस उसी को काफी समझते हैं और अपने दिल में कहते हैं हम जिस हाल में है वही काफी है। क्योंकि हम उस मर्तबे को पहुंच गए हैं कि लोग हमारी तारीफ करने लगे हैं और हम यही तो चाहते थे।
और कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जब उनकी तारीफ की जाए तो शर्मा जाते हैं और बहुत हर्ज महसूस करते हैं
और कुछ ऐसे होते हैं कि जब उनकी तारीफ की जाए तो उनके ईमान में ज़्यादती हो जाती है और अधिक नेक काम करने की कोशिश करते हैं कि वह ऐसे ही हो जाएं जैसा कि लोग उनके बारे में सोचते हैं।
तारीफ करना जैसा कि हमने पहले बयान किया एक तरह से शुक्र अदा करना है जैसे कि यह अच्छाई और खूबी का ऐतराफ करना है। जब किसी में कोई अच्छाई हो तो उसे मानना चाहिए और उस पर उसकी तारीफ करना चाहिए। हाँ उसमें किसी तरह की ज़्यादती से काम नहीं लेना चाहिए।
कभी-कभार कुछ लोग कुछ पाने के लिए झूठी तारीफ की जाती है जो कि किसी भी तरह से सही़ह़ नहीं है न धार्मिक तौर से और न ही समाजिक तौर से।
नबी करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने बहुत से सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम की तारीफ की और बहुत सों के इस्लाम अच्छा होने और अल्लाह के प्रति उनके सच्चे होने की वजह उन्हें जन्नत की खुशखबरी भी दी।
एक सच्चा मोमिन अपनी हर बात में सच्चा होता है। उसकी दलील मज़बूत और साफ़ होती है। जैसा वह सामने से होता है वैसा ही वह अंदर से होता है। वह गिरगिट की तरह रंग नहीं बदलता है। यानी वह दो-रुख़ा नहीं होता है।