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अपनी खेती में जैसे मर्जी करे आओ।
तर्जुमा: बहज़ बिन ह़कीम अपने पिता से, वह उनके दादा से उल्लेख करते हैं कि वह कहते हैं कि मैंने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से पूछा: "ए अल्लाह के रसूल! हम अपनी पत्नियों के पास किस तरफ आएं और कौन सी तरफ छोड़ें?" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने जवाब दिया: "अपनी खेती में जैसे मर्जी करे आओ। और जब तुम खाओ तो उसे भी खिलाओ और जब तुम पहनो तो उसे भी पहनाओ। उसके चेहरे को बुरा मत कहो और ना मारो।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने पत्नी को खेती कहा। क्योंकि वह क्योंकि वे खेती के लिए तैयार जमीन की तरह है जिसमें उसका पति बीज डालता है। उसे खेती कहने से इस बात का पता चलता है कि अगर संभोग (पत्नी के साथ सेक्स) आगे के स्थान में हो तो किसी भी समय और किसी भी तरीके से कर सकता है। और यह भी पता चलता है कि संभोग सिर्फ आगे ही के स्थान में करना चाहिए। पीछे के स्थान में संभोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि पीछे का स्थान बीज बोने की जगह नहीं है। क्योंकि सिर्फ आगे ही का स्थान यानी बच्चा पैदा होने की जगह ही बीज बोने की कुदरती जगह है।
इस वसियत में नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि अलेही के कहने "और जब तुम खाओ तो उसे भी खिलाओ और जब तुम पहनो तो उसे भी पहनाओ।" से इस बात की तरफ इशारा है की पत्नी से आनंद लेने, पत्नी के उसकी सेवा करने, उसकी औलाद की माँ होने, उसके घर का ख्याल रखने और रात और दिन में उसके लिए तसल्ली का सामान होने के बदले में पति को उस पत्नी का खर्च जरूरी है। और यह खर्च उस जैसा होगा जैसा वह अपने ऊपर खर्च करता है। तो जब वह खाना खाए तो उसे भी खाने में अपने साथ शरीक करे। और उसमें बिना पत्नी की मर्जी के अपने आप को उस पर बरतरी ना दे। और जब अल्लाह उसे अपने लिए कपड़े बनाने की तौफीक दे तो अपनी पत्नी के लिए भी उसके मुनासिब कपड़े बनाए।
यही इंसाफ और न्याय है जिसका प्यार और मोहब्बत पर आधारित विवाहित जीवन तकाजा करता है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमाने "उसके चेहरे को बुरा मत कहो और ना मारो।" का मतलब है कि "अल्लाह तुम्हें बदसूरत बना दे।" जैसे शब्द ना कहो और ना ही उसके चेहरे पर मारो। और न ही उसे हिकारत के निगाह से देखो। क्योंकि अल्लाह ने ह़ज़रत ए आदम अ़लैहिस्सलाम को उसी चेहरे की सूरत में पैदा किया है अगरचे महिला और पुरुष के चेहरे में थोड़ा फर्क रहता है।
ए मेरे प्यारे मुसलमान भाई! अच्छी तरह जान लो कि विवाहित जिंदगी दस निम्नलिखित सिद्धांतों व नियमों पर आधारित है:
न्याय, सखावत (उदारता), माफी, भलाई, परहेज़गारी (धर्मनिष्ठता), सहयोग, सच्चाई, भरोसा, ईमानदारी, और एक दूसरे को समझना।