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बेशक यह धर्म बहुत मज़बूत है।
तर्जुमा: ह़ज़रत अनस कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "बेशक यह धर्म बहुत मज़बूत है लिहाज़ा इसमें नरमी से दाखिल हो। क्योंकि जो यात्री अपनी सवारी को आराम नहीं करने देता है तो ना ही वह अपनी मंज़िल तक पहुंचता है और ना ही उसकी सवारी (ऊंट) आगे चलने के क़ाबिल रहती है। (और फिर वह बीच रास्ते में ही हंसकर रह जाता है।)
कुछ सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम इबादत में अपने आप को बहुत ज़्यादा थकाते थे। ना ही अपने जिस्मों को आराम देते और ना ही अपनी पत्नियों को उनका हक देते। वे दिन में रोजे़ रखते और रात भर इबादत करते यहाँ तक कि हलाल और जायज़ चीज़ों को भी लेने से बचते और केवल कुछ टुकड़ों और बदन छुपाने पुराने- धुराने कपड़ों को अपने लिए काफी समझते। तो जब नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ऐसे लोगों को देखते तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उन्हें खुद उनके और उनकी पत्नियों के ऊपर नरमी करने का हुक्म देते और इबादत में संतुलन (मध्यमवर्ग व बिच का रास्ता) बरतने पर ज़ोर देते कि कहीं ऐसा ना हो कि बाद में वे लोग उससे उकता जाएं और पूरी तरह से इबादत ही छोड़ दें और फिर अल्लाह की नाफरमानी और नाराज़गी में पड़ जाएं।
अत: याद रहे कि इस्लाम संतुलन व मध्यमवर्ग का धर्म है। यानी ना तो इसमें बहुत ज़्यादा ज़्यादती (अधिकता) है और ना ही कमी (लापरवाही)। यह एक साफ-सुथरा बेहतर और मज़बूत धर्म है। और यह उसी चीज़ के करने को कहता है जो बेहतर है। और यह अपनी आसानी, सरलता और सहनशीलता से हर प्रकार की सख्ती और दुश्वारी पर हावी है।
इस ह़दीस़ शरीफ में चार प्रकार के लोगों के लिए बेहतरीन सबक है।
(1) वे यहूदी जिन्होंने खुद अपने आप पर सख्ती की और बहुत सी जायज़ चीज़ों को अपने ऊपर ह़राम और नाजायज़ कर बैठे।
(2) वे ईसाई कि जो संन्यासी व त्यागी बन गए और शादी और इसके अलावा दूसरी जायज़ चीज़ों को अपने ऊपर ह़राम करके अपने ऊपर सख्ती की।
(3) नवप्रवर्तक (बिदअ़ती यानी धर्म में नई चीज़ें पैदा करने वाले लोग) जो इस्लाम धर्म में सख्ती और कठोरता से काम लेते हैं यहाँ इन्होंनें नर्मी, आसानी, संतुलन व मध्यमवर्ग के साथ कमा लेना, दुश्वारी और कठोरता को दूर करना जैसी इस्लाम धर्म के विशेषताओं को खत्म करने में लगे हुए हैं।
(4) जो लोग तपस्वी, पवित्र और नेक होने का दावा करते हैं।
अगर ये लोग न्याय व इंसाफ से काम लेते तो कभी अपने ऊपर सख्ती ना करते और अपने आप को ह़लाल और जायज़ चीज़ों से दूर करने में ज़्यादती यानी अधिकता और सख्ती से काम ना लेते। लेकिन अफसोस यह लोग इस्लाम धर्म की आसानी और सहनशीलता, और सहजता जैसी महत्वपूर्ण और बुलंद विशेषताओं से वाकिफ नहीं हैं। इसी लिए ये ऐसा करते हैं।