1. सामग्री
  2. हज़रत पैगंबर की पवित्र पत्नियां
  3. हज़रत जुवैरिया बिन्तिल हारिस-अल्लाह उनसे 

हज़रत जुवैरिया बिन्तिल हारिस-अल्लाह उनसे 

Article translated to : العربية English

 

हज़रत जुवैरिया बिन्तिल हारिस-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-

 

अच्छे लोगों की जीवनी ऐसी सुगन्धित होती है कि सारे लोग उस तरह की जीवनी अपने लिए चाहते हैं, और सब से सच्ची, सब से सुंदर और सब से तरोताज़ा जीवनी तो विश्वासियों की माताओं यानी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियों की जीवनी थी, हम उनकी जीवनी को पढेंगे और उससे सबक लेंगेl

अब यहाँ हम विश्वासियों की माँ हज़रत जुवैरिया की जीवनी से कुछ खुशबूदार फूल चुनते हैं, जिनको अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पवित्रता से सम्मानित किया थाl

वाह रे वाह उनकी पवित्र जीवनी कितनी ही अच्छी थी-अल्लाह उनसे खुश रहे और मैं तो उनसे खुश हूँ- l

मोमिनों की माँ हज़रत जुवैरियह का पालनपोषण
उनका पूरा नाम इस तरह है: बर्रह बिनते हारिस बिन अबू-ज़िरार बिन हबीब बिन आइज़ बिन मालिक l

वह खुज़ाअह जाति से थीं, उनके पिता बानी मुस्तलिक़ जाति के सरदार और नेता थे, हज़रत बर्रह अपने पिता के घर में आराम चैन और एक सम्मानजनक जीवन जीती थीं, उनका घर बहुत खानदानी और पुराने समय से सम्मान और परंपरावाला खानदान रहा l

हज़रत बर्रह की कमउम्री में ही खुज़ाअह के एक नौजवान मुसाफेअ बिन सफ्वान नामक आदमी से हो गई थी, उस समय उनकी उम्र २० साल से अधिक नहीं हुई थीl
 
प्रकाश की शुरूआत
बनी मुस्तलिक़ जाति के लोगों के दिलों में शैतान ने यह ख़याल डालना शुरू किया कि वे मुसलमानों को हरा सकते हैं, इस विचार को शैतान ने सुंदर बना कर उनके दिल में उतार दिया, इसलिए वे हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-और उनके माननेवालों के खिलाफ जंग करने की तैयारी में लग गए, और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से लड़ने के लिए मैदान में कूद पड़े, उनके फौजियों का सरदार हारिस बिन अबू-ज़िरार था, इस जंग में हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की जीत हुई, और बनू-मुस्तलिक़ अपने घर में ही जंग हार गए, इस में कई पुरुषों और महिलाओं को पकड़ कर क़ैदी बना लिया गया, और हज़रत जुवैरियह के पति मुसाफेअ बिन सफ्वान मुस्लमानों की तलवारों से मारे गए थे, और हज़रत जुवैरियह उन महिलाओं में शामिल थीं जो कैद में आ गई थीं , और साबित बिन कैस बिन शम्मास अल-अन्सारी-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- के हिस्से में हो गईं, उस समय उन्होंने कुछ पैसे देने पर उनको सहमत कर लिया और आज़ाद हो गईं, क्योंकि वह आज़ादी की ही इच्छा अपने दिल में रखती थींl
हज़रत जुवैरियह की हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथ शादी

हज़रत जुवैरियह तो साबित बिन कैस बिन शम्मास या उनके एक चचेरे भाई के हिस्से में आईं थीं,लेकिन कुछ पैसे देकर अपने आपको आज़ाद कर लीं lवह एक सुंदर महिला थीं जो आँखों को आकर्षित करती थींlहज़रत आइशा कहती हैं:वह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास आईं और अपनी आज़ादी के पैसे मांगी जब वह दरवाजे पर खड़ी हुईं तो मुझे उनका आना अच्छा नहीं लगा और मुझे लगा कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को भी कुछ ऐसा ही दिखेगा जैसा मुझको दिखा, फिर वह बोलीं: ऐ अल्लाह के दूत! मैं जुवैरियह बिनते हारिस हूँ, और मेरे साथ जो घटनाएं घटीं वह आप पर छिपी नहीं हैं, मैं साबित बिन कैस बिन शम्मास के हिस्से में आई लेकिन मैं अपने आप को आज़ाद करने के लिए उनके साथ कुछ पैसे देकर आज़ादी लेने पर समझौता कर ली और आपके पास पैसे मांगने के लिए आई हूँ तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा: क्या तुम इससे बेहतर बात को स्वीकार करोगी? तो वह पूछीं वो क्या है ऐ अल्लाह के रसूल? इसपर उन्होंने कहा: मैं तुम्हारे पैसे दे दूँगा और मैं तुमसे शादी कर लूँगा, तो वह बोलीं : ठीक हैlहज़रत आइशा आगे कहती है: तो लोगों को कानों कान खबर मिल गई कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने हज़रत जुवैरियह से शादी कर ली हैं, तो जिनके हाथों में भी कोई क़ैदी था उनको तुरंत आज़ाद करके छोड़ दिए और कहने लगे कि वे तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के ससुराल के लोग हो गए, हज़रत आइशा कहती हैं:तो मैं उनसे अधिक शुभ किसी महिला को नहीं देखी जिनके माध्यम से उनकी जाति को इतना बड़ा लाभ हुआl और उनके कारण बनी-मुस्तलक़ जाति के १०० आदमी आज़ाद हुएlयह हदीस हज़रत आइशा से कथित हुई, और यह हदीस ठीक है, इसे इब्ने-क़त्तानने उल्लेख किया, देखिए “अहकाम अन-नज़र”पेज नंबर १५३l 
जी हाँ अभी थोड़ी देर पहले तक तो वह सिर्फ आज़ादी के खुशबू की साँस लेना चाहती थी लेकिन उनको उससे भी कहीं बाड़ी चीज़ मिल गई, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की बात सुन कर वह बहुत खुश हो गईं और उनका चेहरा खुशी से दमक उठा, क्योंकि अब तो उन्हें आराम और चैन मिलने ही वाला है जबकि उनको पहले बहुत अपमान और ज़िल्लत का मज़ा चखना पड़ा था, इसलिए वह बिना झिझके और बिना आगे-पीछे हुए उनके प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लीं और बोलीं : हाँ ऐ अल्लाह के रसूल! तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने ४०० दिरहम के महर पर उनसे शादी कर लीl 
अबू-उमर कुरतुबी “इस्तीआब”में कहते हैं: उनका नाम तो बर्रह था लेकिन हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उसे बदल कर उनका नाम जुवैरियह कर दिया, इस तरह हज़रत जुवैरियह मोमिनों की मां और अगले पिछले सारे लोगों के सरदार हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नियों में शामिल हो गईं l  

हज़रत जुवैरियह की बरकत 

जब उनकी शादी की खबर लोगों के कानों तक पहुंची तो वे अपने अपने क़ैदियों को हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के सम्मान में आज़ाद कर दिए कि वे हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के ससुराल के लोग हैं, इस तरह हज़रत जुवैरियह की अपने लोगों के लिए सबसे बड़ी बरकत साबित हुईं जिसके बारे में हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे खुश रहे-ने गवाही दीं और बोलीं कि उनसे बढ़ कर शुभ महिला कहीं नहीं देखीl

उनके अभिलक्षण और महत्वपूर्ण विशेषताएं
हज़रत जुवैरियह सबसे सुंदर महिलाओं में से एक थीं और वह बहुत बुद्धिमान थीं और बहुत ही पक्का समझबूझ और कमाल का विचार और कामयाब सोंच की मालिक थीं, वह ज़बरदस्त शिष्टाचार, साफसुथरी बातचीत के गुण अपने अंदर रखती थीं और भाषण के तरीकों को खूब जानती थीं, वह अपने पवित्र हृदय और शुद्ध आत्मा के द्वारा जानी जातीं थीं, इसके अलावा, वह बहुत समझदार, अल्लाह से डरनेवाली, पवित्र, धर्म की बातों में फूंक फूंक कर क़दम रखनेवाली थीं, न्यायशास्त्र में बहुत माहिर और प्रकाशित आत्मा और मन रखती थीं l

 

बहुत मज़बूत याददाश्त और इबादतवाली महिला थीं  
हज़रत जुवैरियह प्रार्थना और नमाज़ में हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की दूसरी पवित्र पत्नियों के उदाहरण का अनुसरण करने लगीं और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के चरित्र और विशेषताओं को अपनाने लगीं यहाँ तक कि सदाचार और पुण्य में उदाहरण बन गईं lइस तरह हज़रत जुवैरियह बहुत इबादत करनेवाली , प्रर्थना करनेवाली, अल्लाह को बहुत याद करनेवाली और सहनशीलतावाली महिलाओं में शामिल हो गईंlवह अल्लाह सर्वशक्तिमान की प्रशंसा और उसकी याद में ज़ियादा समय बिताती थीं l
हज़रत जुवैरियह और हदीस का कथन
उनसे हज़रत इब्न अब्बास, उबैद बिन सब्बाक़, हज़रत इब्ने अब्बास के आज़ाद गुलाम कुरैब, और मुजाहिद, अबू-अय्यूब याह्या बिन मालिक अज्दी,और जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने हदीस कथित कीlबकी बिन मख्लद की किताब में उनकी हदीसों की संख्या सात है, हदीस की छह सही पुस्तकों में चार उल्लेख किए गए, बुखारी शरीफ में एक हदीस और मुस्लिम शरीफ में दो हदीसें दर्ज हैं lउनकी हदीसों में रोज़े का विषय शामिल है, जिस में यह उल्लेख है कि शुक्रवार को रोज़े के साथ खास नहीं करना चाहिए, और अल्लाह की याद और उसकी पवित्रता बयान करने के पुण्य के विषय में भी उनसे हदीस कथित है, इसी तरह ज़कात के बारे में भी उनसे हदीस कथित है, और यह कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को तुह्फा में वह चीज़ दी जा सकती है जो दान के द्वारा प्राप्त हुईlइसी तरह उनसे गुलाम आज़ाद करने के विषय में भी हदीस कथित है l  

इस प्रकार, विश्वासियों की माँ हज़रत जुवैरियह बिनते हारिस के द्वारा सात हादिसें हमेशा के लिए सुरक्षित हो गईं और हदीस के कथन की दुनिया में उनका नाम सदा के लिए शामिल हो गया, साथ ही हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के सहाबियों में उनकी गिनती हो गई, और सारे मुसलमानों की मां होने का सम्मान भी उनको मिल गया, और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की हदीसों को फैलानेवालों में उनका नाम जगमगाया lउनकी हदीसों में से एक हदीस यह थी: हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-एक बार शुक्रवार को हज़रत जुवैरियह बिनते हारिस के पास आए तो वह रोज़ा रखी हुई थीं, तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनसे पूछा:क्या तुम कल रोज़ा रखी थीं? तो वह उत्तर दीं: नहीं, तो उन्होंने पूछा: क्या तुम कल रोज़ा रखो गी? तो वह उत्तर दीं: नहीं, तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनको कहा: तो तुम आज रोज़ा खोल दो l
यह हदीस हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अम्र बिन आस से कथित है, और सही है, फिर भी इस हदीस के कथावाचकों में कुछ कमी है जैसा कि हाफ़िज़ इब्ने हजर ने इशारा किया, इसे अल्बानी ने उल्लेख किया, देखिए सहीह इब्ने खुज़ैमा, हदीस नंबर २१६३ l 


उनका निधन 
  
हज़रत जुवैरियह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के निधन के बाद संतुष्ट रूप में जिंदगी गुजारीं, उनकी जिंदगी लंबी रही और हज़रत अमीर मुआविया बिन अबू-सुफ़यान-अल्लाह उनसे खुश रहे- के राज्य तक जिंदा रहीं l५० हिजरी में उनका निधन हुआ, उनको जन्नतुल-बकीअ में दफनाया गया, और मरवान बिन हकम ने उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई l 

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