1. सामग्री
  2. पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की आज्ञाएं व वसीयतें
  3. अल्लाह ने तुम पर ह़ज अनिवार्य (फ़र्ज़ ) कर दिया है, अतः तुम ह़ज करो

अल्लाह ने तुम पर ह़ज अनिवार्य (फ़र्ज़ ) कर दिया है, अतः तुम ह़ज करो

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हज़रत अबू हुरैरा (अल्लाह उन से प्रसन्न हो) से रिवायत है वह कहते हैं: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने हमें भाषण देते हुए फ़रमाया: ऐ लोगों! अल्लाह ने तुम पर ह़ज अनिवार्य (फ़र्ज़) कर दिया है, अतः तुम ह़ज करो, तो एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हर साल ह़ज अनिवार्य (फ़र्ज़) है? तो आप (अल्लाह के रसूल सल्लल्ललाहु अ़लैहि वसल्लम ) खामोश रहे, यहाँ तक कि उस व्यक्ति ने तीन बार वही बात कही, अतः अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : अगर मैं " हाँ " कह देता तो तुम पर वह (यानी ह़ज हर साल) अनिवार्य व अवश्य हो जाता, और तुम (हर साल) ना कर पाते, फिर आप (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : जो मैं तुम्हें बता दूँ उससे ज़्यादा ना पूछो, क्योंकि तुम से पहले वाले लोग अपने नबियों से असहमति और बहुत ज़्यादा सवाल करने के कारण ही नष्ट हुए थे, अतः जब मैं तुम्हें किसी चीज़ को करने के आदेश दूं तो जहां तक हो सके उसे करो, और जब मैं तुम्हें किसी चीज़ से मना करूं तो तूम उसे छोड़ दो (और उस चीज़ के क़रीब भी ना जाओ ) "। (मुस्लिम)

यह ह़दीस़ सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व फ़ायदेमंद पाठों में से एक है, इस के द्वारा हम अल्लाह तआ़ला और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) के साथ अदब का तरीक़ा सीखते हैं, अतः जो अल्लाह ने हमारे लिए सीमा बान्ध दी है उसे हम पार ना करें, जिसका उसने हमें आदेश दिया उसका पालन करें, उससे आगे ना बढ़ें, और जिस चीज़ से उसने हमें रोका तो उससे रुक जाएं और उसके क़रीब भी ना जाएं। यह ह़दीस़ मुसलमान को सीधे रास्ते पर रखती है, उसे अपमानित व बेहूदा मामलों से दूर रखती है, यह उसे धर्म (दीन)में कठोरता व सख्ती करने से चेतावनी देती है और इसी तरह जिस चीज़ को अल्लाह ने माफ कर दिया और उसके जायज़ व नाजायज़ होने के बारे में साफ बयान नहीं फ़रमाया, या उसके करने या छोड़ने के बारे में लोगों के लिऐं उसमें कोई सीमा नहीं बांधी, तो ऐसी चीज़ के बारे में भी पूछने से यह ह़दीस़ चेतावनी देती है।

अतः जो अल्लाह तआ़ला ने अपनी पवित्र किताब -क़ुरआन - में और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने अपनी ह़दीस़ो में बयान कर दिया उसका हमें पालन करना चाहिए न उसमें कमी करना चाहिए न उसमें ज़्यादती, और न ही हमें ऐसी चीज़ के बारे में पूछना चाहिए जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने बयान नहीं किया, लेकिन अगर कोई चीज़ हमारी समझ में नहीं आ रही है या हमें उसमें कुछ अधिक जानने की आवश्यकता है तो ऐसी चीज़ के बारे में हम बिलकुल पूछ सकते है।

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