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पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) युध्द में (कुलीन योद्धा)
लड़ाई व युध्द के अंदर दुश्मन सैनिकों के प्रति उनका बड़प्पन:
पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम )ने अपनी नेक व महान नैतिकता और पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं का पालन करते हुए , कभी भी किसी को धोखा नहीं दिया था, भले ही वह उनका दुश्मन हो। वह किसी के साथ किया हुआ अपना समझौता कभी नहीं तोड़ते थे जब तक कि विपक्ष उसे ना तोड़े। उन्होंने युध्द में, चाहे वह विजेता हों या उनका शत्रु, युद्ध के घायल और कै़दियों (बंदियों ) को यातनाएं नहीं दीं, उन पर अत्याचार नहीं किया और न ही उनके शवों के अंग काटे।बल्कि वह अपने सैनिकों और अपनी सैना के सिपाहियों को ऐसा करने से मना करते थे चाहे जो भी हो।और इस तरह से उन्होंने और उनके अनुयायियों ने युद्धों के दौरान मानवता को महान नैतिकता के लिए अद्भुत उदाहरण दिए।
युध्द में दुश्मन महिलाओं के प्रति उनका बड़प्पन:
इस अद्भुत उदाहरण को पढ़ें जो मन को पकड़ लेता है और भावनाओं को हिला देता है।
मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम )के अपने शत्रुओं के साथ निर्णायक युद्धों में से एक युद्ध में उनकी सैना के एक सिपाही ने जिसका पालन आपके सैनिक स्कूल में हुआ था यानी आपके चचेरे भाई अ़ली इब्ने अबु ता़लिब ने एक नकाबपोश दुश्मन सैनिक को देखा कि वह पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) की सैना के घायल लोगों और लाशों के बीच घूम रहा है और उन्हें भयानक तरह से विकृत कर रहा है और उनके अंगों को काट रहा है यहाँ तक कि उसने उनके सबसे क़रीबी यानी उनके और उनके सबसे बड़े सरदार मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) के चाचा ह़ज़रत ह़मज़ा के अंगों को भी बिगड़ दिया, इस दृश्य ने उन्हें भयभीत कर दिया और उन्होंने उस सैनिक को मारकर उस से बदला लेने की ठान ली, और तुरंत वह एक तेज़ तीर की तरह उसके पास पहुंच गए, लेकिन जैसे ही उन्होंने उसे मारने के लिए अपनी तलवार उठाई तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गए कि वह सैनी पुरुष नहीं बल्कि पुरुष के कपड़े पहने हुई एक दुश्मन महिला है। इस अद्भूत दृश्य और मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) के सैनिक के महान सिद्धांतों पर ध्यान दें; तो इस सिपाही ने दुश्मन के सर पर तलवार उठाने के पलों में बदले और उन उच्च सिद्धांतों के बीच संतुलन किया जो उसने मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) के विद्यालय में सीखे थे, अतः उस पर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) की सिखाई हुई नेक और महान नैतिकता ग़ालिब आ गई, इसलिए उसने अपनी तलवार को नीचे गिरा दिया और अपने क्रोध को दबा दिया, और अपने साथियों के साथ की गई इतनी बुरी कार्रवाई के बावजूद उस महिला को छोड़ दिया।
तो देखो तो यह कैसी नैतिकता है? और य कैसे उच्च सिद्धांत हैं? यह कैसी महानता है? और दुश्मन होने के बावजूद भी महिला के लिए कैसा सम्मान और दया है?
यही तो पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) और उनके अनुयायियों की महानता है। और यही उह इस्लाम धर्म की महानता है जिसने उनको यह सिखाई।
बंदियों के साथ उनका बड़प्पन :
मानवाधिकारों के अधिकारपत्रों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के बावजूद अभी भी बंदी मनोवैज्ञानिक और शारीरिक यातना की हिंसा, और मानवाधिकारों के उल्लंघन के तहत कराह रहा है।
लेकिन चौदह से अधिक शताब्दियों से पहले ही ,मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) ने युद्ध कैदी के साथ व्यवहार करने लिए पूरी दुनिया के लिए एक ऐसा शानदार क़ानून और सुंदर तरीका तैयार किया , जो अगर मानवता द्वारा लागू किया जाए , तो वह इस भ्रमित दुनिया में कैदियों की उन उलझनों से बाहर निकल जाएगी जो हर जीवित अंतरात्मा और महान नैतिकता वाले व्यक्ति की भावनाओं को झंझोड़ कर रख देती हैं।
और वह क़ानून यह है कि मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) ने कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन करने को सख्त तरीके से मना किया है चाहे कोई भी कारण हो।
अतः उनके यहाँ कैदी को शारीरिक या नैतिक रूप से सजा़ देना सख़्त मना है। और इसी तरह ही उसे कोसना, उसे गाली देना और उसे भोजन और पानी ना देना भी सख़्त मना है। बल्कि कै़दी पर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) और उनके अनुयायियों की दया की यह हालत थी कि वे खाने और पाने में क़ैदी को अपने आप पर प्राथमिकतादे देते थे।
मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम)के अनुयायियों के जीवन में तुम्हें इस तरह के बहुत उदाहरण और दृश्य मिल जाएंगे।
उन्हीं में से एक दृश्य वह है जिसको पवित्र क़ुरआन ने बयान किया और उसकी प्रशंसा की, अतः उसने मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम)के अनुयायियों की प्रशंसा करते हुए कहा :
(और वे दरिद्र, और अनात और क़ेदी को खाना खिलाते हैं उसकी मोहब्बत पर )
यानी मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) और उनके अनुयायी दरिद्र, अनात और क़ेदी को खाना खिलाने में अपने प्रति प्राथमिकतादे देते हैं हालांकि उन्हें स्वंयम उस खाने की सख्त जरूरत होती है।
अब आप मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) और उनके अनुयायियों के क़ैदियों के प्रति इन महान व्यवहारों को देखें।
आज इस जमाने में कैदियों को मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) और उनकी शिक्षाओं की सख्त जरूरत है ताकि वे उनके घावों को भरें और उनकी चोटों का इलाज करें, उनके आंसुओं को पोंछें, और उन्हें उनके अधिकार बल्कि उनकी मानवता वापस दिलाएं जो विनाशक हथियारों और झूठे नामों के तहत गंदे युद्धों की सभ्यता ने छीन ली है
और अंत में अब हम यह कहते हैं कि समकालीन सभ्यता के मुकाबले में मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) को अपने उपर पूरी तरह से गर्व करना चाहिए क्योंकि वह मानधिकारों के सभी विभागों में व्यवहारिक रूप आगे हैं, ना केवल आदर्श वाक्य और दावे के रुप से जैसा कि समकालीन देश कर रहे हैं।
मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) के जीवन में आप एक भी ऐसा उदाहरण नहीं दिखा सकते जिसमें क़ैदियों पर शारीरिक या मानसिक रूप से से अत्याचार हुआ हो और उनके अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो।