1. सामग्री
  2. पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) का व्यक्तित्व
  3. पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) की नैतिकता क़ुरआन थी

पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) की नैतिकता क़ुरआन थी

पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) की प्यारी पत्नी ह़ज़रत आ़एशा (अल्लाह उन से प्रसन्न हो ) से साबित है कि उन्होंने पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) विशेषता में ऐसा कहा।

अतः ह़ज़रत सअ़द बिन हिशाम बिन आ़मिर की मदीना आने की कहानी की लम्बी ह़दीस़ में है कि वह कुछ चीजो़ के बारे में पूछने के लिए ह़ज़रत आ़एशा (अल्लाह उन से प्रसन्न हो) के पास आए, वह कहते हैं कि :

" फिर मैंने कहा, ऐ मोमिनों की माँ, अल्लाह पैगंबर  (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) की नैतिकता के बारे में मुझे बताईये?

 तो उन्होंने कहा : क्या तुम क़ुरआन नहीं पढ़ते हो?

मैंने कहा : क्यों नहीं।

उन्होंने कहा : अतः पैगंबर (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) की नैतिकता क़ुरआन थी।

वह कहते हैं कि फिर मैंने यह इरादा किया उठ जाऊं और मरते दम तक किसी से कुछ ना पूछूँ........

(मुस्लिम )

और एक दुसरी रिवायत में :

मैंने कहा :ऐ मोमिनों की माँ, अल्लाह पैगंबर  (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) की नैतिकता के बारे में मुझे बताईये?

उन्होंने कहा : ऐ मेरे बेटे! क्या तुम क्या तुम क़ुरआन नहीं पढ़ते हो? अल्लाह ने फ़रमाया है :

(और बेशक तुम्हारे एख़लाक़ बड़े आला दर्जे

 के हैं ) मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) की नैतिकता क़ुरआन है।

(अबु यअ़ला)

इमाम नवावी ने मुस्लिम की शरह में कहते हैं :

" इसका मतलब है : उस (क़ुरआन) पर अ़मल करना, उसकी सीमाओं को पार न करना, और उसके आदाब(और उसकी शिक्षाओं ) को अपनाना, उसके उदाहरण और उसकी कहानियों से सीख लेना, उसमें सोच-विचार करना और उसको अच्छी तरह से पढ़ना।"

और इब्ने रजब ने " जामेउ़ल उ़लूम वल ह़िकम " में  कहते हैं :

" यानी पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम) क़ुरआन के आदाबौं (और उसकी शिक्षाओं ) और उसकी नैतिकता को अपनाए हुए थे।

कुरान ने जिसकी प्रशंसा की उस में उनकी रज़ा और (प्रसन्नता) थी, और जिसकी उसने बुराई की उस में उनकी नाराज़गी (अप्रसन्नता) थी। और उन्हीं( ह़ज़रत आ़एशा (अल्लाह उन से प्रसन्न हो )) से दुसरी रिवायत है, उन्होंने कहा :

उनकी नैतिकता क़ुरआन थी,  क़ुरआन की रज़ा में उनकी रज़ा थी और क़ुरआन की नाराज़गी में उनकी नाराज़गी थी। "

मुनावी ने " फैज़ुल क़दीर " में कहा :

 यानी जो आदेश और निषेध और वचन और चेतावनियाँ और उनके अलावा दुसरी चीजे़ क़ुरआन ने बताईं।

और क़ज़ी ने कहा :

यानी जो कुछ क़ुरआन में बयान हुआ वह सब उनकी नैतिकता थी, क्योंकि जो कुछ भी क़ुरआन ने अच्छा बताया है, जिस चीज़ की भी उसने प्रशंसा की है और जिसकी ओर उसने बुलाया है वे सब उनमें थीं। और जिस चीज़ को भी क़ुरआन ने बुरा बताया और उस से मना किया वह उनमें नहीं थी और वह उस से दूर थे। अतः क़ुरआन उनकी नैतिकता का स्पष्ट बयान है। "

अबु ह़ामिद अल गज़ाली (अल्लाह उन पर दया करे ) " एह़या उ़लूम अल दीन " में कहते हैं :

पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) की नैतिकता की सभी अच्छाइयों का बयान है जिनको कुछ विद्वानों ने ह़दीस़ो से लेकर एक जगह इक्ट्ठा किया है, अतः वह कहते हैं :

(पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ) सबसे अधिक सहन शील व बर्दाश्त करने वाले, सबसे अधिक बहादुर, सबसे अधिक नियायी व ईमानदार, सबसे अधिक पवित्र व पाक दामन थे, उन्होंने कभी किसी ऐसी महिला का हाथ नहीं छुआ जिसके वह मालिक नहीं थे या जो उनकी पत्नी नहीं थी या जो उन महिलाओं में नहीं थी जिन से शादी करना उनके लिए ह़राम था।

 वह सबसे अधिक सख़ी थे, एक रात के लिए भी उनके पास दिरहम व दीनार नहीं रुके, यदि कुछ बच जाता और उनके पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं आता जिसे वह देते और रात हो जाती तो जब तक वह बचा हुआ माल किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे उसकी आवश्यकता होती दे नहीं देते थे तब तक घर नहीं जाते थे। और जो भी अल्लाह उन्हें रोज़ी देता तो वह सबसे सरल जैसे खजूर और जों आदि में से केवल वह लेते जो उन्हें एक वर्ष तक काफी हो, और उसके अलावा सभ अल्लाह की राह में खर्च कर देते थे। जब भी किसी ने उनसे कोई चीज़ मांगी तो उन्होंने उसे दे दिया। और फिर अपनी एक वर्ष भर की रोज़ी में भी दे देते थे हा़लांकि कभी कभी वर्ष पुरा होने से पहले ही उन्हें आवश्यकता हो जाती थी। वह अपनी चप्पलें स्वयं सी लेते तथा स्वयं ही अपने कपड़ों पर पैबंद लाग लेते थे। और घर के कामों में अपने घर वालों की सहायता करते तथा उनके साथ गोश्त भी काटते थे। वह सबसे अधिक विनम्र और ह़या वाले व्यक्ति थे, अतः उनकी निगाह किसी के चेहरे पर जमी नहीं रहती थी। और गुलाम और आज़ाद सबकी दावत तथा सब उपहार स्वीकार करते थे अगरचे दूध का एक घूंट ही क्यों न हो और उनके बदले में कुछ देते भी थे। और वह दान की चीज़ें नहीं खाते थे। गुलाम महिला और मिसकीन (दरिद्र ) उनसे कुछ कहते तो वह उनकी सुनते थे। अपने अल्लाह के लिए क्रोधित होते अपने लिए नहीं। और वह सदैव सत्य को लागू करते अगरचे उसके कारण उनका या उनके अनुयायियों का नुकसान हो।

अतः उन्होंने अपने सबसे अच्छे अनुयायियों में से एक को उस क्षेत्र में मरा हुआ पाया , जहाँ यहूदी रहते थे, लेकिन उन्होंने उनके साथ कठोर व्यवहार नहीं किया और न ही उस से अधिक कुछ कहा जो शरीअ़त द्वारा निर्धारित है, बल्कि उन्होंने अपने उस अनुयायिय के बदले सो ऊंटनियाँ दियत में दीं हा़लांकि उनके अनुयायियों को केवल एक ऊंटनी की सख्त आवश्यकता थी। और वह भूख के कारण अपने पेट पर पत्थर बांधते थे।और उन्होंने हलाल खाने के अलावा कभी कुछ नहीं खाया तथा वह टेक लगाकर या मेज़ पर बैठ कर नहीं खाते थे।पूरी जिंदगी कभी भी लगातार तीन दिन तक उन्होंने रोटी से पेट नहीं भरा। और वह ऐसा कंजूसी या गरीबी के कारण नहीं करते थे बल्कि वह कम खाना पंसद करते थे और अपने ऊपर दुसरे लोगों को तरजीह देते थे। और वह शादी की दावत स्वीकार करते, बिमारों को देखने के लिए जाते तथा अंतिम संस्कार में शामिल होते थे। और वह शत्रुओं के बीच बिना किसी चौकीदार के चलते थे। वह सबसे विनम्र और शांत थे, और घमंडी नहीं थे। बात करने में सबसे अच्छे थे तथा लम्बी बात नहीं करते थे। वह सबसे ज्यादा सुंदर दीखते थे। दुनियवी किसी चीज़ के लिए वह चिंतित नहीं हुए । जो मिल जाता पहन लेते थे।और गुलामों या दुसरे लोगों को सवारी पर अपने पीछे बिठा लेते थे।सवारी के लिए जो चीज़ भी मिल जाती उसी पर सवार हो जाते थे, अतः कभी घोड़ा, तो कभी ऊंट पर , कभी खच्चर तो कभी गधे पर और कभी तो बिना टोपी, पगड़ी और चादर के पैदल ही चलते थे। मदीने के आखरी छेत्र में भी बीमारों को देखने के लिए जाते थे। वह खुश्बू व अच्छी गंध पसंद करते थे और बदबू व बुरी गंध से नफरत करते थे। और गरीबों के साथ बैठ जाते और मिसकीनों (दरिद्रों) के साथ खाना खा लेते थे। और अच्छी नैतिकता वाले लोगों को सम्मानित करते तथा मान- सम्मान वालों साथ दयालुता से व्यवहार करके उन लोगों के दिलों को आकृष्ट करते और उन्हें कोमल बनाते। वह अपने रिश्तेदारों के साथ रिश्तेदारी के संबंधों को सदैव निभाते थे और जो उनके रिश्तेदारों से बेहतर  लोग थे तो उन पर वह अपने रिश्तेदारों को तरजीह नहीं देते थे। किसी के साथ सख्ती से व्यवहार नहीं करते थे। और माफी मांगने वालों को आप माफ कर देते थे। मजाक भी कर लेते थे लेकिन सत्य के सिवा कुछ नहीं कहते थे तथा खिलखिलाए व ठट्टा मारे बिना हंसते थे।

जायज़ खेल देखते तो उस से मना नहीं करते थे। अपनी पत्नी के साथ दौड़ भी लगाते थे। और जब उनके खिलाफ आवाज़ें उठती थीं तो वह सब्र व बर्दाश्त करते थे। उनके पुरूष और महिलाऐं गुलाम थीं लेकिन वह उनसे अच्छा नहीं खाते और पहनते थे। उनका कोई भी समय किसी ऐसे कार्य में नहीं गुज़रता था जो अल्लाह के लिए ना हो या फिर ऐसे कार्य में गुज़रता जो उनकी बहतरी के लिए आवश्यक हो।किसी गरीब को उसकी गरीबी या उसके दीर्घकालीन रोग के कारण हक़ीर नहीं समझते थे और न ही किसी बादशाह से उसकी बादशाहत के कारण डरते थे। वह दोनों को समान रूप से अल्लाह की तरफ बुलाते थे। उन्होंने अगर किसी मुस्लिम को  क्रोध में कुछ कहा तो उनका वह कहना उसके लिए प्रयाश्चित्त और दयालुता बन गया, अतः वह फरमाते हैं :

" मुझे दयालुता बनाकर भेजा गया है और अभिशाप देने वाला बनाकर नहीं भेजा गया है।"

और जब भी किसी मुस्लिम या गैर मुस्लिम को शाप देने के लिए कहा जाता तो वह शाप के बजाए उसे दुआ़ देते थे। उन्होंने कभी किसी को अपने हाथ से नहीं मारा। और जब भी उन से दो चीज़ों में  से किसी एक को चुनने के लिए कहा जाता तो वह उनमें से आसान व सरल चीज़ को चुनते यदि उसमें कोई गुनाह या रिश्तेदारी के संबंध का टूटना ना होता। अल्लाह ने उन्हें भेजने से पहले तोरैत कितब में उनकी विशेषता बयान फ़रमाई, अतः फ़रमाया :

 मुह़म्मद अल्लाह के पैगंबर हैं, मेरे चुने हुए बन्दे हैं,वह न क्रुद्ध स्वाभाव, न कठोर ह्रदय और न ही बाजारों में शोर मचाने वाले हैं। औ बुराई का बदला बुराई से नहीं देते है बल्कि वह क्षमा व माफ कर देते हैं।

उनकी नैतिकता में से यह था कि वह जिससे मिलते थे पहले उसे सलाम करते थे, यदि उनके पास कोई किसी ज़रूरत के कारण आता (और उनके पास उसे देने कुछ नहीं होता ) तो वह उसे सहन दिलाते यहां तक कि वह स्वयं ही चला जाता। और जब उनसे कोई हाथ मिलाता तो जब तक वह स्वयं ही अपना हाथ खींच ना लेता तब तक वह हाथ मिलाए रहते थे। और सभा में जैसे उनके अनुयायिय  बैठते वैसे ही वह बैठते थे।

सर्वशक्तिमान अल्लाह पवित्र क़ुरआन में फ़रमाता है :

(तो कैसी कुछ अल्लाह की महरबानी है कि ऐ मह़बूब तुम उनके लिए कोमल ह्रदय हुए, और आगर तुन्दमिज़ाज (क्रुद्ध स्वाभाव) और कठोर ह्रदय होते तो वे ज़रूर तुम्हारे पास से परेशान हो जाते।

अल्लाह ने उन्हें अच्छी जीवनी और पूरी राजनीति (यानी सबसे अच्छा रवैया और आचरण, और लोगों के साथ व्यवहार करने और स्थितियों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका) दी थी हालांकि वह उम्मी थे न ही लिखते थे और न ही (देखकर) पढ़ते थे, बकरियां चराने और गरीबी में रेगिस्तानों और अज्ञान व जहालत के नगर में बिना पिता और मां के अनाथ, वह पले औ बड़े हुए, लेकिन सर्वशक्तिमान अल्लाह ने सभी अच्छी नैतिकता, प्रिय तरीके, पहली और बाद की पीढ़ियों की खबरें, जिस चीज़ के द्वारा परलोक में सफलता और मुक्ति और दुनिया में खुशी मिले, ज़रूरी चीजो़ का पालन करना और अनावश्यक व फज़ूल चीज़ों से दूर रहना, यह सारी बातें उन्हें सिखा दीं।

अल्लाह उनके आदेश का पालन करने और उनके तरीके पर चलने में हमारी सहायता करे, आमीन या रब्बल आ़लामीन(सभी संसारों के मालिक )      

(संक्षिप्त रूप से उद्धरण समाप्त हुआ)

 

कोई व्यक्ति यह ना समझे कि यह जो कुछ पीछे बयान किया गया वह झूंटी कहानियां या ऐसे ही बकवास है जिसका वास्तव से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि उपर जो कुछ भी बयान किया गया है उसका हर वाक्य और उसकी हर बात मसानीद, सिहा़ह़ और सुनन की बहुत सी सह़ी ह़दीस़ो से साबित है। लेकिन मैंने संक्षिप्त के कारण उन्हें यहां नहीं लिखा, अतः जो उन्हें जानना चाहे तो वह इमाम तिरमिज़ी की किताब ( अश्शमाइल अल मुह़म्मदिया) को पढ़ सकता है।

 

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