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कोई महिला किसी महिला से मिलने के बाद अपने पति से उसका हुलिया बयान न करे
तर्जुमा: ह़ज़रत इब्ने मसऊ़द रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "कोई महिला किसी महिला से मिलने के बाद अपने पति से उसका हुलिया बयान न करे कि जैसे कि वह उसे देख रहा है।"
अच्छे अखलाक़ में से यह भी है कि मुसलमान हर उस चीज़ से अपनी निगाह नीची रखे जिसे देखना उसके लिए जायज़ नहीं है। ऐसा काम करने से बचे जिसकी उसके लिए इजाजत़ नहीं है। और ऐसी चीज़ के जिक्र करने से बचे जो उसके लिए मुनासिब नहीं। इस मामले में मर्द और औरत दोनों बराबर हैं।
यह ह़दीस़ शरीफ केवल महिला के साथ ही खास नहीं है। लेकिन नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इसमें महिला को संबोधित किया है क्योंकि ज़्यादातर महिलाएं जब एक जगह इकट्ठा होती हैं तो बिना शर्म और हया के ही एक दूसरे के सामने कपड़े उतार देती हैं और अपने और अपने पतियों के दरमियान के निजी मामलों को बयान कर देती हैं और बहुत से छुपे हुए राज़ों और मामलों को जाहिर कर देती हैं। तथा कभी-कभार तो कुछ औरतें दूसरी औरतों के बारे में वह सब कुछ जान जाती हैं जो सालों साल साथ रहने के बावजूद उनके पति भी नहीं जान पाते हैं। यही वजह है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इस ह़दीस़ में औरत को संबोधित किया ताकि उन्हें इस बुरी आदत से रोकें कि हो सकता है कि वे इस बुरे व शर्मनाक व्यवहार से बाज़ आ जाएं।
यह जान लें कि तमाम उन चीजों से निगाह नीची रखना जरूरी है जिन्हें देखना हराम व नाजायज़ है। बिना किसी सख्त जरूरत के औरत को ना तो मर्दों के वे अंग देखना जायज़ है जिन्हें छुपाना जरूरी है और ना ही औरतों के वे अंग देखना जायज़ है। हर मर्द और औरत इसकी आजमाइश में पड़ सकते हैं। इसीलिए याद रखें कि बिना किसी सख्त जरूरत के किसी भी मुसलमान मर्द और औरत को ना तो मुसलिम मर्द और औरत के सत्र (बदन का वह अंग जिसका छुपाना अनिवार्य (ज़रूरी) है।) को देखना जायज़ और ना ही गैर मुस्लिम मर्द और औरत के सत्र को।
यह कितनी महान वसियत है जो तमाम पुरुषों और औरतों की इज़्ज़त व आबरू की हिफाज़त करती है और समाज को बुरे अखलाक़ और बद चलनी से बचाती है।