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तुम में से कोई " हाय समय की ना मुरादी (या कम्बख्ती)" (जैसा शब्द) ना कहे।
ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआ़ला ने इरशाद फ़रमाया: " आदम का बेटा मुझे तकलीफ देता है कि वह कहता है: "हाय समय की ना मुरादी (या कम्बख्ती)! तुम में से कोई " हाय समय की ना मुरादी (या कम्बख्ती)" (जैसा शब्द) ना कहे। क्योंकि मैं ही समय (का मालिक) हूँ। (क्योंकि) मैं (ही) रात और दिन को पलटता हूँ और मैं जब चाहूंगा उन्हें खत्म कर दूंगा। "
बर्दाश्त करना इस्लाम में सभी अख़लाक से बेहतर विशेषता है। और मुसीबतों और परेशानियों में सब्र करना ईमान का आधा हिस्सा और अल्लाह की नेमतों पर शुक्र अदा करना उसका दूसरा हिस्सा है। अतः अगर मुसलमान के अंदर बर्दाश्त, सब्र और शुक्र जैसी अच्छी विशेषताएं और सिफतें ना हों तो यकीनन उसके अंदर बेवकूफी, मुसीबत पर रोना-धोना और ना शुकरी करना जैसी बुरी विशेषताएं ही होंगी।
सब्र और बर्दाश्त से काम लेने और हमेशा अल्लाह की नेमतों पर शुक्र अदा करने का नतीजा यह होता है कि इंसान सभी हालतों को बड़ी ह़िकमत अक्लमंदी, समझदारी और अच्छी तरह से संभाल लेता है। मुसीबतों और परेशानियों का बड़े इत्मीनान और सुकून से सामना करता है और नेमतों के शुक्रिया के तौर पर ऐसे कामों को अंजाम देता है जिनसे उस पर और भी नेमतों की बारिश होने लगती है।
बर्दाश्त का मतलब है: नरमी, कोमलता और दया से काम लेना, गुस्से को पी जाना और माफ करना। अल्लाह ताआ़ला ने अपने बंदों को बर्दाश्त करने की दावत दी है और उन्हें उस पर उभरा भी है।उसने बर्दाश्त से काम लेने वाले की तारीफ की है और उसे जन्नत देने का वादा फरमाया है जिसकी चौड़ाई आसमानों और जमीनों की तरह है।
सब्र से काम लेना एक बुलंद और ऊंचा स्थान है। अल्लाह ताआ़ला ने उसे इंसान के लिए इत़ाअ़त और फरमांबर्दारी (आज्ञाकारिता), नेक काम करने, गुनाहों को छोड़ने और मक़सदों और लक्ष्यों को पहुंचने के लिए एक बेहतरीन मददगार और सहायक बनाया है। जबकि शुक्र के बारे में हमारा यही कहना काफी है कि यह इ़बादत की आत्मा और जान है।
हाए समय की नामुरादी (या कम्बख्ती या खराबी जैसे) शब्द कोई बुरा काम होने या अच्छा काम छूट जाने पर हसरत और अफसोस जताने के लिए बोला जाते हैं।
ऐ मेरे प्यारे मुसलमान भाई! सबसे बड़ी और बेहतर चीज़ जिसके ज़रिए बंदा अपने अल्लाह से नज़दीक होता है वह यह है कि वह अपने कहने, करने में और सभी हालतों में अपने अल्लाह के साथ बड़े अदब और एह़तराम के साथ पेश आए। कोई भी इंसान अल्लाह के नज़दीक स्थान तक उस समय तक नहीं पहुंच सकता जब तक कि वह पूरी तरह से अपनी ज़बान को हर ऐसे शब्द से महफूज़ ना रखे जो अल्लाह की तारीफ से खाली या उसके खिलाफ़ हो या उसमें अल्लाह की मोहब्बत की झलक ना हो या फिर वह अल्लाह के किसी बंदे को तकलीफ का सबब हो। और उस समय तक कोई भी अल्लाह के अ़ज़ाब से नहीं बच सकता जब तक कि उसके काम उसके कहने के मुताबिक ना हों। लिहाज़ा कोई भी ऐसी बात ना करे जो खुद नहीं करता हो। और ऐसी चीज़ पर गर्व न करे जो उसके अंदर ना हो।