1. सामग्री
  2. पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की आज्ञाएं व वसीयतें
  3. जब शर्म ही न हो तो जो फिर जो चाहो करो।

जब शर्म ही न हो तो जो फिर जो चाहो करो।

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तर्जुमा: ह़ज़रत अबू मसऊ़द रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "पहले पैगम्बरो के जो बयान लोगों को मिले उनमें से एक यह भी है कि:" जब शर्म ही न हो तो जो फिर जो चाहो करो।"

अखलाकी नियमों पर तमाम पैगम्बरो का इत्तेफाक रहा है और किसी भी नियम के बारे में उनमें से किसी का कोई इख्तिलाफ नहीं है।

और हया उन्हीं अखलाकी नियमों में से एक नियम है बल्कि उनमें सबसे अहम यही है। क्योंकि तमाम अखलाकी विशेषताएं इसी पर आधारित हैं। यही वजह है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने ईमान की शाखाओं को बयान करते हुए खासतौर पर हया को बयान किया। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: "ईमान की सत्तर और कुछ शाखाएं हैं। उनमें सबसे बुलंद "ला इलाहा इल्लल्लाह" है और सबसे नीची "रास्ते से तकलीफ देनी चीज़ को दूर करना है" और हया ईमान की एक शाखा है।"

हया एक ऐसा तराजू है जिसके जरिए सारे काम तोले जाते हैं। इसी से लोगों की अहमियत और उनके इमानी दर्जों का पता चलता है। तो जिसके अंदर हया जितनी ज्यादा होगी उतना ही मोमिनो के दरमियान उसका मर्तबा बुलंद होगा और सब से बुलंद लोगों में उसका स्थान बढ़ता जाएगा।

हया वाले ही जन्नती लोग हैं। क्योंकि उनकी हया उन्हें अल्लाह और उसकी नेमतों के इनकार से रोक देती है। क्योंकि यह  हया नहीं है कि इंसान इस बात को पहचानने के बाद कि अल्लाह ने उसे पैदा किया और हर तरह की नेमतों से नवाज़ा फिर उसी अल्लाह का और उसकी नेमतों का इनकार करे।

तथा हया इमान वालों को खुले और छुपे हुई हर तरह के दिखावे -जिसे छोटा शिर्क कहते हैं- से बचाती है। क्योंकि जो यह जान लेता है कि अल्लाह ही नेक कामों का बदला देता है तो फिर वह कभी अपने किसी काम में किसी को शरीक नहीं करता है।

खुलासा यह है कि हया में हर तरह की भलाई है जैसा के नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने एक दूसरी ह़दीस़ पाक में इरशाद फरमाया है। हया सिर्फ भलाई और नेकी ही लाती है। हया ईमान के लिए ऐसे ही है जैसे कि बदन के लिए सर। वास्तव में हया हर उस बुरी चीज़ से रूकना है जिसे शरीअ़त बुरा समझती है और जिसे साफ तबीयत ना पसंद करती है। नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने हया की तारीफ यूं की है कि: "सर और जो कुछ (कान, आंख, मुंह, और जवान आदि) उसमें है और पेट और जो कुछ ( दिल, गुप्त अंग आदि) उसमें है उसकी हिफाजत करो और मौत और उसके बाद के अंजाम को याद करो।"

 

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