1. सामग्री
  2. पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की आज्ञाएं व वसीयतें
  3. हर व्यक्ति अपने दोस्त के धर्म पर होता है।

हर व्यक्ति अपने दोस्त के धर्म पर होता है।

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तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "हर व्यक्ति अपने दोस्त के धर्म पर होता है। इसीलिए तुम में से हर व्यक्ति यह देख ले कि वह किससे दोस्ती कर रहा है।"

यह वसियत बड़ी हिकमत और बेहतरीन नसीहत है। जैसा कि यह उन नियमों में से एक अहम नियम है जिन पर निजी या व्यक्तिगत और सामाजिक संबंध आधारित हैं। और जैसा कि आप देख रहे हैं कि इस ह़दीस़ शरीफ में शब्द बहुत कम हैं लेकिन वास्तव में यह बहुत से महत्वपूर्ण मानों को शामिल है जिन्हें हर साफ़ सुथरी बुद्धि महसूस करती और खुशी खुशी स्वीकार करती है और अच्छे व्यवहार और महान अखलाक़ बनाने में इन मानों के लाभ और इनकी तासीर में ज़र्रा बराबर भी शक नहीं है।

इस वसियत से वही व्यक्ति लाभ उठा सकता है जिसके पास ऐसी बुद्धि हो जो मामलों को हर तरह से परखने और उनके अंजाम को जानने की काबिलियत रखती हो और उसके पास ऐसा पाक व साफ़ दिल हो जो अल्लाह के दिये हुए नूर (प्रकाश) से ऐसी चीज़ें देखता हो जो दुसरे लोग अपनी आंखों से न देख पाते हों।

नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान: "अपने दोस्त के धर्म पर होता है।" का मतलब है कि उस पर उसकी हालत, उसके कहने और करने का असर होता है यहाँ तक कि वह भी उसी के रास्ते पर चलने लगता है कभी तो जानबूझकर और कभी अंजाने में। और कभी कभार तो वह अपने सारे कामों और अपनी सभी आदतों में हूबहू अपने उसी दोस्त की तरह हो जाता है जैसा कि शब्द "पर" इसकी तरफ इशारा कर रहा है।

जब कोई व्यक्ति एक लम्बे समय तक किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहता है जिससे वह बुद्धि, ज्ञान और तजर्बे में कम हो तो वह उसके अखलाक़ से प्रभावित हो जाता है और उन दोनों में जो भी तेज़ या धनी होता है वह अपने साथी पर हावी हो जाता है।

हम यह भी कह सकते हैं कि उन दोनों में से असर करने व्यक्ति अपने साथी पर हावी हो जाता है और अपने असर से अपने साथी को अपना फिदाई बना लेता है। फिर तो वह उसी के इशारे पर चलता है और जो जिस चीज़ के करने को कहता है वह करता है और जिससे मना करता है उसे नहीं करता है। और उसके साथ ऐसे ही रहता है जैसे नौकर अपने मालिक के साथ।

आमतौर यह देखा जाता है कि बुरे साथी का असर  नेक साथी पर ज़्यादा होता है। क्योंकि शैतान हमेशा बुराई के साथी के साथ रहता है तथा बुरे इंसान में ऐसी आदतें होती हैं जो अपनी तरफ खींचती हैं।

ह़दीस़ शरीफ में आदमी के धर्म का माना है उसका व्यवहार, रास्ता, तौर-तरीका, अक़ीदा और आ़दत आदि।

कुछ लोगों के एक से ज्यादा भी दोस्त हैं जिनके वे हमेशा साथ रहते हैं, साथ ही में खाते पीते हैं यहाँ तक कि दो जिस्म एक जान होते हैं।

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