1. सामग्री
  2. 30 वसियतें नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की दूल्‍हा-दुल्‍हन के लिए सुहागरात में
  3. (18) अठारहवीं वसियत: सम्भोग के समय शैतान को भगाने की दुआ़ पढ़ने की

(18) अठारहवीं वसियत: सम्भोग के समय शैतान को भगाने की दुआ़ पढ़ने की

ह़ज़रत इब्ने अब्बास -रद़ीयल्लाहु अ़न्हुमा- से वर्णित है वह कहते हैं कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : " तुम में से जब कोई अपनी पत्नी के साथ सम्भोग (सेक्स ) करना चाहे तो यह कहै :

بِسْمِ اللَّهِ، اللَّهُمَّ جَنِّبْنَا الشَّيْطَانَ، وَجَنِّبْ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا " ([1])

(अल्लाहुम्मा जन्निब्ना अश्शैत़ाना, व जन्निब अश्शैत़ाना मा रज़क़तना)

(अर्थ : ऐ अल्लाह! हमें शैता़न से बचा और जो तु हमें (बच्चे आदि ) दे उसे भी शैतान से सुरक्षित रख।)

क्योंकि अगर उस सम्भोग (सेक्स) से उन्हें बच्चा हुआ तो शैतान उसे कभी नुकसान नहीं पहुंचाएगा। "

        यह दुआ़ सम्भोग करने से पहले पढ़े।

शैतान उसे कभी नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इस बात में असहमति व इखतिलाफ है कि शैतान उस बच्चे को किस प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाएगा। लेकिन क़ाज़ी अ़याज़ ने इस बात पर सभी विद्वानों की सहमति व इत्तेफाक नक़ल किया है कि इसमें सभी प्रकार के नुकसान मुराद नहीं हैं। अगरचे शब्द "कभी भी नुकसान नहीं पहुँचाएगा " के द्वारा यही लगता है कि इसका मतलब सभी प्रकार के नुकसान हैं।

 



([1])  यह ह़दीस़ सही़ह़ है, बुखारी (4/ 151) (8/102), मुस्लिम (1434), अह़मद (1/286), अबु दाऊद (2161), तिरमिज़ी (1098), इब्ने माजह (1919), अ़ब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने अपनी मुस़न्नफ़ में (6/193), निसई ने “ दिन व रात के कार्य के बारे ” में (206) और त़िबरानी ने “ अल दुआ़ ” के बाब में (941) इसे उल्लेख किया है।

 

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