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कौशलों का आनंद लीजिए

Auther : डॉक्टर मुहम्मद अब्दुर्रहमान अल अरीफी
2337 2013/01/31 2024/11/11

वास्तव में कौशल भौतिक सुख का भी एक साधन है, मेरा मतलब केवल आख़िरतकी ही ख़ुशी नहीं है l
बल्कि, यह ऐसी ख़ुशी  है  जिसे आप इस दुनिया में भी महसूस करेंगे l इसलिए आप कौशल का आनंद ज़रूर लीजिए और सब के साथ इसका अभ्यास कीजिए बूढ़े, युवा, अमीर, ग़रीब, पास या दूर सब के साथ l लोगों के नुक़सान से बचने के लिए, उनका प्यार जीतने के लिए, या उन्हें सुधारने के लिए प्रतयेक व्यक्ति के साथ इन कौशलों का प्रयोग कीजिए l  
अली बिन-जहम एक बहुत ही सुवक्ता कवि थे l लेकिन पक्के देहाती थे, उनको रेगिस्तान की जीवन को छोड़ कर और किसी चीज़ का पता नहीं था l

अल-मुतवक्किल, बहुत ही बड़ा शासक था, सुबह और शाम लोग उसके पास से अपनी मुंहमांगी लेकर जाते थे l
एक दिन,अली बिन-जहम बग़दाद में प्रवेश किया तो उसे सुचना मिली कि जो भी ख़लीफा मुतवक्किल की तारीफ में कविता सुनाएगा तो उसे सम्मान दिया जाएगा और वह अनमोल उपहार पाएगा l   
अली इस बात से बहुत ख़ुश हुआ और ख़लीफा के महल की ओर चल पड़ा, और मुतवक्किल के पास पहूँचा  उसने देखा कि वहाँ कवियों का तांता बंधा हुआ है और ख़लीफा की प्रशंसा में अपनी कविताएँ सुनाते जा रहे हैं और उपहार के साथ सम्मानित किए जा रहे हैं l

मुतवक्किल तो मुतवक्किल ही था,उसका प्रभाव, प्रतिष्ठा और दबदबा देखने से तालुक़ रखता था, अली भी अपनी एक कविता के द्वारा ख़लीफा की प्रशंसा करने लगा: कविता का अनुवाद कुछ इस तरह है: आप प्यार के पालन करने में कुत्ते की तरह हैं, और समस्याओं का मुक़ाबला करने में बकरे की तरह हैं l दानशीलता में आप बालटी के समान हैं-आपके पास डोल की कभी कमी न हो- बल्कि आप तो बड़े बड़े डोलों की तरह हैं जिन में अधिक से अधिक पानी समाता है l

 वह अपनी कविता में ख़लीफा की कुत्ता, बकरी, कुआं और मिटटी के उदाहरण के माध्यम से तारीफ कर दिया l 

ख़लीफा तो बहुत नाराज़ हो गया, और उसके रक्षक अपनी तलवारें खोल  से खींच लिए उसकी गर्दन उड़ाने की पूरी तैयारी होगई l लेकिन फिर, ख़लीफा के मन में ख्याल आया कि अली बिन-जहम पर रेगिस्तानी स्वभाव और देहाती रंग चढ़ा हुआ है, इसलिए उसने उसके सवभाव को बदलने की योजना बना लिया, और अपने आदमियों को आदेश दिया कि उसे एक ऊँचा और आलीशान महल में रखो l और उसके लिए सुंदर से सुंदर लड्कियों और युवतियों का प्रबंधन करदो, और स्वादिष्ट और मज़ेदार खानों की व्यवस्था रखो l

अली बिन जहम जब सुख, आराम और आनंद का मज़ा चखा और नरम-नरम गद्दे और ऊँचे ऊँचे पलंगों पर आराम की सांस लिया, और वहाँ बड़े बड़े कवियों और लेखकों के साथ उनकी बैठकें होने लगी, और सात महीनों तक इसी ऐशोआराम में रहे, इस के बाद एक दिन, ख़लीफा जब एक रात कहानी और गपशप की सभा में बैठा हुआ था  तो उसे अली बिन-जहम, की याद आई तो उसके बारे में पूछा और उसे बुलाया l जब अली बिन-जहम आकर उसके सामने खड़ा हुआ तो ख़लीफा ने कहा:हे अली बिन-जहम कुछ अपनी कविता तो सुनाइए: तो उसने एक कविता सुनाया जिस के शुरूआत कुछ इस तरह थे, अनुवाद प्रस्तुत है: "जिसर" और "रोसाफा" के बीच हिरनियों की आंखों ने मुझे प्रेम के जाल में फँसा लिया, ऐसा कि मुझे महसुस भी हुआ लेकिन पता भी नहीं चला l उन हिरनियों ने तो मेरे पुराने प्रेम को दोबारा जिंदा कर दिया, जबकि वह प्रेम अभी ठंडा नहीं पड़ा था, लेकिन हुआ यह कि अंगारे पर अंगारे लगा दीं l  

अली बिन-जहम अपने नरम नरम शब्दों के द्वारा भावनाओं और प्रेम के समुद्र में हलचल मचा कर रख दिया, और राजा को सूरज, सितारों और तलवारों के उदाहरण के माध्यम से प्रशंसा किया l
देखा आप ने कि ख़लीफा ने कैसे इब्न-जहम के सवभाव को बदलने में सफलता प्राप्त कर लिया l

केवल यही नहीं बल्कि कितनी बार ऐसा हुआ कि हम अपने बच्चों और दोस्तों के बुरे व्यवहार से परेशान हुए, और फिर हम ने बदलने का प्रयास किया और हमको उस में सफलता भी मिली l

इस से पता चला कि यदि आप अपने स्वभाव को बदलना चाहें तो दूसरों की तुलना में यह काम अधिक आसान है l और आप अपनी उदासी को आसानी से मुस्कुराहट में बदल सकते हैं, अपने क्रोध को सहनशीलता बना सकते हैं, और कंजूसी को दरयादिली का रूप दे सकते हैं l

सच तो यह है कि यह काम असंभव तो नहीं है, लेकिन इसके लिए मज़बूत निर्णय और अभ्यास की आवश्यकता है l इसलिए हिम्मत रखिए l
याद रहे कि जो भी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के चरित्र के बारे में पढ़ता है उसको यह पता चल जाता है कि वह  लोगों के साथ ऐसे ज़बरदस्त नैतिक क्षमताओं से बर्ताव करते थे कि उनके दिलों को मोह लेते थे l

हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- केवल लोगों के दिखावे के लिए ही ऐसी ऊँची नैतिकताओं के साथ नहीं निपटते, और जब घर में आजाएं या अपने परिवार के बीच रहें तो नम्रता की जगह क्रोध और धैर्य की जगह ग़ुस्सा आजाए, ऐसा हरगिज़ नहीं हुआ कि लोगों के बीच में तो हंसमुख रहे  और अपने परिवार के बीच ग़ुस्सा में रहें, या लोगों के साथ तो दरयादिल रहें और अपने परिवार के साथ न रहें l

जी नहीं हरगिज़ नहीं! बल्कि नैतिकता तो उनके स्वभाव का अटूट अंग थी, वास्तव में वह अच्छे शिष्टाचार को अल्लाह सर्वशक्तिमान की इबादत का एक रूप जानते थे, जैसे सुबह की नमाज़ या रात की प्रार्थना एक इबादत है l वह किसी के सामने अपनी मुस्कुराहट l और किसी के साथ दया और क्षमा और कृपा करने को भी इबादत और पुण्य का काम समझते थे l

ज्ञात हो कि जो भी अच्छे व्यवहार करने को एक पुण्य या इबादत जाने गा वह तो सदा युद्ध और शांति,  भूखा और तृप्ति, स्वस्थ और बीमारी और सुख और दुख सब समय अच्छे नैतिकताओं से सजाधजा रहे गा l
कितनी ऐसी पत्नियां हैं जो अपने पति के सुंदर शिष्टाचार, दया, मुस्कुराहट और दरयादिली की चर्चा सुनतीं हैं, लेकिन घर पर तो उनको इन बातों में से एक भी कभी दिखाई नहीं देती है, घर पर तो वह सदा अशिष्ट, अधीर, आलसी, लगातार कोसने वाला, गालीगलौज करने वाला कंजूस इह्सान जताने वाला ही दिखाई देता है l

 लेकिन हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की तो बात ही कुछ और थी, क्योंकि उन्होंने ख़ुद कहा:"तुम में से सबसे अच्छा वह है जो अपने परिवार के लिए सबसे अच्छा है, और मैं अपने परिवार के लिए तुम सब की तुलना में सबसे अच्छा हूँ"[1]
 
आइए ज़रा देखते हैं कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-अपने परिवार के साथ  कैसे व्यवहार करते थे:अल-अस्वद बिन यज़ीद ने  कहा: मैंने हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से पूछा कि हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- अपने घर में कैसा बर्ताव करते थे? उन्होंने कहा: वह अपने परिवार के काम में हाथ बटाते थे lऔर जब प्रार्थना का समय हो जाता था तो वुज़ू [2] करते थे और प्रार्थना केलिए चले जाते थे ''
यही बात आप माता पिता के बारे में भी कह सकते हैं  l कितने ही ऐसे लोग हैं जिनकी अच्छी रीति-रिवाज, अच्छे शिष्टाचार, उदारता, मुस्कुराहट और दूसरों के प्रति अच्छे व्यवहार की तोती बोलती है, लेकिन सबसे अधिक नज़दीक के लोग और सब से अधिक अधिकार रखने वाले लोगों के साथ और मातापिता के साथ तो अनबन और परित्याग का स्वभाव रखा जाता है l जी हाँ, आप में सबसे अच्छा वह है जो अपने परिवार केलिए, अपने मातापिता केलिए, अपनी पत्नी केलिए, अपने नौकरों के लिए, और यहाँ तक कि अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छा हो l

एक शुभ वातावरण से भरपूर दिन में,अबू-लैला-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पास बैठे थे इतने में, हज़रत हसन या हुसेन चलते हुए हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पास आगए, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने उनको लेकर अपने पवित्र पेट पर बैठा लिया तो उस शिशु ने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पवित्र पेट पर पेशाब कर दिया,  अबू लैला ने कहा: मेंने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पेट पर पेशाब के बहते धारों को देखा l अबू लैला ने कहा: तो हम दौड़ कर उनकी ओर लपके तो उन्होंने कहा: मेरे पुत्र को छोड़ दो, मेरे पुत्र को मत डराओ, जब उस शिशु ने पेशाब कर लिया तो उन्होंने पानी मंगवाया और उसे धो लिया l[3] वाह क्या बात है हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के ऊँचे और बुलंद बर्ताव की! कैसे उन्होंने ख़ुद को ऐसे व्यवहार के लिए सिधाया था! इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है यदि वह छोटे और बड़े सब के दिलों को मोह लें l
 एक विचार l

अँधेरे को कोसने की बजाय चिराग़ को ही ठीक करने का प्रयास कर लीजिए l

 



[1]  इब्ने माजह ने इसे उल्लेख किया है l

 

[2] एक विशेष तरीके से नमाज़ केलिए हाथ मुँह और पैर धोने को वुजू कहते हैं l

 

[3]   इमाम अहमद और तबरानी ने इसे उल्लेख किया l

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