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महिलाओं के साथ

Auther : डॉक्टर मुहम्मद अब्दुर्रहमान अल अरीफी
2171 2013/02/02 2024/11/17

मेरे दादाजी एक पुरानी कहावत का उल्लेख करते थे और कहते थे"यदि अपनी बकरी से ध्यान हटा लेता है तो वह दूसरा बकरा ले आती है"Mērē dādājī ēka purānē muhāvarā jō kahatē haiṁ ullēkha karatē thē,
"Jaba vaha apanē ēka-bakarī neglects, vaha ghara ēka puruṣa bakarī, lātā hai"

 

जिसका अर्थ है कि जब एक औरत को अपने पति के पास उसकी जरूरतों और भावनाओं को पूर्ति करने की शक्तिशाली नहीं दिखाई देती है, तो स्त्री दूसरों के साथ तालमेल करने केलिए सोंच लेती है, जिस के पास मीठी मीठी बात मिलसकती हो l

इसका हरगिज़ यह मतलब नहीं है कि स्त्री और पुरूष बकरा और बकरी के समान हैं l{ अल्लाह की पनाह}  
औरत पुरूष का साथी है लेकिन अल्लाह ने पुरूष को एक मज़बूत शरीर  दिया है  पर स्त्री को उसने मज़बूत भावनाएं दी है l
हम ने कितने साहसी पुरूषों और यहां तक कि वीरों और राजाओं को देखा है कि एक महिला की भावनात्मक शक्ति के सामने उनका बल और उनकी वीरता कमज़ोर पड़ जाती है !
महिलाओं के साथ व्यवहार का गुण इस बात में छिपा है कि आप उस कुंजी को पहचानें जिसके द्वारा आप उन में अपना प्रभाव डाल सकें,  भावना से लड़ाई भावना के हथियार से ही संभव है, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने स्त्री के साथ दया करने और उसकी भावनाओं का पालन करने की सलाह दी इस के द्वारा आप भी उसके साथ ख़ुश रहेंगे, और उनहोंने बेटीयों के साथ दयालुता का व्यवहार करने की सलाह दी है l उन्हों ने कहा है:"जो कोई भी दो लड़कियों का उनके बड़े होने तक पालन-पोषण करे वह और मैं क़ियामत के दिन इस तरह आएंगे और उन्हों ने अपनी उंगलियों को एक साथ मिला कर दिखाया[1] l
उन्होंने इसी प्रकार का आदेश बेटों को उनकी माताओं के बारे में भी दिया l एक व्यक्ति ने उन से पूछा कि मेरे सम्मान का सबसे अधिक योग्य और उचित कौन हैं?
तो उन्होनें कहा: " तुम्हारी माँ फिर तुम्हारी माँ, फिर तुम्हारी माँ फिर तुम्हारे पिता l[2]
इसी प्रकार उन्होंने पति को आदेश दिया कि अपनी पत्नियों के साथ अच्छा बर्ताव करें और उन लोगों की आलोचना की जो अपनी पत्नियों को भड़काते रहते हैं या उनको चोट पहुँचाते हैं l  
आप उन्हीं को देख लीजिए कि अंतिम हजयात्रा के अवसर पर जब खड़े थे और उनके सामने एक लाख यात्रियों की बड़ी सभा थी, उनके बीच सभी प्रकार के लोग उपस्थित थे: काले गोरे, बड़े छोटे, अमीर और ग़रीब सभी वहां इकठ्ठा थे l उन्होंने ने उन सब को आवाज़ देकर कहा:अच्छी तरह सुन लो अपनी अपनी पत्नियों के साथ अच्छा बर्ताव करो, फिर से अच्छी तरह सुन लो अपनी अपनी पत्नियों के साथ अच्छा बर्ताव करो! [3]
एक दिन हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की पवित्र पत्नियों के पास कई महिलाएं आईं और अपने अपने पति के ख़िलाफ आरोप लगाईं l जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को इस बात का पता चला तो वह खड़े हुए और लोगों से कहा कि:" मुहम्मद की पत्नियों के पास कई महिलाएं आईं और अपने अपने पति के ख़िलाफ आरोप लगाईं, देखो! वे लोग तुम्हारे बीच भले लोग नहीं हैं l[4]   
उन्होंने यह भी कहा:"आप लोगों के बीच सबसे अच्छा वह है जो अपने परिवार के साथ सबसे अच्छा है और मैं अपने परिवार के साथ सबसे  अच्छा हूँ l"[5]
इस्लाम धर्म ने तो स्त्री को इतना सम्मान दिया है कि एक स्त्री की प्रतिष्ठा के लिए कभी कभी युद्ध शुरू हो जाता था, और इसको लेकर खोपड़ियां और सिर उड़ते देखाई देते थे l   
यहूदी  लोग पवित्र मदीना में मुसलमानों के साथ साथ रहते थे l
परदे का नियम जब उतरा और मुसलमान स्त्री पर्दा करने लगे तो इस से यहूदियों को बहुत ग़ुस्सा आया और गङबङी फैलाने का प्रयास करने लगे और मुस्लिम महिलाओं के बीच बेपर्दगी फैलाने की योजना रच लिए परन्तु वे सदा अपनी साजिशों में असफल ही रहे l

एक दिन, एक मुसलमान महिला यहूदियों के बाज़ार "क़ैनुक़ा" को गई l वह एक पवित्र और पर्दा वाली महिला थी l
वह उन लोगों के बीच एक सोनार के पास बैठी, यहूदियों को उसके परदे और पवित्रता को देखकर अत्यंत ग़ुस्सा आया वे उस के मुखड़े की एक झलक देखना चाहते थे और उसके साथ खेलवाड़ और छेड़छाड़ करना चाहते थे, और वैसा ही करना चाहते थे जैसा महिलाओं को  इस्लाम के द्वारा सम्मानित किए  जाने से पहले किया करते थे l वे चाहते थे कि उसके चेहरे को बेनिक़ाब किया जाए और उसके परदे को उतरवा दिया जाए लेकिन वह महिला न मानी बल्कि झिड़क दिया, सुनार ने अवसर देखकर और जब वह बैठी थी तो उसके कपड़े के एक छोर को नीचे से ऊपर की ओढ़नी जो उसकी पीठ पर पड़ी थी बांध दिया, जबकि वह इस साज़िश से बिल्कुल अनजान थी और जब वह उठी तो उसका कपड़ा पीछे से उठ गया और उसके शरीर के  गुप्तअंग खुल गए और वह असम्मानित हो गाई इस पर यहूदी  खिलखिला कर हँसने लगे, वह पवित्र मुस्लिम महिला एक चीख़ मारी और बोली:यदि वे मुझे मार दिए होते तो भला था लेकिन  मुझे असम्मानित न किए  होते l
जब एक मुस्लिम आदमी ने यह देखा, तो वह अपनी तलवार खोल से बाहर निकाल लिया और उस सोनार पर टूट पड़ा और उसको वहीँ ढेर कर  दिया, यहूदियों ने उस मुसलमान पर हमला कर दिया और उसे भी मार डाला l जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को इस का पता चला और यह जानकारी मिली कि यहूदियों ने अपने शपथ का उल्लंघन किया और एक मुसलमान औरत के साथ छेङछाङ किया तो उन्होंने यहूदियों का घेराव किया फिर वे सभी आत्मसमर्पण कर लिए और उनके फैसले को स्वीकार करने के लिए तैयार होगए l
जब हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनपर हमला करने और एक पवित्र मुस्लिम औरत का बदला लेने का निर्णय ले लिया
तो शैतान के सहायकों में से एक खड़ा हुआ जिस को मुस्लिम महिलाओं की इज्ज़त और उनके सम्मान का कुछ भी चिंता नहीं था बल्कि उसे केवल उसके पेट और ऐयाशी का चिंता लगा रहता था पाखण्डीयों का मुख्य आदमी अब्दुल्ला बिन ओबै बिन सलूल उठ खड़ा हुआ और कहा: हे मुहम्मद! कृपया हमारे इन यहूदी सहयोगियों के साथ ज़रा दयालुता का बर्ताव कीजिए, ज्ञात हो कि यह लोग इस्लाम से पहले अज्ञानता के समय में उसके सहयोगी थे हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने उस से मुंह फैर लिया और उसकी बात को स्वीकार करने से इनकार कर दिया l
वह कैसे एसे लोगों को क्षमा कराने का प्रयास करता है जो मुसलमानों के बीच भ्रष्टाचार फैलाने की कोशिश करते हैं l   
पाखंडी फिर खड़ा हुआ और कहा: हे मुहम्मद! उनके साथ दया का बर्ताव कीजिए, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने फिर उस से मुंह फैर लिया l क्योंकि उस पाखंडी की तो इच्छा ही यही थी कि पवित्र मुस्लिम औरत का खुलेआम उल्लंघन हो l
इस पर पाखंडी ग़ुस्सा हो गया, उसने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का कालर पकड़ लिया  और कहा: मेरे सहयोगियों के साथ दया का बर्ताव करना होगा! मेरे सहयोगियों के साथ दया का बर्ताव करो l 
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-नाराज़ हो गए और उसकी ओर पलटा और गरजदार आवाज़ में कहा: मुझे छोड़ दो! पाखंडी ने नहीं माना, और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-से हाथ जोड़ने लगा और उनको माफ करने की विनती करने लगा l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने उसकी ओर मुंह किया और कहा:चलो ठीक है वह तुम्हारे हैं, फिर उन्होंने उनकी हत्या न करने का निर्णय लिया l लेकिन, उन लोगों को पवित्र मदीना से बाहर भगा दिया l  
और उनको उनके घरों से बहार कर दिया l जी हाँ! एक मुस्लिम पवित्र
औरत का अधिकार तो इस से भी कहीं बढ़ कर है l
ख़ौला-बिनते-सअलबह-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-उन महिलाओं में शामिल हैं जिन्होंने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को देखा, उनके पति औस बिन सामित एक बूढ़े आदमी थे और बहुत जल्दी भड़क उठते थे, और ग़ुस्सा से आगबबूला हो जाते थे, एक दिन वह अपनी जाती के लोंगों के साथ बैठक करके वापस आए और ख़ौला के पास आए उन्होंने उस से कुछ बातचीत की तो ख़ौला ने साफ साफ जवाब दिया इस पर दोनों एक दूसरे से लड़ लिए औस बिन सामित को ग़ुस्सा आया और उस से दूर रहने की क़सम खाते हुए यह शब्द बोले, कि तुम मुझ पर हराम हो तुम मेरे लिए मेरी माता की पीठ के समान हो, और ग़ुस्सा होकर घर से निकल गए l         
इस्लामी युग से पहले, अज्ञानता के समय में यह शब्द तलाक़ माना जाता था l लेकिन ख़ौला को इस बात की जानकारी नहीं थी कि इस्लाम में इस का हुक्म किया है l
औस अपना घर वापस आया तो उसकी पत्नी उस से दूर हटने लगी  
और बोली: क़सम है उसकी जिसके हाथ में ख़ौला का प्राण है! आप मेरे पास नहीं आएंगे, आप तो अभी थोड़ी देर पूर्व ऐसी ऐसी बात कह चुके हो l  तुम मेरे पास नहीं आसकते हो जब तक अल्लाह और उसके पैगंबर हामारे बीच फैसला न कर दें l
ख़ौला अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की ओर निकल पड़ी और अपने पति से जो भी उसे तकलीफें पहुंचीथीं वह सब उनको सुनाई और अपने पति के बुरे बर्ताव की शिकायत करने लगी तो अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उसे सहने की सला दिए और उनको कहा! हे ख़ौला! तुम्हारा चचेरा भाई एक बूढ़ा आदमी है, तो आप उसके विषय में अल्लाह से डरो  l
वह अपने आंसू को रोकते हुए बोली:हे अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो - इस ने मेरी पूरी जवानी को चूस लिया और बच्चे पैदा करते करते मेरे पेट को पिलपिला करके रख दिया और जब मेरी उम्र बड़ी हो गई और बच्चे का जन्म रुक गया तो इस ने मुझ को अपने उपर हराम कर लिया, और मुझे तलाक़ दे दिया, हे अल्लाह! मैं तेरे पास शिकायत करती हूँ l  
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- इस इंतज़ार में थे कि अल्लाह सर्वशक्तिमान उन दोनों के विषय में अपना हुक्म उतारेगा, ख़ौला अभी हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास ही थी कि जिब्रिल आकाश से उतरकर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास आए और पवित्र क़ुरआन की आयतें लेकर आए जिन में उसका और उसके पति का फैसला था, इतने में हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनकी ओर मुंह किए  और बोले: हे ख़ौला! तुम्हारे और तुम्हारे पति के विषय में क़ुरआन उतरा है, फिर उन्होंने यह पढ़ कर सुनाया:

" قد سمع الله قول التي تجادلك في زوجها وتشتكي إلى الله، والله يسمع تحاوركما إن الله سميع بصير "

 "अल्लाह ने उस स्त्री की बातचीत सुन ली जो अपने पति के विषय में आप से झगङ रही है, और अल्लाह से शिकायत कीये जाती है! अल्लाह तुम दोनों की बातचीत सुन रहा है, निशचय ही अल्लाह सब कुछ सुननेवाला देखनेवाला है l" उन्होंने सुरह मुजादिलह की शुरुआत से अंतिम आयतों तक पढ़ा l     
फिर हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा कि उसे कहो कि एक ग़ुलाम आजाद करे, उसने कहा: हे अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उसके पास मुक्त करने के लिए कुछ भी नहीं है l   
इस पर उन्होंने कहा:तो फिर उसे लगातार दो महीनों का रोज़ा रखने के लिए कहो l  
उसने कहा:अल्लाह की क़सम वह तो एक बूढ़े आदमी हैं , उनसे रोज़ा रखना कहाँ से हो सकेगा?
उन्होंने कहा: तो फिर साठ ग़रीब लोगों को एक "वास्क़"(मन की तरह का अरबों का कोई पलड़ा है) खजूर खिलादे l
उसने कहा:हे अल्लाह के पैगंबर! उसके पास तो यह शक्ति नहीं है
अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा :इस विषय में, हम उसकी एक बोरी खजूर से सहायता करेंगे l
उसने कहा: अल्लाह की क़सम हे अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- में भी एक बोरी खजूर से उसकी सहायता करुँगी l    
तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा: ठीक है अच्छा है l जाओ और उसे उसकी ओर से दान करदो, और अपने चचेरे भाई के साथ अच्छा बर्ताव करो l[6]
महिमा हो अल्लाह को जिसने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- को प्रत्येक जिवित के साथ नम्रता और सहनशीलता की क्षमता के साथ सम्मानित किया कि वह लोगों की निजी समस्याओं के समाधान में भी भाग लेते थे l     
यहाँ यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि मैं ख़ुद भी नम्रता के साथ और भावनात्मक कौशल के प्रयोग के द्वारा अपनी बेटी और पत्नी के साथ जांच करके देखा है,और इससे पहले  अपनी मां और बहन के साथ भी आज़मा कर देखा है, और मैं ने इसे वास्तव में बहुत प्रभावी पाया है l इसके प्रभाव की कल्पना केवल वही व्यक्ति शुद्ध रूप से कर सकता है जो इस को व्यावहारिक रूप में करके देख लिया हो l
महिला को वही सम्मान देता है जो स्वयं सम्मानजनक हो और उसको वह ही दबाता है या उसके साथ कठोर व्यवहार करता है जो नीच होता है l

निचोड़:
स्त्री अपने पति की ग़रीबी और उसकी बदसूरती और कामधंधे में उलझे रहने को सह सकती है, पर उसके कठोर व्यवहार को हरगिज़ नहीं सह सकती है l  

 



[1]   इसे मुस्लिम ने उल्लेख किया है l

[2] बुखारी और मुस्लिम दोनों इस पर सहमत हैं l

[3] मुस्लिम और  तिरमिज़ी ने इसको उल्लेख किया है l 

[4] इसे अबुदावुद ने उल्लेख किया है

[5]   इब्ने माजह और तिरमिज़ी ने इस को उल्लेख किया है  l

[6]  अहमद और अबुदावुद ने रिवायत की है और यह सहीह हदीस है l   

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