1. सामग्री
  2. लेख
  3. फज्रे सादिक़ का समय

फज्रे सादिक़ का समय

Under category : लेख
1972 2013/06/25 2024/03/29

वे कौन से तरीक़े हैं जिनके द्वारा मैं फज्रे सादिक़ (फज्र की नमाज़ का वास्तविक समय) जान सकता हूँ ॽ
मैं सुबह के समय फज्रे सादिक़ का पता लगाने का भरपूर प्रयास करता हूँ, ताकि अपने और अपने दोस्तों के लिए फज्र की नमाज़ और खाने पीने से रूकने के समय की जानकारी प्राप्त कर सकूँ। क्योंकि मैं चीन में रहता हूँ, और मुसलमान यहाँ पर इंटरनेट के समय पर निर्भर करते हैं, किंतु वह सूक्ष्म नहीं है। इस आधार पर वे समय के शुरू होने से पहले ही फज्र की नमाज़ पढ़ते हैं, लेकिन यदि मैं शुद्ध रूप से समय का आकलन न कर सकूँ (क्योंकि मैं उसे अंधेरा गायब हो जाने और प्रकाश शुरू होने के समय निर्धारित करता हूँ ), तो क्या इसमें मेरे ऊपर कोई पाप होगा ॽ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सबसे पहले :

हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह आपके अपनी इबादत के प्रति सच्चाई और सही बात तलाश करने पर आपको सर्वश्रेष्ठ बदला प्रदान करे, तथा हम अल्लाह सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करते हैं कि वह आपके ज्ञान प्रियता और ज्ञान प्राप्त करने की उत्सुकता पर आपको तौफीक़ प्रदान करे और अपनी अनुकम्पा और कृपा से अधिकाघिक सम्मानित करे।

ज्ञात होना चाहिए कि फज्र (भोर, प्रभात) के दो प्रकार हैं : फज्र काज़िब (झूठा) जिसके साथ फज्र की नमाज़ का समय नहीं शुरू होता है, और रोज़ा रखने के इच्छुक को खाने, पीने और संभोग से नहीं रोका जाता है। और दूसरा प्रकारः फज्र सादिक़ (वास्तविक फज्र) है, और उसी के साथ फज्र का समय शुरू होता है और (रोज़े के इच्छुक को) खाने, पीने और संभोग से रोक देता है, और अल्लाह तआला के इस फरमान में यही फज्र मुराद है :

﴿ وَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الأبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ ﴾ [البقرة : 187]  

“तुम खाते पीते रहो यहाँ तक कि प्रभात का सफेद धागा रात के काले धागे से प्रत्यक्ष हो जाए।” (सूरतुल बक़राः 187)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बहुत सी हदीसों में उन दोनों के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से वर्णन किया है, कुछ हदीसों में उन दोनों के बीच विवरण और गुणों के एतिबार से अंतर किया गया है, तथा कुछ दूसरी हदीसों में अहकाम (नियम) के अंदर उन दोनों के बीच अंतर किया गया है और कुछ हदीसों में विवरण और अहकाम दोनों को एकत्रित किया गया है।

ये हदीसें प्रश्न संख्या : (26763) के उत्तर में देखें।

दोनों फज्र के बीच अंतर सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम, ताबेईन और उनके बाद आने वाले महान विद्वानों के वार्तालाप में स्पष्ट रूप से वर्णन हुआ है।

इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - फरमाते हैं:

“और अब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने कहा : हमें इब्ने जुरैज ने अता के माध्यम से सूचना दी कि उन्हों ने कहा : मैं ने इब्ने अब्बास को फरमाते हुए सुना : वे दो फज्र हैं, जहाँ तक उस फज्र की बात है जो आसमान में चढ़ती है : वह किसी चीज़ को हलाल या हराम नहीं ठहराती है, किंतु वह फज्र जो पहाड़ों की चोटियों पर विदित होती है तो वही खाना पीना हराम करती है।

अता ने कहा : जब वह आकाश में बुलंद होती है - और उसका बुलंद होना उसका आसमान में लंबाई के आकार में जाना है - तो इस से रोज़े के लिए (खाना) पीना, नमाज़ पढ़ना हराम नहीं होता है और न ही इस से हज्ज छूटता है, किंतु जब वह पहाड़ों की चोटियों पर फैल जाती है : तो रोज़ेदार के लिए (खाना) पीना हराम कर देती है, और हज्ज फौत हो जाता है।

इब्ने अब्बास और अता तक इसकी इसनाद सही है, और इसी तरह कई सलफ रहिमहुमुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - से वर्णित है।”

“तफसीर इब्ने कसीर” (1/516).

तथा इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - ने फरमाया :

“सारांश यह कि : सुबह की नमाज़ का समय सर्वसम्मति के साथ दूसरी फज्र (अर्थात फज्र सादिक़) के उदय होने से शुरू होता है, और इसी तथ्य पर नमाज़ों के समय के बारे में वर्णित हदीसें तर्क स्थापित करती हैं, और वह उस सफेदी को कहते हैं जो छितिज में फैली हुई होती है, उसे “फज्र सादिक़” के नाम से जाना जाता है ; क्योंकि उसने सुबह के बारे में आपको सच्ची खबर दी और उसे आप के लिए स्पष्ट कर दिया। और “सुबह” कहते हैं जिसमें सफेदी और लाली दोनों मिली हुई हो, और इसी अर्थ के आधार पर उस आदमी को जिसकी रंगत में सफेदी और लाली दोनों हों “अस्बह” कहा जाता है।

जहाँ तक फहली फज्र का संबंध है : तो यह वह बारीक सफेदी है जो ऊपर चढ़ती हो चौड़ाई में न हो, तो उस से कोई हुक्म (प्रावधान) संबंधित नहीं होता है, और उसे “फज्र काज़िब” कहा जाता है, फिर फज्र का इख्तियारी (वैकल्पिक) समय निरंतर बाक़ी रहता है यहाँ तक कि दिन रोशन हो जाये।

“अल-मुगनी” (1/232).

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - ने फरमाया :

“विद्वानों ने उल्लेख किया है कि उसके - फज्र काज़िब - और दूसरी फज्र के बीच तीन अंतर हैं:

पहला अंतर : पहली फज्र लंबाई में होती है चौड़ाई में नहीं होती है, अर्थात् पूरब से पश्चिम तक लंबाई में फैली हुई होती है, और दूसरी फज्र : उत्तर से दछिण की ओर चौड़ाई मे बिखरी होती है।

दूसरा अंतर : प्रथम फज्र अंधेरा बिखेरती है, अर्थात् यह प्रकाश थोड़ी देर के लिए होती है फिर अंधेरा छा जाता है। जबकि दूसरी फज्र अंधेरा नहीं पैदा करती है बल्कि उसकी प्रकाश और रोशनी बढ़ती ही जाती है।

तीसरा अंतर : दूसरी फज्र क्षितिज से मिली होती है उसके और क्षितिज के बीच अंधेरा नहीं होता है, जबकि पहली फज्र क्षितिज से अलग होती है उसके और क्षितिज के बीच अंधेरा होता है।

क्या पहली फज्र पर कोई चीज़ निष्कर्षित होती है ॽ उस पर शरई चीज़ों में से कदापि कोई चीज़ निष्कर्षित नहीं होती है, न तो रोज़े में खाने पीने से रूक जाना और न तो फज्र की नमाज़ का जाइज़ होना, सभी अहकाम (प्रावधान) दूसरी फज्र पर ही निष्कर्षित होते हैं।” (समाप्त हुआ)

“अश्शरहुल मुमते” ( 2 / 107, 108 ).

दूसरा :

जहाँ तक कैलेंडरों की समय सारणी का संबंध है तो वे फज्र की नमाज़ का समय जानने के लिए विश्वास का स्रोत नहीं हैं, क्योंकि इन कैलेंडरों का गलत होना साबित हो चुका है।

इसलिए आप के ऊपर वाजिब है कि फज्र की नमाज़ के समय की जानकारी के लिए कैलेंडरों पर भरोसा न करें, आपको चाहिए कि हम ने फज्र काज़िब और फज्र सादिक़ के बीच जो अंतर वर्णन किए हैं उनके आधार पर सही समय का पता लगाने का प्रयास करें, यदि आप प्रतिदिन आसमान में देखने में असमर्थ हैं, तो आपके लिए कैलेंडर की अज़ान के बाद एक एहतियाती वक़्त (सावधनी का समय) रखना संभव है, हमारा देश इस समय में दूसरे देश से और दूसरे मौसम से विभिन्न है, इसलिए आप उदाहरण के तौर पर “आधे घंटे” का समय निर्धारित कर सकते है ताकि उसमें फज्र की नमाज़ पढ़ें, परंतु सावधानी से काम लेते हुए इस से पूर्व ही खाने और पीने से रूक जायें।

तथा आप पूरे एक वर्ष तक फज्र सादिक़ का विभिन्न वक़्तों में खोज करने के बाद एक सही कैलेंडर तैयार कर सकते हैं ताकि आपके बाद आने वाली पीढ़ियाँ उस पर भरोसा कर सकें, आशा है कि आपके लिए मुसलमानों की इबादतों को सही करने का अज्र लिखा जाये।

इस आधार पर, यदि आपके लिए स्वयं फज्र के समय का अनुसरण करना संभव है तो आप नमाज़ और रोज़े में इस पर अमल करेंगे, और यदि आपके लिए ऐसा करना संभव नहीं है तो आप उस वक़्त तक नमाज़ नहीं पढ़ेंगे यहाँ तक कि आपको नमाज़ के समय के दाखिल होने का अधिकतर गुमान हो जाये।

जहाँ तक रोज़े का संबंध है तो आपके लिए खाना और पीना जाइज़ है यहाँ तक कि आपको फज्र के उदय होने का यक़ीन हो जाये, इसलिए कि अल्लाह तआला का फरमान है :

﴿ وَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الأبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ ﴾ [البقرة : 187]  

“तुम खाते पीते रहो यहाँ तक कि प्रभात का सफेद धागा रात के काले धागे से प्रत्यक्ष हो जाए।” (सूरतुल बक़राः 187)

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - ने फरमाया:

“जब तक उसे यक़ीन न हो जाए कि फज्र उदय हो गई है, उसके लिए खाना जाइज़ है भले ही उसे शंका हो यहाँ तक कि उसे यक़ीन हो जाए।” (संपन्न)

“फतावा अस्सियाम” (पृष्ठ : 299)

Previous article Next article

Articles in the same category

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day