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आदमी का रोज़े की हालत में अपनी पत्नी को गले लगाना

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2642 2013/07/25 2024/12/18
थोड़ी अवधि पहले मैं ने विवाह किया है, मैं एक चीज़ के बारे में स्पष्टीकरण चाहता हूँ जिसने मुझे परेशान कर रखा है। रमज़ान के इस मुबारक महीने में और जबकि मैं रोज़े से होता हूँ मैं बिस्तर पर आता हूँ जहाँ कभी कभार मेरी पत्नी भी लेटी हुई होती है, और कभी कभी मैं उसे गले लगा लेता हूँ, तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि मेरा रोज़ा खराब हो गया ॽ आप थोड़ा उन चीज़ों पर प्रकाश डालें जिनका करना मेरे लिए जाइज़ और वह चीज़ें जिनको करना मेरे लिए हराम है।



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

मुसलमान के ऊपर अनिवार्य है कि वह अपने रोज़े की उसे खराब करने वाली चीज़ों से सुरक्षित रखे, और अपने खाने, पीने और संभोग की इच्छाओं को त्याग करने में अल्लाह से अज्र व सवाब की आशा रखे, जैसाकि हदीस में रोज़े की फज़ीलत में वर्णित हुआ है : वह अपना खाना, पानी और कामवासना मेरे कारण त्याग कर देता है। इसे बुखारी (अस्सौम / 1761) ने रिवायत किया है, किंतु यदि वह अपने ऊपर नियंत्रण और क़ाबू रखता है और उसे उसके रोज़े को खराब करने वाली चीज़ों जैसे कि वीर्य के निकलने या संभोग की तरफ फिसलने का डर नहीं है, या उसके रोज़े में कमी पैदा करने वाली चीज़ मज़ी के निकलने का डर नहीं है तो उसके लिए इस अवस्था में अपनी पत्नी से खेलना (मनोरंजन करना) जाइज़ है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आइशा रज़ियल्लाह अन्हा के साथ खेलते थे और आप अपनी शहवत पर नियंत्रण रखते थे।

शैख इब्ने बाज़ ने फरमाया :

आदमी का रोज़े की हालत में अपनी पत्नी को चुंबन करना, उसके साथ खेलना और संभोग के अलावा उस से आलिंगन करना जाइज़ है, इसमें कोई गुनाह की बात नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रोज़े की हालत में चुंबन करते थे तथा रोज़े की हालत में आलिंगन करते थे। लेकिन यदि उसे शीघ्र कामोत्तेजक होने के कारण उस चीज़ में फंसने की आशंका है जिसे अल्लाह तआला ने उसके ऊपर हराम करार दिया है, तो उसके लिए ऐसा करना घृणित है, फिर यदि ऐसा करने से उसे वीर्य पात हो जाता है तो उसके ऊपर खाने पीने से रूक जाना और उस दिन के रोज़े की क़ज़ा करना अनिवार्य है और उसके ऊपर जम्हूर विद्वानों के निकट कफ्फारा नहीं है। जहाँ तक मज़ी का प्रश्न है तो विद्वानों के दो कथनों में से सबसे शुद्ध कथन के अनुसार उसके द्वारा रोज़ा खराब नहीं होगा, क्योंकि असल (मूल बात) रोज़े का सुरक्षित रहना और उसका बातिल (अमान्य) न होना है, और इसलिए भी कि उस से बचना कष्ट दायक और कठिन है। तथा अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है।

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