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किसी के बारे में यह नहीं कहा जायेगा कि वह अल्लाह का उत्तराधिकारी है
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
“यह अभिव्यक्ति अपने अर्थ के दृष्टि से सही नहीं है ; क्योंकि अल्लाह तआला ही हर चीज़ का पैदा करनेवाला और उसका मालिक है, वह अपनी सृष्टि और मिल्कियत से ओझल नहीं है कि वह अपनी धरती पर अपना कोई (ख़लीफा) उत्तराधिकारी बनाए, बल्कि अल्लाह तआला धरती पर कुछ लोगों को कुछ लोगों का उत्तराधिकारी बनाता है। जब कोई व्यक्ति या समूह या समुदाय खत्म हो जाता है तो वह उसी में से उसके अलावा को उत्तराधिकारी बना देता है जो धरती के निर्माण में उसका प्रतिनिधित्व करता है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :
﴿وَهُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلائِفَ الأَرْضِ وَرَفَعَ بَعْضَكُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجَاتٍ لِيَبْلُوَكُمْ فِي مَا آتَاكُمْ ﴾ [الأنعام : 165]
“और उसी (अल्लाह) ने तुम को धरती में खलीफा (उत्तराधिकारी) बनाया और एक के पदों को दूसरे के ऊपर बढ़ाया ताकि जो कुछ तुम्हें प्रदान किया है उसमें तुम्हारी परीक्षा करे।” (सूरतुल अनआम : 165).
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿قَالُوا أُوذِينَا مِنْ قَبْلِ أَنْ تَأْتِيَنَا وَمِنْ بَعْدِ مَا جِئْتَنَا قَالَ عَسَى رَبُّكُمْ أَنْ يُهْلِكَ عَدُوَّكُمْ وَيَسْتَخْلِفَكُمْ فِي الأَرْضِ فَيَنْظُرَ كَيْفَ تَعْمَلُونَ ﴾ [الأعراف : 129]
“उन्हों ने कहा कि आप के हमारे पास आने से पहले भी हमें कष्ट दिया गया और आप के हमारे पास आने के बाद भी, उन्हों ने कहा कि जल्द ही तुम्हारा पालनहार तुम्हारे दुश्मनों को बर्बाद कर देगा और इस धरती का उत्तराधिकार तुम को दे देगा, फिर देखेगा कि तुम्हारा कार्य कैसा है ?” (सूरतुल आराफ़ : 129).
तथा अल्लाह तआला का फरमान है :
﴿ وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلائِكَةِ إِنِّي جَاعِلٌ فِي الأَرْضِ خَلِيفَةً ﴾ [البفرة : 30]
“और जब तुम्हारे पालनहार ने फरिश्तों से कहा कि मैं धरती में एक ख़लीफा बनाने वाला हूँ।” (सूरतुल बक़रा : 30)
अर्थात: एक ऐसा प्राणि वर्ग जो अपने से पहले के प्राणि वर्गों के उत्तराधिकारी होंगे।” अंत हुआ।
“फतावा स्थायी समिति” (1/33) से.
नववी रहिमहुल्लाह अपनी किताब “अल-अज़कार” में फरमाते हैं :
अध्याय ऐसे शब्दों के विषय में जिनका उपयोग करना अनेच्छिक है।
मुसलमानों के मामले के ज़िम्मेदार को अल्लाह का खलीफ़ा (अर्थात उत्तराधिकारी) नहीं कहा जाना चाहिए, उसे ख़लीफ़ा अर्थात उत्तराधिकारी, और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का खलीफ़ा (उत्तराधिकारी) और अमीरूल मोमिनीन कहा जाना चाहिए . . .
इब्ने अबू मुलैका से वर्णित है कि एक आदमी ने अबू बक्र सिददीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा : ऐ अल्लाह के ख़लीफ़ा ! तो उन्हों ने कहा : मैं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) हूँ, और मैं इसी पर संतुष्ट हूँ।
तथा एक आदमी ने उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा : ऐ अल्लाह के ख़लीफ़ा ! तो उन्हों ने कहा : तेरा बुरा हो, तू ने बहुत बड़ी बात कह दी। मेरी माँ ने मेरा नाम उमर रखा है तो अगर तू मुझे इस नाम से पुकारता तो मैं स्वीकार कर लेता। फिर मैं बड़ा हो गया तो मेरी कुन्नियत अबू हफ्स हो गई, तो अगर तुम मुझे इसी से पुकारते तो मैं इसे स्वीकार कर लेता, फिर आप लोगों ने मुझे अपने मामले की ज़िम्मेदारी सौंप दी तो मेरा नाम अमीरूल मोमिनीन रख दिया, तो अगर तुम मुझे इसी नाम से पुकारते तो आपके लिए काफी था।
तथा महान क़ाज़ी अबुल हसन अल मावरदी अल बसरी जो कि शाफई मत के एक फक़ीह (धर्मशास्त्री) हैं, अपनी पुस्तक ‘‘अल अहकामुस्सुलतानिया” में उल्लेख किया है कि : इमाम को खलीफ़ा का नाम दिया गया ; क्योंकि वह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आपकी उम्मत के अंदर उत्तराधिकार करता है। वह कहते हैं : अतः सामान्य रूप से खलीफ़ा कहना जायज़ है, और खलीफतो रसूलिल्लाह कहना भी जायज़ है।
वह कहते हैं : हमारे कथन खलीफतुल्लाह कहने में लोगों ने मतभेद किया है, चुनाँचे कुछ विद्वानों ने इसे जायज़ ठहराया है क्यांकि वह उसकी सृष्टि में उसके हुक़ूक की अदायगी करता है, और इसलिए की अल्लाह का फरमान है :
﴿ هُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلائِفَ في الأرْضِ ﴾ [فاطر : 39]
“उसी ने तुम को धरती में ख़लीफा (एक दूसरे के बाद आने वाला) बनाया।” (सूरत फातिर : 39)
जबकि विद्वानों की बहुमत ने इससे मना किया है, और इसके कहने वाले को अनैतिकता की तरफ मंसूब किया है। यह मावरदी का बात है। नववी रहिमहुल्लाह की बात समाप्त हुई।