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''घर वालों'' का नियम क्या है जिनकी ओर से एक क़ुर्बानी काफी होता है
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
विद्वानों ने - हनफिया के अलावा - इस बात पर सहमति जताई है कि आदमी की अपनी तरफ से और अपने घर वालों की तरफ से क़ुर्बानी करना उनकी तरफ से किफायत की सुन्नत के लिए किफायत करेगा ; क्योंकि अबू अय्यूब अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि जब उनसे पूछा गया : ''रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में क़ुर्बानी कैसे की जाती थी? तो उन्हों ने कहा : आदमी अपनी तरफ से और अपने घर वालों की तरफ से एक बकरी की क़ुर्बानी करता था, चुनाँचे वे स्वयं खाते थे और लोगों को भी खिलाते थे, यहाँ तक कि लोग आपस में गर्व करने लगे तो हालत वह होगई जो आप देख रहे हैं।'' इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1505) ने रिवायत किया है और कहा है कि : यह हदीस हसन सहीह है।
दूसरा :
विद्वानों ने ''घर वालों'' के नियम के बारे में जिनकी ओर से एक क़ुर्बानी काफी होती है, चार कथनों पर मतभेद किया है :
प्रथम कथन : जिनके अन्दर तीन शर्तें पाई जाएं : क़ुर्बानी करने वाले का उन पर खर्च करना, उसके साथ उनकी रिश्तेदारी और उनका उसके साथ निवास करना। यह मालिकिय्या का मत है।
मालिकी मत की किताबों में से ''अत्ताज वल इक्लील'' नामी किताब (4/364) में आया है :
'' (यदि वह उसके साथ रहता है, उसका रिश्तेदार है, और वह उसपर खर्च करता है चाहे अनुदान के तौर पर ही सही) तो तीन कारणों के साथ उसे अनुमेय ठहराया है : रिश्तेदारी, एक साथ निवास, और उसपर खर्च करना।'' संक्षेप के साथ अंत हुआ।
दूसरा कथन : जिन पर खर्च करनेवाला एक ही आदमी हो। यह शाफेइया में से बाद के लोगों का कथन है।
तीसरा कथन : क़ुर्बानी करने वाले के सभी रिश्तेदार अगरचे वह उन पर खर्च न करता हो।
चौथा कथन : जो आदमी क़ुर्बानी करने का इरादा रखता है उसके साथ निवास करने वाले सभी लोग अबरचे वे उसके रिश्तेदारों में से न हों। अल-खतीब अश-शर्बीनी, अश-शिहाब अर्रम्ली, और बाद के शाफेइया में से अत-तबलावी इसी पर चले हैं, किन्तु अल्लामा इब्ने हजर हैतमी रहिमहुल्लाह ने इसे असंभव क़रार दिया है।
अश-शिहाब अर्रमली रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
''प्रश्न किया गया : क्या क़ुर्बानी की सुन्नत एक समूह की तरफ से जो एक ही घर में रहते हैं और उनके बीच कोई रिश्तेदारी नहीं है, एक क़ुर्बानी के द्वारा उन सब की तरफ से अदा हो जायेगी
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
हाँ, अदा हो जायेगी, . . . '' फतावा अर-रमली (4/67) से समाप्त हुआ।
तथा इब्ने हजर अल-हैतमी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
''-इस बात की संभावना है कि इससे अभिप्राय - उसके महिला और पुरूष रिश्तेदार हों।
और इस की भी संभावना है कि यहाँ घर वालों से मुराद : वे लोग हैं जिन्हें एक ही खर्च करने वाले का खर्च समाविष्ट हो चाहे अनुदान के तौर पर ही क्यों न हो।
और अबू अय्यूब का कथन (उसे आदमी अपनी तरफ से और अपने घर वालों की तरफ से ज़बह करेगा) दोनों अर्थों को संभावित है।
और यह भी संभावित है कि उससे उसका ज़ाहिरी अर्थ मुराद हो : यानी वे लोग जो एक ही घर में निवास करने वाले हैं. इस प्रकार की उसकी सुविधाएं संयुक्त हों, अगरचे उनके बीच कोई रिश्तेदारी न हो। कुछ लोगों ने सुनिश्चित रूप से यही बात कही है, लेकिन यह बात बहुत दूर की है।'' संक्षेप के साथ ''तोहफतुल मुहताज'' (9/345) से समाप्त हुआ।
सारांश यह कि बड़ा बेटा जो अपने पिता से अलग एक स्थायी घर में रहता है, उसके लिए धर्म संगत यह है कि वह अपनी तरफ से एक अलग क़ुर्बानी करे, क्योंकि बेटा - वर्तमान समय में - बाप के घर वाले में से नहीं है, और उसके पिता की क़ुर्बानी उसकी ओर से पर्याप्त नहीं होगी, बल्कि वह स्वतंत्र रूप से एक स्थायी घर वाला है।
और अगर लड़का क़ुर्बानी की क़ीमत में अपने पिता की सहायता करता है तो उसे इन शा अल्लाह पुण्य मिलेगा, लेकिन अनुदान और सदक़ा का पुण्य, क़ुर्बानी का पुण्य नहीं।