1. सामग्री
  2. आस्था
  3. क़ुर्बानी के जानवर की शर्तें

क़ुर्बानी के जानवर की शर्तें

Under category : आस्था
1889 2014/10/02 2024/11/17

 

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

क़ुर्बानी के जानवर की छ: शर्तें हैं :

 

पहली शर्त :

वे बहीमतुल अनआम (चौपायों) में से हों,  और वे ऊँट, गाय और भेड़-बकरी हैं, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान हैं :"और हर उम्मत के लिये हम ने क़ुर्बानी का तरीक़ा मुक़र्रर कर किया है ताकि वे उन बहीमतुल अनआम (चौपाये जानवरों) पर अल्लाह का नाम लें जो अल्लाह ने उन्हें दे रखा है।" (सूरतुल हज्ज : 34)

 

बहीमतुल अनआम (पशु) से मुराद ऊँट, गाय और भेड़-बकरी हैं, अरब के बीच यही जाना जाता है, इसे हसन, क़तादा, और कई लोगों ने कहा है।

दूसरी शर्त :

वे जानवर शरीअत में निर्धारित आयु को पहुँच गये हों इस प्रकार कि भेड़ जज़आ हो, या दूसरे जानवर सनिय्या हों, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "तुम मुसिन्ना जानवर ही क़ुर्बानी करो, सिवाय इस के कि तुम्हारे लिए कठिनाई हो तो भेड़ का जज़आ़ क़ुर्बानी करो।" (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।)

मुसिन्ना : सनिय्या या उस से बड़ी आयु के जानवर को कहते हैं, औ जज़आ उस से कम आयु के जानवर को कहते हैं।

ऊँट में से सनिय्या : वह जानवर है जिस के पाँच साल पूरे हो गये हों।

 

गाय में से सनिय्या : वह जानवर है जिस के दो साल पूरे हो गये हों।

 

बकरी में से सनिय्या : वह जानवर है जिस का एक साल पूरा हो गाया हो।

और जज़आ : उस जानवर को कहत हैं जो छह महीने का हो।

अत: ऊँट, गाय और बकरी में से सनिय्या से कम आयु के जानवर की क़ुर्बानी करना शुद्ध नहीं है, भेड़ में से जज़आ से कम आयु की कु़र्बानी नहीं है।

तीसरी शर्त :

वे जानवर उन दोषों (ऐबों और कमियों) से मुक्त (खाली) होने चाहिये जिनके होते हुये वे जानवर क़ुर्बानी के लिए पर्याप्त नहीं हैं, औ वे चार दोष हैं :

 

1- स्पष्ट कानापन : और वह ऐसा जानवर है जिस की आँख धंस गई (अंधी हो गई) हो, या इस तरह बाहर निकली हुई हो कि वह बटन की तरह लगती हो, या इस प्रकार सफेद हो गई हो कि साफ तौर पर उसके कानेपन का पता देती हो।

 

2- स्पष्ट बीमारी : ऐसी बीमारी जिस की निशानियाँ पशु पर स्पष्ट हों जैस कि ऐसा बुखार जो उसे चरने से रोक दे और उसकी भूख को मार दे, और प्रत्यक्ष खुजली जो उसके गोश्त को खराब कर दे या उसके स्वास्थ्य को प्रभावित कर दे,  और गहरा घाव जिस से उस का स्वास्थ्य प्रभावित हो जाये, इत्यादि।

3- स्पष्ट लेंगड़ापन : जो पशु को दूसरे दोषरहित पशुओं के साथ चलने से रोक दे।

 

4- ऐसा लागरपन जो गूदा को समाप्त करन वाला हो : क्योंकि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किया गया कि क़ुर्बानी के जानवरों में किस चीज़ से बचा जाये तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने हाथ से संकेत करते हुये फरमाया : "चार : लेंगड़ा जानवर जिस का लेंगड़ापन स्पष्ट हो, काना जानवर जिस का कानापन स्पष्ट हो, रोगी जानवर जिस का रोग स्पष्ट हो, तथा लागर जानवर जिस की हड्डी में गूदा न हो।" इसे इमाम मालिक ने मुवत्ता में बरा बिन आज़िब की हदीस से रिवायत किया है, और सुनन की एक रिवायत में बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से ही वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे बीच खड़े हुये और फरमाय कि : "चार चीज़ें (दोष और खामियाँ) क़ुर्बानी के जानवर में जाइज़ नहीं हैं।" और आप ने पहली हदीस के समान ही उल्लेख किया। इसे अल्बानी ने इर्रवाउल गलील (1148) में सहीह कहा है।

 

ये चार दोष और खामियाँ क़ुर्बानी के जानवर के पर्याप्त होने में रूकावट हैं (अर्थात् इन में से किसी भी दोष से पीड़ित जानवर की क़ुर्बानी जाइज़ नहीं है), इसी तरह जिन जानवरों में इन्हीं के समान या इन से गंभीर दोष और खामियाँ होंगी उन पर भी यही हुक्म लागू होगा, इस आधार पर निम्नलिखित जानवरों की क़ुर्बानी जाइज़ नहीं है :

1- वह जानवर जो दोनों आँख का अंधा हो।

2- वह जानवर जिस का पेट अपनी क्षमता से अधिक खाने के कारण फूल गया हो, यहाँ तक कि वह पाखान कर दे, और खतरे से बाहर हो जाये।

3- वह जानवर जो जने जाने के समय कठिनाई से पीड़ित हो जाये यहाँ तक कि उस से खतरा टल जाये।

 

4- ऊँचे स्थान से गिरने या गला गुँठने आदि के कारण मौत के खतरे का शिकार जानवर यहाँ तक कि वह खतरे से बाहर हो जाये।

 

5- किसी बीमारी या दोष के कारण चलने में असमर्थ जानवर।

 

6- जिस जानवर का एक हाथ या एक पैर कटा हुआ हो।

जब इन दोषों और खामियों को उपर्युक्त चार नामज़द (मनसूस) खामियों के साथ मिलाया जाये तो उन खामियों (ऐबों) की संख्या जिन के कारण क़ुर्बानी जाइज़ नहीं है दस हो जाती है। ये छह खामियाँ और जो पिछली चार खामियों से पीड़ित हो।

 

चौथी शर्त :

वह जानवर क़ुर्बानी करने वाले की मिल्कियत (संपत्ति) हो, या शरीअत की तरफ से या मालिक की तरफ से उसे उस जानवर के बारे में अनुमति प्राप्त हो। अत: ऐसे जानवर की क़ुर्बानी शुद्ध नहीं है जिस का आदमी मालिक न हो जैसे कि हड़प किया हुआ, या चोरी किया हुआ, या झूठे दावा के द्वारा प्राप्त किया गया जानवर इत्यादि ; क्योंकि अल्लाह तआला की अवज्ञा के द्वारा उस का सामीप्य और नज़दीकी प्राप्त करना उचित नहीं है।

तथा अनाथ के संरक्षक (सरपरस्त) के लिये उस के धन से उसकी तरफ से क़ुर्बानी करना वैध है अगर उसकी परम्परा है और क़ुर्बानी न होने के कारण उस के दिल के टूटने का भय है।

तथा वकील (प्रतिनिधि) का अपने मुविक्कल के माल से उसकी अनुमति से क़ुर्बानी करना उचित है।

पाँचवीं शर्त :

 

उस जानवर के साथ किसी दूसरे का हक़ (अधिकार) संबंधित न हो, चुनाँचि उस जानवर की क़ुर्बानी मान्य नहीं है जो किसी दूसरे की गिरवी हो।

छठी शर्त :

 

शरीअत में क़ुर्बानी का जो सीमित समय निर्धारित है उसी में उसकी क़ुर्बानी करे, और वह समय क़ुर्बानी (10 ज़ुलहिज्जा) के दिन ईद की नामज़ के बाद से अय्यामे तश्रीक़ अर्थात् 13वीं ज़ुलहिज्जा के दिन सूर्यास्त तक है। इस तरह बलिदान के दिन चार हैं : नमाज़ के बाद से ईद का दिन, और उस के बीद अतिरिक्त तीन दिन। जिसने ईद की नमाज़ से फारिग होने से पहले, या तेरहवीं ज़ुलहिज्जा को सूरज डूबने के बाद क़ुर्बानी किया तो उस की क़ुर्बानी शुद्ध और मान्य नहीं है ; क्योंकि इमाम बुखारी ने बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस ने ईद की नमाज़ से पहले क़ुर्बानी की तो उस ने अपने घर वालों के लिए गोश्त तैयार किया है, और उस का धार्मिक परंपरा से (क़ुर्बानी की इबादत) से कोई संबंध नहीं है।" तथा जुनदुब बिन सुफयान अल-बजली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहा : "मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास उपस्थित था जब आप ने फरमाया : "जिस ने -ईद की- नमाज़ पढ़ने से पहले क़ुर्बानी कर दिया वह उस के स्थान पर दूसरी क़ुर्बानी करे।" तथा नुबैशा अल-हुज़ली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तश्रीक़ के दिन खाने, पीने और अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल को याद करने के दिन हैं।" (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है)

 

किन्तु यदि किसी कारणवश तश्रीक़ के दिन (13 ज़ुलहिज्जा) से विलंब हो जाये, उदाहरण के तौर पर बिना उसकी कोताही के क़ुर्बानी का जानवर भाग जाये और समय बीत जाने के बाद ही मिले, या किसी को क़ुर्बानी करने के लिए वकील (प्रतिनिधि) बना दे और वकील भूल जाये यहाँ तक कि क़ुर्बानी का समय निकल जाये, तो उज़्र के कारण समय निकलने के बाद क़ुर्बानी करने में कोई बात नहीं है, तथा उस आदमी पर क़ियास करते हुये जो नमाज़ से सो जाये या उसे भूल जाये, तो वह सोकर उठने या उसके याद आने पर नमाज़ पढ़ेगा।

 

निर्धारित समय के अंदर दिन और रात में किसी भी समय क़ुर्बानी करना जाइज़ है, जबकि दिन में क़ुर्बानी करना श्रेष्ठ है, तथा ईद के दिन दोनों खुत्बों के बाद क़ुर्बानी करना अफज़ल हैं, तथा हर दिन उसके बाद वाले दिन से श्रेष्ठ है ; क्योंकि इस में भलाई की तरफ पहल और जल्दी करना पाया जाता है।

Previous article Next article

Articles in the same category

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day